हिन्दू दिवस के अनुसार नवसंवत्सर (नया साल) चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नवरात्री के साथ शुरू होती है। इस बार नौ अप्रैल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से लेकर 17 अप्रैल नवमी तक चैत्र नवरात्री का त्योहार है। शक्ति की अधिष्ठात्री देवी मां जगदंबा की पूजा-आराधना का यह विशेष पर्व वासंतिक नवरात्र इस साल पूरे नौ दिन का होगा।
वाराणसी: चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू नवसंवत्सर (नया साल) की शुरुआत होने वाली हैं. इसी दिन से नौ दिनों के वासंतिक या चैत्र नवरात्र भी प्रारंभ होंगे। इस बार नवरात्रा नौ अप्रैल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होकर नवमी 17 अप्रैल को समापन होगा। शक्ति की अधिष्ठात्री देवी मां जगदंबा की पूजा-आराधना का यह विशेष पर्व पूरे नौ दिन तक चलेगा। सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) में चैत्र मास को विशिष्ट स्थान दिया है, क्योकि इस महीने के पहले दिन हिन्दू वर्ष का नया साल प्रारंभ होता हैं।
नवरात्री का शुभ मुहूर्त
जानकारी के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि में भगवान ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना आरंभ की थी। इसलिए नौ दिन तक देवी की आराधना के लिए व्रत रखा जाता है, जिसे नवरात्र कहां गया है। विख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी ने Subkuz.com को बताया कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा आठ अप्रैल को लग्नानुसार रात्रि 11:55 बजे शुरू होगा जो नौ अप्रैल को रात 9:41 मिनट तक रहेगी। उदयातिथि अनुसार नौ अप्रैल को पूरा दिन नवरात्रारंभ के लिए शुभ होगा। नवरात्र को विवाह, लग्न और दसोठन के साथ समस्त शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त माना जाता है और विविध योगों में विशिष्ट माना जाता हैं।
कलश स्थापना का शुभ समय
ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी ने बताया कि शुभ योगों के साथ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा में प्रात:काल के समय अशुभ योग का संयोग बना हुआ है। इसलिए घट स्थापन का अभिजित मुहूर्त (शुभ मुहूर्त) दिन के 11:32 बजे से लेकर दोपहर 12:25 बजे तक रहेगा। शास्त्र में वैधृति योग (अशुभ योग) में घट स्थापन करना को निषेध बताया गया है। कहां गया है-'वैधृति पुत्रनाशिनी'। अर्थात वैधृति योग में किया गया घट स्थापन या शुभ कार्य पुत्र का नाश करने वाला होता हैं।
16 अप्रेल को महा अष्टमी व्रत
जानकारी के मुताबिक महा निशा पूजन सप्तमी और अष्टमी की मध्य रात्रि (निशिथ व्यापिनी) काल में किया जाता है जो 15-16 अप्रैल की मध्य रात्रि को पड़ने वाला है. इस दिन अष्टमी योग होने से महानिशा व बलिदान जैसे आदि कार्य किए जाते है। महाअष्टमी व्रत और पूजा 16 अप्रैल को की जाएगी। नवमी तिथि में 17 अप्रैल को रामनवमी होने के कारण इनका व्रत रखा जाएगा। साथ ही इस दिन नवरात्र का हवन-अनुष्ठान भी किया जाएगा। चढ़ती-उतरती मतलब पहला व अंतिम दिन व्रत रखने वाले लोग महाष्टमी व्रत का समापन या उध्यापन नवमी तिथि में 17 अप्रैल को करेंगे।