मल्टीपल स्केलेरोसिस (एमएस) एक गंभीर न्यूरोलॉजिकल रोग है, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करता है। अब एक नए शोध में यह खुलासा हुआ है कि आंत में मौजूद सूक्ष्म जीव यानी 'गट माइक्रोबायोम' इस बीमारी के जोखिम को बढ़ा सकते हैं। इस खोज से एमएस के बेहतर इलाज और रोकथाम के नए रास्ते खुल सकते हैं।
कैसे जुड़ा है गट माइक्रोबायोम और एमएस?
हमारी आंत में खरबों बैक्टीरिया मौजूद होते हैं, जो न सिर्फ पाचन बल्कि संपूर्ण स्वास्थ्य पर असर डालते हैं। येल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि एमएस के मरीजों की आंत में मौजूद बैक्टीरिया सामान्य लोगों की तुलना में अलग होते हैं, जिससे इस बीमारी की संभावना बढ़ जाती है।
क्या कहती है रिसर्च?
प्रमुख मेडिकल जर्नल 'न्यूरोलॉजी न्यूरोइम्यूनोलॉजी एंड न्यूरोइन्फ्लेमेशन' में प्रकाशित इस अध्ययन में 43 एमएस मरीजों और 42 स्वस्थ लोगों के आंत के बैक्टीरिया का विश्लेषण किया गया।
शोध के प्रमुख निष्कर्ष
* एमएस मरीजों में 'फीकलिबैक्टीरियम' नामक फायदेमंद बैक्टीरिया की मात्रा बेहद कम पाई गई।
* 'मोनोग्लोबस' नामक हानिकारक बैक्टीरिया की संख्या अधिक थी, जिससे आंत और इम्यून सिस्टम के बीच असंतुलन पैदा हुआ।
* आईजीए एंटीबॉडी (जो हानिकारक बैक्टीरिया को नियंत्रित करती है) की मौजूदगी भी कम पाई गई, जिससे इम्यून सिस्टम और अधिक कमजोर हो सकता है।
* बी-सेल डिप्लीशन थेरेपी से मिला आश्चर्यजनक सुधार
* शोध में शामिल 43 मरीजों में से 19 को 'बी-सेल डिप्लीशन थेरेपी' दी गई, जो एमएस के इलाज में इस्तेमाल होने वाली एक प्रमुख थेरेपी है।
सिर्फ 6 महीने बाद, इन मरीजों के गट माइक्रोबायोम का संतुलन स्वस्थ व्यक्तियों के समान हो गया! इससे यह संकेत मिलता है कि बी-सेल डिप्लीशन थेरेपी न केवल एमएस को नियंत्रित करने में कारगर है, बल्कि आंत के बैक्टीरिया को भी संतुलित कर सकती है।
क्या यह रिसर्च एमएस के इलाज में क्रांतिकारी बदलाव लाएगी?
इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि गट माइक्रोबायोम और एमएस के बीच गहरा संबंध है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस नई खोज से एमएस के बेहतर और अधिक प्रभावी इलाज की दिशा में नई संभावनाएं खुलेंगी। क्या आने वाले समय में आंत के बैक्टीरिया को नियंत्रित कर एमएस जैसी बीमारी को रोका जा सकता है? यह शोध इस सवाल का जवाब खोजने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है।