Stock Market Crash: ट्रंप की जीत के बाद भी बाजार में गिरावट, जानिए क्या हैं इसके 5 प्रमुख कारण

Stock Market Crash: ट्रंप की जीत के बाद भी बाजार में गिरावट, जानिए क्या हैं इसके 5 प्रमुख कारण
Last Updated: 1 दिन पहले

शेयर बाजार में गिरावट, अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद, भारतीय शेयर बाजार ने बुधवार को अभूतपूर्व तेजी का अनुभव किया था। सेंसेक्स फिर से 80 हजार के स्तर को पार कर गया था। हालांकि, गुरुवार को भारतीय बाजार ने एक दिन पहले की सभी बढ़त को खो दिया। सेंसेक्स और निफ्टी में लगभग 1-1 प्रतिशत की गिरावट आई है। आइए, हम इसके पीछे के कारणों को समझते हैं।

नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद बुधवार को भारतीय शेयर बाजार में काफी उत्साह देखा गया। दोनों प्रमुख सूचकांकों, सेंसेक्स और निफ्टी ने 1-1 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की। सेंसेक्स तो 80 हजार अंकों के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार करने में सफल रहा।

हालांकि, गुरुवार को भारतीय बाजार ने एक दिन पहले की सभी बढ़त को खो दिया। बुधवार को अमेरिकी बाजार में रिकॉर्ड तेजी के बावजूद, सेंसेक्स और निफ्टी में 1-1 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। आइए जानते हैं कि भारतीय स्टॉक मार्केट में इस भारी गिरावट के पीछे का कारण क्या है।

रुपये का रिकॉर्ड कमजोर होना

डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा रुपया लगातार कमजोर होती जा रही है। यह 84.35 रुपये के ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया है। इस दबाव का प्रभाव शेयर बाजार पर स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है, क्योंकि रुपये की कमजोरी का सीधा असर कंपनियों की आय पर भी पड़ेगा। यदि रुपये की कमजोरी का यह सिलसिला जारी रहता है, तो भारत की आर्थिक वृद्धि पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

फेडरल रिजर्व के निर्णय की प्रतीक्षा

आज, 7 नवंबर को, अमेरिकी फेडरल रिजर्व नीति ब्याज दरों पर महत्वपूर्ण निर्णय लेने जा रहा है। पिछली बैठक में, उन्होंने ब्याज दरों में आधा प्रतिशत की महत्वपूर्ण कमी की थी। हालांकि, इस बार आर्थिक संकेतक अमेरिकी अर्थव्यवस्था के सुधार का संकेत दे रहे हैं। इस स्थिति में, निवेशकों के बीच यह उलझन बनी हुई है कि फेडरल रिजर्व ब्याज दरों को लेकर क्या निर्णय लेगा।

कच्चे तेल में उछाल

ट्रम्प का वादा और निवेशकों की चिंता डोनाल्ड ट्रम्प ने चुनाव प्रचार के दौरान वादा किया था कि अगर वह राष्ट्रपति बनते हैं, तो ईरान के कच्चे तेल उत्पादन की सीमा कम कर देंगे। यह कदम ईरान की आय को कम करने और आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने के लिए उठाया जाएगा। अब, ट्रम्प के जीतने के बाद, इस वादे से कच्चे तेल के उत्पादन और आपूर्ति में बाधा आने की आशंका बढ़ गई है। इससे कच्चे तेल की कीमतों में अस्थिरता आने की संभावना है, जो निवेशकों के लिए चिंता का विषय है।

यदि ईरान का तेल उत्पादन कम होता है, तो वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की आपूर्ति घट सकती है, जिससे कीमतें बढ़ सकती हैं। यह न केवल उपभोक्ताओं को प्रभावित करेगा, बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी असर डाल सकता है। यह देखना बाकी है कि ट्रम्प अपने वादे को कैसे पूरा करेंगे और ईरान के कच्चे तेल उत्पादन पर क्या प्रभाव पड़ेगा। यह स्थिति वैश्विक तेल बाजार में उतार-चढ़ाव का कारण बन सकती है, जो निवेशकों और उपभोक्ताओं के लिए चुनौतियां पैदा कर सकता है।

 एफआईआई की रिकॉर्ड बिकवाली

बाजार को मिल रहा है झटका भारतीय शेयर बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) लगातार पैसा निकाल रहे हैं, जिससे बाजार को झटका लग रहा है। अक्टूबर महीने में एफआईआई ने भारतीय शेयर बाजार से 1 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा पैसा निकाला था, और नवंबर में भी यह रुझान जारी है। इस बिकवाली की वजह से बाजार को ठीक से उबरने का मौका नहीं मिल पा रहा है।

बुधवार को भी एफआईआई ने 4,445.59 करोड़ रुपये के शेयर बेचे, जिससे बाजार में गिरावट देखी गई। एफआईआई की इस लगातार बिकवाली के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिसमें वैश्विक आर्थिक मंदी की आशंका, भारतीय मुद्रा में कमज़ोरी, और अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी शामिल हैं।

एफआईआई की बिकवाली का भारतीय शेयर बाजार पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ रहा है। बाजार में अस्थिरता देखी जा रही है और निवेशकों में चिंता का माहौल है। अगर यह रुझान जारी रहा तो बाजार को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

कंपनियों के कमजोर नतीजे

निवेशकों के लिए चिंता का विषय देश की अधिकांश कंपनियों ने दूसरी तिमाही में वित्तीय प्रदर्शन में निराशा ही दी है। एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 48 प्रतिशत कंपनियां अपने अर्निंग गाइडेंस को पूरा करने में नाकाम रहीं। यह चिंता का विषय है क्योंकि कंपनियों का वैल्यूएशन भी पहले से ही अधिक है। निवेशक अब बिकवाली और मुनाफावसूली पर ज्यादा जोर दे रहे हैं।

इस स्थिति के कई कारण हैं, जैसे कि बढ़ती महंगाई, आपूर्ति श्रृंखला में बाधाएं, और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता। कंपनियां इन चुनौतियों से जूझ रही हैं और उनके प्रदर्शन पर इसका सीधा प्रभाव पड़ रहा है। निवेशकों के लिए यह समय कठिन है।

वे अपने पोर्टफोलियो में बदलाव करने के लिए मजबूर हैं और अधिक सतर्कता बरतने की जरूरत महसूस कर रहे हैं। कंपनियों को अपनी रणनीतियों में बदलाव करके इन चुनौतियों का सामना करना होगा, और निवेशकों को भी अपने निवेश के फैसलों को सावधानीपूर्वक लेना होगा।

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