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काशी विश्वनाथ मंदिर: शिव का ज्योतिर्लिंग, आस्था और मोक्ष का प्रतीक

काशी विश्वनाथ मंदिर: शिव का ज्योतिर्लिंग, आस्था और मोक्ष का प्रतीक

भारत की आत्मा उसकी सनातन संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में बसती है। इन्हीं में से एक अत्यंत पूज्यनीय तीर्थस्थल है – काशी विश्वनाथ मंदिर, जो भगवान शिव को समर्पित है और वाराणसी में स्थित है। यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक चेतना और मुक्ति की खोज का केंद्र भी है। विश्वनाथ यानी 'विश्व का अधिपति' – यह नाम ही इस मंदिर की दिव्यता और महत्व का बोध कराता है। यह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और शिवभक्तों के लिए अत्यंत पुण्यदायी स्थल माना जाता है।

इतिहास की गहराइयों में काशी विश्वनाथ

काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास केवल ईंट और पत्थरों की गाथा नहीं, बल्कि आस्था, विध्वंस, पुनर्निर्माण और भक्ति की अनोखी यात्रा है। इसका प्रारंभिक स्वरूप 'आदि विश्वेश्वर' के नाम से जाना जाता था। 12वीं शताब्दी में मोहम्मद गौरी द्वारा इस मंदिर को नष्ट किया गया। इसके बाद मुगल काल में कई बार इस मंदिर का पुनर्निर्माण और विनाश होता रहा। सम्राट अकबर के शासनकाल में राजा मान सिंह और टोडरमल ने इसका पुनर्निर्माण कराया, परंतु औरंगजेब ने 1669 में इसे फिर ध्वस्त कर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करवाया। मंदिर का वर्तमान स्वरूप 1780 में इंदौर की मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया, जो आज तक भक्ति की लौ को प्रज्वलित किए हुए है।

दंतकथाओं की दृष्टि से ज्योतिर्लिंग का उद्गम

कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा और विष्णु जब अपनी-अपनी श्रेष्ठता पर विवाद कर रहे थे, तब शिव एक अनंत प्रकाश स्तंभ – ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। विष्णु वराह रूप में नीचे गए और ब्रह्मा हंस रूप में ऊपर गए, परंतु स्तंभ की कोई सीमा न पा सके। विष्णु ने सच्चाई स्वीकारी, जबकि ब्रह्मा ने झूठ का सहारा लिया। फलस्वरूप शिव ने ब्रह्मा को श्राप दिया कि वे पृथ्वी पर पूजित नहीं होंगे। इसी घटना से ज्योतिर्लिंगों की उत्पत्ति मानी जाती है, जिनमें काशी विश्वनाथ का स्थान सर्वोपरि है।

काशी: शिव का अविमुक्त क्षेत्र

काशी को शिव का प्रिय निवास और 'अविमुक्त क्षेत्र' कहा जाता है, जिसका अर्थ है वह स्थान जिसे शिव ने कभी नहीं छोड़ा। यह वह भूमि है जहाँ मृत्यु भी मोक्ष का द्वार बन जाती है। यह विश्वास है कि शिव स्वयं अपने भक्तों के कान में मृत्यु के समय "तारक मंत्र" फूँकते हैं और उन्हें मुक्ति प्रदान करते हैं। यही कारण है कि यहां मृत्यु को भी सौभाग्य माना जाता है।

मंदिर की स्थापत्य कला: दिव्यता का प्रतीक

वर्तमान मंदिर की संरचना विशिष्ट हिंदू स्थापत्य कला की मिसाल है। मंदिर का शिखर लगभग 15.5 मीटर ऊँचा है और इसे सोने की परत से मढ़ा गया है। गर्भगृह में स्थापित लिंग 60 सेमी ऊँचा और 90 सेमी परिधि वाला है, जो चाँदी की वेदी पर स्थापित है। मंदिर का मुख्य परिसर चतुर्भुजाकार है, जिसके चारों ओर अन्य देवताओं – कार्तिकेय, गणेश, काल भैरव, शनि, पार्वती, विष्णु और अविमुक्तेश्वर के मंदिर हैं। मंदिर के तीन सोने के गुंबद महाराजा रणजीत सिंह द्वारा दान किए गए थे।

