Pitru Paksha 2024: पितृ पक्ष में क्यों किया जाता है गंगा स्नान? 17 सितंबर को है पहला श्राद्ध, जानें कैसे हुआ पवित्र नदी का पृथ्वी पर अवतरण?

Pitru Paksha 2024: पितृ पक्ष में क्यों किया जाता है गंगा स्नान? 17 सितंबर को है पहला श्राद्ध, जानें कैसे हुआ पवित्र नदी का पृथ्वी पर अवतरण?
Last Updated: 16 सितंबर 2024

सनातन धर्म में गंगाजल को अत्यधिक पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है, और इसका उपयोग पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठानों और शुभ अवसरों पर किया जाता है। पितृ पक्ष के दौरान गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है। पितृ पक्ष की यह अवधि, जो 16 दिनों की होती है, उन पितरों (पूर्वजों) को समर्पित होती है, जो इस दुनिया से विदा हो चुके हैं।

धार्मिक डेस्क: पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2024) के दौरान शुभ और मांगलिक कार्य करना वर्जित माना गया है। इस वर्ष पितृ पक्ष की शुरुआत 17 सितंबर से होगी और इसका समापन 02 अक्टूबर को होगा। मान्यता है कि पितृ पक्ष में गंगा स्नान (गंगा स्नान के लाभ) करने से साधक को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। क्या आप जानते हैं कि मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण कैसे हुआ? अगर नहीं, तो आइए इस कथा को पढ़ते हैं।

मां गंगा का कैसे हुआ अवतरण?

राजा सगर सूर्यवंश के प्रसिद्ध राजा थे और उनके 60,000 पुत्र थे। एक बार राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ के दौरान, उनका यज्ञीय अश्व (घोड़ा) अचानक गायब हो गया। राजा ने अपने पुत्रों को घोड़े की खोज में भेजा। उनकी खोज ने उन्हें ऋषि कपिल के आश्रम में पहुंचा दिया, जहां उन्हें घोड़ा मिला। उन्होंने सोचा कि ऋषि ने घोड़ा चुरा लिया है, और वे ऋषि पर हमला करने लगे। इस अपमान से क्रोधित होकर, ऋषि ने उन्हें शाप दे दिया और सभी 60,000 पुत्र वहीं पर भस्म हो गए।

राजा सगर के वंश में कई पीढ़ियाँ बीत गईं, लेकिन उनके भस्म हुए पुत्रों की आत्माएं पृथ्वी पर शांति प्राप्त नहीं कर सकीं, क्योंकि उनके आत्मा का उद्धार नहीं हो पाया था। यह कार्य केवल गंगा के पवित्र जल से ही संभव था। यह माना गया कि यदि गंगा जल उन पर डाला जाए, तो वे मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। सगर के वंशज, राजा भागीरथ, अपने पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तपस्या करने लगे। उन्होंने भगवान ब्रह्मा की कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने गंगा को पृथ्वी पर आने का वरदान दिया।

लेकिन समस्या यह थी कि गंगा की अविरल धारा इतनी शक्तिशाली थी कि उसके पृथ्वी पर गिरने से पृथ्वी का विनाश हो सकता था। इसलिए, राजा भागीरथ ने भगवान शिव की तपस्या की ताकि वे गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर पृथ्वी पर आने से पूर्व उसे नियंत्रित कर सकें। भगवान शिव ने राजा भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा की धारा को अपनी जटाओं में धारण कर लिया। इसके बाद शिवजी ने अपनी जटाओं से गंगा को धीरे-धीरे पृथ्वी पर प्रवाहित किया। इस प्रकार, गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ और भागीरथ ने गंगा जल को अपने पूर्वजों के भस्म पर डाला, जिससे उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ। इस घटना के कारण गंगा को "भागीरथी" भी कहा जाता हैं।

पितृपक्ष पर दान का महत्व

राजा बलि असुरों के राजा थे और महान पराक्रमी एवं दानी राजा के रूप में जाने जाते थे। वह असुरों के गुरु शुक्राचार्य के शिष्य थे। अपनी भक्ति, तपस्या और शक्तिशाली सेना के बल पर राजा बलि ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था, और इंद्र सहित सभी देवता पराजित हो गए थे। राजा बलि की शक्ति से देवता अत्यधिक चिंतित थे। देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे राजा बलि से तीनों लोकों को मुक्त करें। भगवान विष्णु ने देवताओं की प्रार्थना स्वीकार की और वामन अवतार धारण किया। वामन अवतार में भगवान विष्णु एक छोटे ब्राह्मण के रूप में प्रकट हुए।

वामन अवतार में भगवान विष्णु राजा बलि के पास पहुंचे, जब बलि यज्ञ कर रहे थे। राजा बलि ने ब्राह्मण वामन को देखकर प्रसन्न होकर उन्हें दान देने का वचन दिया। वामन ने राजा बलि से केवल तीन पग भूमि का दान माँगा। राजा बलि ने इस छोटे से दान को सुनकर हंसते हुए सहर्ष इसे स्वीकार किया। हालांकि, बलि के गुरु शुक्राचार्य को तुरंत समझ में गया कि यह ब्राह्मण कोई और नहीं, स्वयं भगवान विष्णु हैं और वे बलि को चेतावनी देने लगे कि वामन रूप में भगवान विष्णु उन्हें छलने आए हैं। लेकिन राजा बलि ने उनकी चेतावनी को अनसुना कर दिया और कहा कि अगर यह भगवान विष्णु हैं, तो मैं उन्हें दान देने में गर्व महसूस करता हूँ। वह अपने वचन से पीछे हटने को तैयार नहीं थे।

दान स्वीकार करने के बाद, वामन भगवान ने अपना रूप विशाल कर लिया और एक पग से पूरा आकाश (स्वर्गलोक) और दूसरे पग से पृथ्वी (मृत्युलोक) नाप लिया। अब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा, तो बलि ने भगवान से कहा कि वह अपना तीसरा पग उनके सिर पर रखें। भगवान वामन ने बलि के सिर पर तीसरा पग रखा, जिससे बलि पाताल लोक (नरक लोक) में चले गए। भगवान वामन ने राजा बलि की भक्ति, निष्ठा और दानशीलता से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि वह पाताल लोक के राजा बनेंगे और त्रेतायुग के बाद पुनः स्वर्ग के राजा बन जाएंगे। इसके अलावा, भगवान विष्णु ने राजा बलि को अमरत्व का आशीर्वाद भी दिया और कहा कि वह हमेशा उनकी रक्षा करेंगे

 

 

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