भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बैंकों और NBFCs को क्रेडिट इंफॉर्मेशन कंपनियों (CICs) को क्रेडिट डेटा रिपोर्टिंग के संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्देश जारी किया है। अब, बैंकों और NBFCs को अपनी क्रेडिट जानकारी को हर महीने की बजाय हर 14 दिन में अपडेट करना होगा। यह नई व्यवस्था 1 जनवरी 2025 से प्रभावी होगी।
नई दिल्ली: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बैंकों और NBFCs को क्रेडिट इंफॉर्मेशन कंपनियों (CICs) को क्रेडिट डेटा रिपोर्टिंग के संबंध में एक महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किया है। अब, बैंकों और NBFCs को अपनी क्रेडिट जानकारी को हर महीने की बजाय हर 14 दिन में अपडेट करना होगा। यह नई व्यवस्था 1 जनवरी 2025 से लागू होगी।
क्रेडिट सूचना रिपोर्टिंग में नया बदलाव
बैंक और NBFCs पहले क्रेडिट जानकारी को मासिक आधार पर रिपोर्ट करते थे, लेकिन अब उन्हें हर 15 दिन में इसे अपडेट करना होगा। यह बदलाव ग्राहकों की क्रेडिट जानकारी को तेजी से अद्यतन करेगा, जिससे उधारकर्ताओं के क्रेडिट स्कोर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
CIBIL स्कोर पर प्रभाव
क्रेडिट स्कोर एक तीन अंकों की संख्या है जो उधारकर्ता की क्रेडिट क्षमता को दर्शाता है। नई नीति के तहत, यदि कोई उधारकर्ता अपने लोन या क्रेडिट कार्ड का बिल समय पर चुका देता है, तो यह जानकारी उनके क्रेडिट हिस्ट्री में जल्दी दिखाई देगी, जिससे उनका क्रेडिट स्कोर जल्दी सुधर सकता है। वहीं, यदि कोई उधारकर्ता लोन ईएमआई या क्रेडिट कार्ड बिल में देरी करता है, तो यह जानकारी भी तेजी से अपडेट होगी, जो उनके क्रेडिट स्कोर पर नकारात्मक प्रभाव डालेगी।
ग्राहकों और वित्तीय संस्थानों को लाभ
इस नई व्यवस्था से ग्राहकों को कई फायदे होंगे। जैसे कि क्रेडिट जानकारी तेजी से अपडेट होने के कारण उधारकर्ताओं को अपने स्कोर को सुधारने में मदद मिलेगी, जिससे उन्हें लोन या क्रेडिट कार्ड के लिए स्वीकृति मिलने की संभावना बढ़ जाएगी।
वहीं, वित्तीय संस्थानों के लिए, नियमित रूप से मिलने वाली क्रेडिट जानकारी बेहतर जोखिम मूल्यांकन में मदद करेगी। इससे वे अधिक सतर्कता से उधारकर्ताओं की स्थिति का आकलन कर सकेंगे और ओवरलीवरेजिंग से बच सकेंगे।
RBI का निर्णय: हर दो हफ्ते में क्रेडिट जानकारी अपडेट
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा हर दो हफ्ते में क्रेडिट जानकारी अपडेट करने का निर्णय ग्राहकों और वित्तीय संस्थानों दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। यह बदलाव क्रेडिट रेटिंग में सुधार करने में मदद करेगा और लोन देने में गलती की संभावनाएं कम करेगा। इससे उधारकर्ताओं को अपने क्रेडिट स्कोर को जल्दी सुधारने का अवसर मिलेगा, जबकि वित्तीय संस्थान भी उधारकर्ताओं की वास्तविक स्थिति का बेहतर आकलन कर सकेंगे।