Konark Surya Mandir: ओडिशा के कोणार्क सूर्य मंदिर का इतिहास, जानिए इससे जुड़े रोचक तथ्य, और पौराणिक धार्मिक कथाएं

Konark Surya Mandir: ओडिशा के कोणार्क सूर्य मंदिर का इतिहास, जानिए इससे जुड़े रोचक तथ्य, और पौराणिक धार्मिक कथाएं
Last Updated: 13 सितंबर 2024

कोणार्क सूर्य मंदिर, ओडिशा का यह अद्भुत मंदिर 772 साल पुराना है और वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। बलुआ पत्थर और ग्रेनाइट से निर्मित यह मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है और अपने ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।

Konark Sun Temple odisha in Hindi: कोणार्क सूर्य मंदिर, जिसे "ब्लैक पैगोडा" भी कहा जाता है, भारत के ओडिशा राज्य में स्थित एक विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है। यह मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है और इसे भारतीय वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में राजा नरसिम्हा देव प्रथम द्वारा करवाया गया था, जो पूर्वी गंग वंश के शासक थे। कोणार्क सूर्य मंदिर अपनी भव्यता, वास्तुकला, और मिथकों के लिए विश्व धरोहर स्थलों में शामिल है।

कोणार्क सूर्य मंदिर का इतिहास

- कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण 1250 ईस्वी में हुआ था। यह मंदिर उस समय की शिल्प कला और सूर्य उपासना का प्रतीक है।

- मंदिर को सूर्य देवता के रथ के रूप में डिजाइन किया गया था, जिसमें 12 जोड़ी विशाल पहिये और 7 घोड़े थे, जो सूर्य की तेज गति को दर्शाते हैं।

- मंदिर के प्रमुख संरचनात्मक भागों में गर्भगृह (मुख्य मंदिर), नट मंडप (प्रार्थना हॉल), और जगमोहन (प्रवेश मंडप) शामिल हैं।

- इसका उद्देश्य सूर्य देवता के प्रति असीम श्रद्धा व्यक्त करना था। यह मंदिर 13वीं शताब्दी की वास्तुकला और मूर्तिकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

मंदिर निर्माण में 12 वर्ष से अधिक लगा समय

कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण 12 साल से अधिक समय में किया गया था, और इससे जुड़ी कई रोचक और पौराणिक कहानियाँ हैं। एक प्रमुख कथा यह है कि इस मंदिर के निर्माण में 1200 कुशल शिल्पकारों ने मिलकर काम किया, लेकिन मंदिर पूरी तरह से पूरा नहीं हो पाया था।

मुख्य शिल्पकार सिबाई महराना (या दिसुमुहराना) इस निर्माण के प्रमुख थे। जब मंदिर का निर्माण अधूरा रह गया था, तो उनके बेटे धर्मपदा ने हस्तक्षेप किया। कथा के अनुसार, धर्मपदा ने मात्र 12 वर्ष की आयु में इस चुनौती को स्वीकार किया और मंदिर के निर्माण का कार्य पूरा किया। हालांकि, इसे पूरा करने के बाद, उसे यह भय हुआ कि उसके इस कार्य से अन्य शिल्पकारों की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचेगी और लोग उसकी प्रतिभा के बारे में सवाल उठाएंगे। इस अपराध बोध और शिल्पकारों के संभावित गुस्से से बचने के लिए धर्मपदा ने चंद्रभागा नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली।

मंदिर के प्रवेश द्वार पर स्थित दो प्रमुख मूर्तियाँ, जिनमें सिंह के नीचे हाथी और हाथी के नीचे मानव शरीर है, यह शक्ति और साहस का प्रतीक मानी जाती हैं। इसके अलावा, चंद्रभागा नदी, जो पहले मंदिर के पास बहती थी, आज विलुप्त हो चुकी है, लेकिन इस नदी से जुड़ी कहानियाँ और पौराणिक घटनाएँ अब भी इस क्षेत्र में प्रचलित हैं।

मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य

सूर्य देव का रथ- कोणार्क मंदिर को सूर्य देवता के रथ के रूप में बनाया गया है, जिसमें 12 विशाल पहिए हैं। ये पहिए साल के 12 महीनों और 24 उपखंडों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो दिन-रात के 24 घंटे को दर्शाते हैं।

चुंबकीय प्रभाव- कहा जाता है कि मंदिर की संरचना में एक विशाल चुंबकीय पत्थर का प्रयोग किया गया था, जिससे मंदिर की मूर्तियों को संतुलन मिला। समुद्र में चलने वाले जहाजों के कम्पास को इस चुंबकीय पत्थर की वजह से दिशाओं का पता लगाने में कठिनाई होती थी।

ब्लैक पैगोडा- यह मंदिर "ब्लैक पैगोडा" के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह मंदिर काले ग्रेनाइट पत्थरों से बना है और इसे नाविक दूर से काले रंग का देखा करते थे।

युनेस्को विश्व धरोहर स्थल- 1984 में कोणार्क सूर्य मंदिर को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया था। यह भारत के सबसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक धरोहरों में से एक है।

संगीत और नृत्य- मंदिर की दीवारों पर अनेक नृत्य और संगीत संबंधी प्रतिमाएं उकेरी गई हैं, जो तत्कालीन समाज और सांस्कृतिक जीवन को दर्शाती हैं।

पौराणिक और धार्मिक कथाएं

सम्बा की कथा- पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र सम्बा को कुष्ठ रोग हो गया था। उन्होंने सूर्य देवता की उपासना की और कोणार्क के पास चंद्रभागा नदी के किनारे तपस्या की। सूर्य देवता उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें रोगमुक्त कर दिया। इसके बाद, सम्बा ने सूर्य देवता को समर्पित एक भव्य मंदिर बनवाया, जो कोणार्क सूर्य मंदिर के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

सूर्य देव की पूजा- यह मंदिर सूर्य देवता की पूजा का एक प्रमुख स्थल रहा है। सूर्य देव को जीवन और स्वास्थ्य का स्रोत माना जाता है, और मंदिर में उनकी तीन प्रतिमाएं स्थापित हैं, जो दिन के तीन हिस्सों - सुबह, दोपहर और शाम - में सूर्य के विभिन्न रूपों को दर्शाती हैं।

वास्तुकला और मूर्तिकला

- मंदिर की वास्तुकला और नक्काशीदार मूर्तियां अद्वितीय हैं। यहां दीवारों पर मानव आकृतियों के साथ-साथ जानवरों, फूलों और दैनिक जीवन से संबंधित अनेक चित्र उकेरे गए हैं।

- मंदिर की प्रमुख विशेषताओं में योद्धाओं, नर्तकियों, देवताओं और देवी-देवताओं की मूर्तियों का उत्कृष्ट विवरण है, जो तत्कालीन समाज और संस्कृति का प्रतीक हैं।

- मंदिर की कामुक मूर्तियां भी खजुराहो की शैली में प्रेम और सौंदर्य का प्रतीक हैं।

कोणार्क मंदिर का वर्तमान स्थिति

- समय और प्राकृतिक आपदाओं के कारण मंदिर का अधिकांश भाग क्षतिग्रस्त हो गया है। हालांकि, इसका प्रमुख ढांचा आज भी देखने लायक है।

- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा मंदिर की संरचना की सुरक्षा के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया जा सके।

- कोणार्क सूर्य मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भारतीय इतिहास, कला, संस्कृति और धार्मिक धरोहर का एक अद्वितीय प्रतीक भी है।

 

 

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