Jaishankar Prasad's Birth Anniversary: जयशंकर प्रसाद की जयंती 30 जनवरी को मनाई जाती है। उनका जन्म 30 जनवरी 1889 को काशी (वाराणसी) में हुआ था। प्रसाद जी हिंदी साहित्य के महान कवि, नाटककार, कहानीकार और उपन्यासकार थे। वे छायावादी काव्यधारा के प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उनकी काव्य रचनाएँ जीवन के सूक्ष्म और व्यापक आयामों को चित्रित करती हैं, और उनका लेखन न केवल साहित्यिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।
इस दिन को साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्थान जयशंकर प्रसाद के योगदान को याद करते हुए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।
जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय
30 जनवरी 1889 को काशी में जन्मे जयशंकर प्रसाद हिन्दी साहित्य के महान कवि, नाटककार, कहानीकार और उपन्यासकार थे। उन्होंने हिन्दी काव्य में छायावाद की स्थापना की, जिससे काव्य के क्षेत्र में एक नई लहर उत्पन्न हुई। प्रसाद जी की काव्य-रचनाओं ने हिन्दी साहित्य को न केवल नये दृष्टिकोण से जोड़ा, बल्कि उन्होंने खड़ी बोली हिन्दी को काव्य की प्रमुख भाषा बना दिया। वे हिन्दी साहित्य के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं।
शिक्षा और जीवन के प्रारंभिक दिन
प्रसाद जी का जन्म काशी में हुआ था और उनका परिवार कला व साहित्य के प्रति गहरे रुचि रखने वाला था। उनके पितामह बाबू शिवरतन साहू दान देने के लिए प्रसिद्ध थे, वहीं उनके पिता बाबू देवीप्रसाद भी कलाकारों का सम्मान करते थे। काशी की संस्कृति ने प्रसाद जी को शास्त्रीय शिक्षा की ओर अग्रसर किया। क्वींस कालेज में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद, वे घर पर ही संस्कृत और हिन्दी का अध्ययन करने लगे। उनके गुरु रसमय सिद्ध और अन्य विद्वान शिक्षकों के प्रभाव से उनका साहित्यिक विकास हुआ।
प्रसाद जी की कविताओं का आरंभ और महत्त्व
प्रसाद जी की कविता यात्रा की शुरुआत 1901 में हुई जब उन्होंने 'कलाधर' के नाम से व्रजभाषा में एक सवैया लिखा। उनकी पहली प्रकाशित कविता ‘सावक पंचक’ 1906 में भारतेंदु पत्रिका में प्रकाशित हुई। उनके पहले कविता संग्रह 'प्रेम-पथिक' ने उन्हें ख्याति दिलाई, जिसमें प्रेम और मानवता के विविध रूपों को चित्रित किया गया था। इसके बाद, उनकी कई प्रमुख काव्य रचनाएँ प्रकाशित हुईं, जिनमें 'कानन-कुसुम', 'झरना' और 'कामायनी' प्रमुख हैं।
जयशंकर प्रसाद की काव्य-शिखर
1936 में प्रकाशित 'कामायनी' प्रसाद जी की काव्य रचनाओं का शिखर मानी जाती है। यह महाकाव्य भारतीय मनोविज्ञान और दर्शन का अद्भुत मिश्रण है, जिसमें प्रेम, आत्मा और मानवता की गहरी बातें साकार रूप में पाई जाती हैं। इस काव्य में प्रसाद ने सात वर्षों की कठिन तपस्या के बाद इसके रूप और स्वरूप को साकार किया।
जीवन में कठिनाइयाँ और व्यक्तिगत संघर्ष
प्रसाद जी का जीवन व्यक्तिगत कठिनाइयों और दुखों से भरा रहा। उन्होंने तीन विवाह किए, जिनमें से दो की मृत्यु क्षय रोग के कारण हुई। इसके बावजूद, उन्होंने अपने जीवन को सृजनात्मकता की ओर मोड़ा और साहित्य के क्षेत्र में योगदान दिया। जीवन के अंत में भी वे क्षय रोग से ग्रस्त रहे और 14 नवंबर 1937 को काशी में उनका निधन हो गया।
कहानी लेखन में योगदान
प्रसाद जी की कहानी लेखन भी उतनी ही महत्वपूर्ण रही है। उनकी पहली कहानी 'ग्राम' 1912 में प्रकाशित हुई थी। उनके कहानी-संग्रह 'छाया', 'उर्वशी', और 'चित्राधार' ने भारतीय साहित्य को नए आयाम दिए। उनकी कहानियाँ न केवल समाजिक संदर्भ में महत्वपूर्ण थीं, बल्कि उनमें मानवीय भावनाओं और संवेदनाओं की गहरी समझ थी।
काव्य की विशेषताएँ और छायावाद
प्रसाद जी की कविताओं में छायावाद की गहरी छाप है। उनका काव्य प्राकृतिक सौंदर्य, भावनाओं की गहराई और प्रतीकात्मकता से भरपूर है। उनकी रचनाएँ प्रकृति, प्रेम और करुणा के विभिन्न आयामों को प्रस्तुत करती हैं। 'झरना' और 'लहर' जैसे संग्रहों में प्रेम और करुणा की उदात्त अभिव्यक्ति देखने को मिलती हैं।
जयशंकर प्रसाद हिन्दी साहित्य के अमर कवि हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं से न केवल छायावाद को प्रतिष्ठित किया, बल्कि भारतीय साहित्य को नई दिशा दी।
उनका योगदान आज भी हमें प्रेरणा देता है। उनके काव्य, नाटक और कहानियाँ न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि समाज और मानवता के प्रति उनकी संवेदनशीलता भी अभूतपूर्व है। उनकी काव्य यात्रा ने हिन्दी साहित्य को एक स्थायी धरोहर प्रदान की है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक बनेगी।