Sarva Pitru Amavasya 2024: कब है सर्वपितृ अमावस्या? 01 या 02 October? जानें डेट और पूर्वजों की पूजा विधि

Sarva Pitru Amavasya 2024: कब है सर्वपितृ अमावस्या? 01 या 02 October? जानें डेट और पूर्वजों की पूजा विधि
Last Updated: 21 सितंबर 2024

हिंदू धर्म में सर्वपितृ अमावस्या का विशेष महत्व होता है। इस दिन लोग अपने पूर्वजों की विधिपूर्वक पूजा करके उन्हें याद करते हैं। इस दौरान सर्वपितृ अमावस्या के दिन पूर्वज पृथ्वी पर आते हैं, और उनके सम्मान में लोग ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र, और धन का दान करते हैं। यह दिन श्रद्धा और सम्मान प्रकट करने का महत्वपूर्ण अवसर है, जिसमें तर्पण करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है। यह केवल अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर है, बल्कि परिवार की परंपराओं और मूल्यों को भी सहेजने का अवसर प्रदान करता है। 

Pitru Amavasya 2024: हिंदू धर्म में अमावस्या का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है, और जब यह पितृ पक्ष के दौरान आती है, तो इसका महत्व और बढ़ जाता है। सर्वपितृ अमावस्या, जिसे महालया अमावस्या भी कहा जाता है, पितृ पक्ष के समापन का प्रतीक है।

इस साल, सर्वपितृ अमावस्या 2024 में 14 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस दिन पितरों की पूजा की जाती है, और लोग उन्हें तर्पण करके श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। यदि आप सही समय और विधि जानना चाहते हैं, तो इस दिन विशेष रूप से ध्यानपूर्वक पूजा करने की तैयारी करें।

कब है सर्वपितृ अमावस्या ?

सर्वपितृ अमावस्या 2024 के संदर्भ में, हिंदू पंचांग के अनुसार, यह अमावस्या तिथि 01 अक्टूबर, 2024 को रात 09 बजकर 39 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 03 अक्टूबर, 2024 को रात 12 बजकर 18 मिनट पर होगा।

इसलिए, सर्वपितृ अमावस्या विशेष रूप से 02 अक्टूबर, 2024 को मनाई जाएगी। यह दिन पितरों की पूजा और तर्पण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दिन किया गया तर्पण उन्हें मोक्ष प्रदान कर सकता है।

तर्पण विधि (Tarpan Vidhi)

पितृ पक्ष के दौरान तर्पण करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन करें:

1.  तर्पण करने से पहले एक जानकार पुजारी से मार्गदर्शन लें।

2. इस समय दक्षिण दिशा की ओर मुख करें।

3. तीन मुट्ठी जल लें और इसे अंगूठे और पहली उंगली के मध्य भाग से अर्पित करें।

4. तर्पण के लिए कुश, अक्षत, जौ और काले तिल का उपयोग करें।

5. इसके बाद पितरों के लिए प्रार्थना मंत्र का जाप करें।

6. जौ और कुश का उपयोग करते हुए ऋषियों के लिए तर्पण करें।

7. इसके बाद, उत्तर दिशा की ओर मुख करके जौ और कुश से मानव तर्पण करें।

इस विधि का पालन करते हुए पितरों का सम्मान करें और उन्हें श्रद्धा से याद करें।

 

 

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