हिंदू धर्म में भगवान गणेश की पूजा को अत्यंत कल्याणकारी माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि जो लोग विधिपूर्वक बप्पा की आराधना करते हैं, उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। इसलिए, जो लोग अपने जीवन के दुखों से मुक्ति पाना चाहते हैं, उन्हें गणेश जी की उपासना अवश्य करनी चाहिए। इसके साथ ही, उनके लिए कठिन व्रत करना भी बेहद लाभकारी होता है।
Ganesh Visarjan: गणेश चतुर्थी उत्सव प्रत्येक वर्ष पूर्ण भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह पावन उत्सव भगवान गणेश के जन्म का प्रतीक है, जो गणपति विर्सजन के साथ समाप्त होता है। इस दौरान (ganesh chaturthi 2024) साधक गणेश जी की विभिन्न प्रकार से पूजा करते हैं और उनके लिए कठिन उपवास रखते हैं।
ऐसा माना जाता है कि भगवान गणेश की पूजा और उनके आशीर्वाद से व्यक्ति के जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। भगवान गणेश को "विघ्नहर्ता" यानी बाधाओं को दूर करने वाला कहा जाता है। उनकी पूजा से न केवल जीवन के कष्टों का निवारण होता है, बल्कि भौतिक सुख, समृद्धि, और शांति का अनुभव भी होता है।
गणपति विसर्जन की परंपरा पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी है। भगवान गणेश के विसर्जन के पीछे कुछ खास कारण और भावनाएं हैं, जो इस परंपरा को महत्वपूर्ण बनाते हैं। आइए जानते हैं इसके पीछे के कारण-
क्यों किया जाता है गणेश विसर्जन?
पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि वेदव्यास ने जब महाभारत को लिपिबद्ध करने का निश्चय किया, तो उन्होंने भगवान गणेश का आह्वान किया ताकि वे इस महाकाव्य को लिखने में उनकी सहायता करें। भगवान गणेश ने यह कार्य करने से पहले एक शर्त रखी कि वे बिना रुके लिखेंगे, और यदि वे लिखते समय रुक गए तो फिर लिखना बंद कर देंगे। इस शर्त को वेदव्यास जी ने स्वीकार कर लिया, लेकिन इसके साथ उन्होंने भी अपनी बुद्धिमानी का परिचय देते हुए एक उपाय निकाला।
व्यास जी ने भगवान गणेश को महाभारत की कथा सुनानी शुरू की, लेकिन बीच-बीच में वे कुछ जटिल श्लोक और विचार प्रस्तुत करते थे, ताकि गणेश जी को उन्हें समझने के लिए कुछ क्षणों का समय मिले और वह सोचने लगें। इस समय का उपयोग वेदव्यास जी अपनी अगली कथा को व्यवस्थित करने के लिए करते थे। इस प्रकार भगवान गणेश ने बिना रुके महाभारत को लिखना प्रारंभ किया, और दस दिनों तक लगातार लिखते रहे।
जब महाभारत की कथा समाप्त हो गई, तो वेदव्यास जी ने देखा कि गणेश जी का शरीर अत्यधिक गर्म हो गया था। लगातार लिखने के कारण उनके शरीर का तापमान बहुत बढ़ गया था। वेदव्यास जी ने भगवान गणेश के शरीर को शांत करने के लिए उन्हें जल में डुबकी लगवाई। यह डुबकी गणेश जी के शरीर के तापमान को कम करने के लिए थी। उसी घटना की याद में गणपति विसर्जन की प्रथा शुरू हुई, जो आज तक गणेशोत्सव के समापन के समय की जाती है। गणपति बप्पा की प्रतिमा को जल में विसर्जित करके उन्हें विदाई दी जाती है, और अगले वर्ष पुनः उनके स्वागत की प्रतीक्षा की जाती है।
विसर्जन की नियम विधि
गणेश विसर्जन की प्रक्रिया को सही विधि से करना महत्वपूर्ण है ताकि भगवान गणेश का सम्मानपूर्वक विदा किया जा सके। यहां गणेश विसर्जन की सही विधि दी गई है।
पूजा की तैयारी- विसर्जन से पहले भगवान गणेश की पूजा विधिपूर्वक करें। भगवान को स्नान कराएं और उन्हें नए वस्त्र और फूल पहनाएं।
भोग अर्पित करना- भगवान गणेश को मोदक, लड्डू या घर पर बनी कोई विशेष मिठाई का भोग लगाएं। यह गणपति बप्पा की पसंदीदा मिठाइयां मानी जाती हैं।
मंत्रों का जाप- गणेश जी के वैदिक मंत्रों का जाप करें। इसके बाद उनकी आरती करें और भगवान से सुख, समृद्धि और शांति की कामना करें।
विसर्जन का जल तैयार करें- अगर नदी या किसी जलाशय में विसर्जन संभव न हो, तो एक साफ और शुद्ध पात्र में पानी भरें। उसमें गंगाजल, फूल, इत्र, और तुलसी पत्र मिलाएं।
विसर्जन- गणेश जी की प्रतिमा को "गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ" जैसे जयकारों के साथ पानी में विसर्जित करें। धीरे-धीरे गणेश जी को पानी में प्रवाहित करें।
जल का उपयोग- विसर्जन के बाद उस जल को पीपल के वृक्ष के नीचे या अपने घर के गमले में डाल दें, ताकि यह प्रकृति का सम्मान करते हुए पर्यावरण के अनुकूल हो।
पूजा सामग्रियों का विसर्जन- पूजा में उपयोग की गई सामग्रियों को भी विसर्जित कर दें। इसके लिए आप उन्हें किसी पवित्र स्थान, नदी या वृक्ष के नीचे श्रद्धापूर्वक रख सकते हैं।