ज्ञानवापी कुआँ: इतिहास की मौन गवाही

मंदिर परिसर में स्थित ज्ञानवापी कुआँ एक रहस्यमय और पवित्र स्थल है। किंवदंती है कि मुगलों के आक्रमण के समय, पुजारियों ने ज्योतिर्लिंग को इसी कुएँ में छिपा दिया था और स्वयं उसकी रक्षा हेतु उसमें कूद पड़े। यह कुआँ आज भी मंदिर और मस्जिद के बीच स्थित है और इतिहास की मौन गवाही देता है।

काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर: आधुनिक भारत की आध्यात्मिक भेंट

2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी विश्वनाथ मंदिर और गंगा नदी के बीच सुगम मार्ग सुनिश्चित करने के लिए 'काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर' परियोजना की शुरुआत की। 2021 में इसका उद्घाटन हुआ। इस परियोजना के अंतर्गत 40 से अधिक प्राचीन मंदिरों का पुनर्निर्माण किया गया और तीर्थयात्रियों के लिए आधुनिक सुविधाओं की व्यवस्था की गई।

धार्मिक परंपराएं और आयोजन

काशी विश्वनाथ मंदिर में विविध धार्मिक आयोजन होते हैं जो श्रद्धालुओं को भक्ति के रस में सराबोर कर देते हैं। फाल्गुन शुक्ल एकादशी को 'रंगभरी एकादशी' के रूप में मनाया जाता है, जब पार्वती का गौना कर बाबा विश्वनाथ के साथ होता है। वसंत पंचमी पर तिलक, महाशिवरात्रि पर विवाह और रंगभरी एकादशी पर पार्वती का विदा समारोह होता है। सप्तऋषि आरती और मंगला आरती की परंपराएं भी इस मंदिर की विशिष्टता को दर्शाती हैं।

दर्शन की परंपरा और तीर्थ का महत्व

हिंदू धर्म में काशी विश्वनाथ के दर्शन और गंगा स्नान को अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि यह तीर्थ यात्रा मोक्ष की ओर पहला कदम होती है। परंपरा है कि काशी दर्शन के बाद श्रद्धालु रामेश्वरम की यात्रा करते हैं और वहाँ गंगा जल अर्पित करते हैं।

पर्यटन और सुविधाएँ

वाराणसी भारत के प्रमुख शहरों में से एक है और यहाँ हवाई, रेल और सड़क मार्ग से पहुँचना अत्यंत सरल है। लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डा, वाराणसी रेलवे स्टेशन और बस अड्डे शहर को भारत के अन्य हिस्सों से जोड़ते हैं। मंदिर के पास कई धर्मशालाएँ, होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं। मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित विश्रामगृह तीर्थयात्रियों को सुलभ आवास प्रदान करता है।

आधुनिक प्रबंधन और तकनीकी पहल

1983 से मंदिर का संचालन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा नियुक्त न्यासी बोर्ड द्वारा किया जा रहा है। मंदिर की साफ-सफाई, सुरक्षा और पूजन व्यवस्था को व्यवस्थित और पारदर्शी बनाया गया है। साथ ही, मंदिर में फूलों की पुनर्चक्रण प्रक्रिया भी शुरू की गई है, जो पर्यावरणीय दृष्टि से एक महत्वपूर्ण पहल है।

काशी विश्वनाथ मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का अमूल्य प्रतीक भी है। यह मंदिर जीवन, मृत्यु और मोक्ष के रहस्यों को समेटे हुए हर भक्त को शिव से जोड़ने का माध्यम बनता है।

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