डॉलर बनाम भारतीय रुपया अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया लगातार कमजोर होता जा रहा है। इसका मुख्य कारण इक्विटी बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) द्वारा की जा रही बिकवाली है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) भी रुपये के प्रदर्शन पर ध्यान दे रहा है। आइए जानते हैं कि रुपये में आई गिरावट का भारत के आयात, निर्यात और समग्र अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
नई दिल्ली: अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद डॉलर के मुकाबले रुपए में हो रही निरंतर गिरावट से इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल्स और नॉन-इलेक्ट्रिकल्स मशीनरी, फार्मा, केमिकल्स जैसे क्षेत्रों में उत्पादन लागत बढ़ने की आशंका बढ़ गई है। मंगलवार को भी डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत में गिरावट जारी रही, जिससे एक डॉलर की कीमत 84.40 रुपए हो गई। इन क्षेत्रों में निर्माण से संबंधित अधिकांश कच्चे माल का आयात करना पड़ता है।
रुपए की कमजोरी के कारण अब आयात के लिए पहले से अधिक कीमत चुकानी होगी। दूसरी ओर, पेट्रोलियम और खाद्य सामग्री के आयात बिल में वृद्धि से सरकार पर वित्तीय दबाव भी बढ़ेगा। सरकार खाद्य सामग्री का आयात करके उसे किसानों को काफी कम कीमत पर उपलब्ध कराती है। इसी तरह, गैस सिलेंडर और ऊर्जा के अन्य स्रोतों पर भी सरकार सब्सिडी देती है, और आयात बिल में वृद्धि के कारण सरकार पर बोझ बढ़ेगा। इससे निपटने के लिए सरकार अन्य मद के खर्चों में कटौती करने पर विचार कर सकती है।
इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद का निर्यात अधिक है या आयात?
विशेषज्ञों का मानना है कि इलेक्ट्रॉनिक्स के उत्पादन और निर्यात दोनों में निरंतर वृद्धि हो रही है, लेकिन फिर भी इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं का आयात हमारे निर्यात की तुलना में अधिक है। मोबाइल फोन सहित अन्य सभी इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों के कच्चे माल के लिए हम आयात पर निर्भर हैं।
चालू वित्त वर्ष 2024-25 के अप्रैल से सितंबर के बीच, भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 15.6 अरब डॉलर रहा, जबकि इलेक्ट्रॉनिक्स आयात 48 अरब डॉलर का था। इसी दौरान, इलेक्ट्रिकल और नॉन-इलेक्ट्रिकल मशीनरी का आयात 26 अरब डॉलर रहा। इसके अलावा, फार्मास्यूटिकल्स और रासायनिक उद्योगों से जुड़े कच्चे माल का भी भारी मात्रा में आयात किया जाता है।
क्या निर्यातकों को रुपये के गिरने से लाभ होगा?
जब कच्चे माल की कीमतें बढ़ती हैं, तो उत्पादित वस्तुओं की कुल लागत भी बढ़ जाती है, जिससे ये वस्तुएं घरेलू बाजार में महंगी हो सकती हैं। निर्माता एक निश्चित समय तक ही लागत में बढ़ोतरी को सहन कर सकते हैं। मैन्युफैक्चरिंग लागत में वृद्धि से विदेशी बाजार में इन वस्तुओं की प्रतिस्पर्धात्मकता में कमी आएगी, और यह निर्यात को प्रभावित करेगा।
डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट से निर्यातकों को लाभ होता है, क्योंकि उन्हें डॉलर में भुगतान प्राप्त होता है। हालांकि, वर्तमान में देश का निर्यात प्रदर्शन संतोषजनक नहीं है। इस प्रकार, निर्यातकों को रुपये में गिरावट का विशेष लाभ नहीं मिलने वाला है। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) में निर्यात में केवल एक प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। इसी समय में, आयात में छह प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है।
विदेश में अध्ययन करने वाले बच्चों के माता-पिता पर बढ़ेगा आर्थिक दबाव
रुपए की गिरावट के कारण विदेश में पढ़ाई कर रहे बच्चों के माता-पिता पर वित्तीय बोझ बढ़ने वाला है। वे अपने बच्चों के लिए मुख्य रूप से डॉलर में खर्च भेजते हैं, और डॉलर की मजबूती के चलते उन्हें पहले की तुलना में अधिक राशि का भुगतान करना पड़ेगा। हालांकि, ऐसे परिवारों को रुपए की कमजोरी का लाभ मिलेगा, जिन्हें विदेश से उनके रिश्तेदार पैसे भेजते हैं।