Harivansh Rai Bachchan: हरिवंश राय बच्चन की पुण्य तिथि 18 जनवरी को मनाई जाती है। यह दिन उनके निधन का दिन भी था, जब उन्होंने मुंबई में सांस की बीमारी के कारण अंतिम सांस ली। हरिवंश राय बच्चन, जिनका जन्म 27 नवम्बर 1907 को प्रयाग (वर्तमान में इलाहाबाद) में हुआ, हिंदी साहित्य के महान कवि और लेखक थे। वे हिंदी कविता के छायावादी काव्य धारा के उत्तरवर्ती कवियों में से एक थे। उनकी सबसे प्रसिद्ध काव्य रचनाओं में 'मधुशाला' शामिल है, जो आज भी हिंदी साहित्य प्रेमियों के बीच अत्यंत लोकप्रिय है। उनका जीवन न केवल काव्य रचनाओं से, बल्कि भारतीय समाज और संस्कृति के प्रति उनके समर्पण से भी प्रेरणा का स्रोत बना हुआ हैं।
शिक्षा और प्रारंभिक करियर
हरिवंश राय बच्चन का शैक्षिक जीवन अत्यंत प्रभावशाली था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. किया और फिर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में पीएच.डी. की। उनकी पीएच.डी. का विषय डब्लू. बी. यीट्स की कविताओं पर था। इसके बाद, उन्होंने कुछ समय तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के शिक्षक के रूप में कार्य किया और फिर भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के रूप में अपनी सेवा दी।
विवाह और पारिवारिक जीवन
बच्चन जी का विवाह 1926 में श्यामा बच्चन से हुआ था, जो उस समय केवल 14 वर्ष की थीं। हालांकि, 1936 में श्यामा की मृत्यु टीबी के कारण हो गई। इसके पश्चात, 1941 में उन्होंने तेजी सूरी से विवाह किया, जो रंगमंच और गायन से जुड़ी हुई थीं। इस विवाह के बाद, उन्होंने ‘नीड़ का निर्माण फिर’ जैसी प्रेरणादायक कविताएं लिखीं। उनके पुत्र अमिताभ बच्चन, भारतीय फिल्म उद्योग के महान अभिनेता हैं, जिनका नाम आज पूरी दुनिया में जाना जाता हैं।
साहित्यिक योगदान और प्रसिद्ध कृतियाँ
• मधुशाला (1935)
• आत्म परिचय (1937)
• निशा निमंत्रण (1938)
• एकांत संगीत (1939)
• मिलन यामिनी (1950)
• प्रणय पत्रिका (1955)
• दो चट्टानें (1965)
• नीड़ का निर्माण फिर (1970)
• क्या भूलूं क्या याद करूं (1969)
इसके अलावा, उन्होंने 'प्रवासी की डायरी', 'आज के लोकप्रिय हिंदी कवि', 'पंत के सौ पत्र' जैसी अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकों का लेखन किया, जिनका साहित्य जगत में विशेष स्थान हैं।
सम्मान और पुरस्कार
हरिवंश राय बच्चन को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कारों और सम्मान से नवाजा गया था। 1968 में उन्हें उनकी काव्य रचना ‘दो चट्टानें’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। इसके अलावा, उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और एफ्रो-एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। 1976 में भारत सरकार ने उन्हें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया।
2002 के सर्दियों में उनकी तबियत बिगड़ने लगी और जनवरी 2003 में उन्हें सांस लेने में गंभीर दिक्कत होने लगी। 18 जनवरी 2003 को मुंबई में उनकी मृत्यु हो गई, जिससे भारतीय साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति हुई।
काव्य शैली और प्रभाव
हरिवंश राय बच्चन की कविताएं आम जनमानस से जुड़ी हुई थीं। उन्होंने अपनी कविताओं में जीवन के सभी पहलुओं—प्रेम, निराशा, संघर्ष, और आशा—को अभिव्यक्त किया। उनकी काव्य शैली में गहरी संवेदनशीलता और मानवीयता झलकती थी। उनके द्वारा रचित ‘मधुशाला’ जैसे काव्यग्रंथ न केवल साहित्यिक रूप से महत्वपूर्ण थे, बल्कि उन्होंने हिंदी कविता को एक नया आयाम दिया। उनका योगदान हिंदी साहित्य के इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा।
समाज और साहित्य में योगदान
बच्चन जी का योगदान न केवल साहित्य तक सीमित था, बल्कि उन्होंने भारतीय समाज में शिक्षा और संस्कृति के प्रचार-प्रसार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अपने समय के सामाजिक मुद्दों को अपनी कविताओं में उठाया और लोगों को जागरूक किया। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि साहित्य के माध्यम से समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता हैं।
हरिवंश राय बच्चन का जीवन और उनका साहित्यिक योगदान आज भी भारतीय साहित्य और समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी काव्य रचनाओं ने न केवल साहित्य की दुनिया को समृद्ध किया, बल्कि भारतीय समाज को भी जागरूक किया। उनका नाम हमेशा हिंदी साहित्य में अमर रहेगा और उनकी कविताएं आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शन का काम करेंगी।