भारतीय सिनेमा की नींव रखने वाले महान फिल्मकार दादा साहब फाल्के की आज पुण्यतिथि है। 16 फरवरी 1944 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन उनका योगदान आज भी भारतीय फिल्म उद्योग में जिंदा है। दादा साहब फाल्के ने 1912 में फाल्के फिल्म्स कंपनी की स्थापना की और 1913 में भारत की पहली फीचर फिल्म "राजा हरिश्चंद्र" बनाई।
यह फिल्म पूरी तरह मूक (Silent Film) थी और इसे भारतीय सिनेमा की पहली पूर्ण लंबाई वाली फिल्म माना जाता है। यह फिल्म व्यावसायिक रूप से सफल रही और इसने भारत में एक समृद्ध फिल्म उद्योग की नींव रखी। फाल्के ने न सिर्फ फिल्म का निर्माण किया, बल्कि निर्देशन, पटकथा लेखन, छायांकन और संपादन भी खुद किया।
दादा साहब फाल्के का व्यक्तिगत जीवन
धुंडीराज गोविंद फाल्के, जिन्हें दुनिया दादा साहब फाल्के के नाम से जानती है, का जन्म 30 अप्रैल 1870 को बॉम्बे प्रेसीडेंसी के त्र्यंबकेश्वर में एक मराठी परिवार में हुआ था। उनके पिता गोविंद सदाशिव फाल्के एक संस्कृत विद्वान और हिंदू पुजारी थे, जबकि उनकी मां द्वारकाबाई एक गृहिणी थीं। फाल्के की प्रारंभिक शिक्षा त्र्यंबकेश्वर में हुई और आगे की पढ़ाई बॉम्बे में।
1885 में, उन्होंने सर जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स, बॉम्बे से ड्राइंग में एक वर्षीय पाठ्यक्रम पूरा किया और फिर बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय में कला भवन से तेल चित्रकला और जल रंग चित्रकला में डिग्री ली। उन्होंने वास्तुकला और मॉडलिंग में भी विशेषज्ञता हासिल की।
शुरुआती करियर
दादा साहब फाल्के ने अपने करियर की शुरुआत एक फोटोग्राफर और प्रिंटर के रूप में की। उन्होंने श्री फाल्के एनग्रेविंग एंड फोटो प्रिंटिंग नामक फोटो स्टूडियो की स्थापना की। शुरुआती दिनों में कई असफलताओं का सामना करने के बाद उन्होंने नाटकों के लिए स्टेज डिज़ाइनिंग और फोटोग्राफी का काम शुरू किया।
उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के लिए भी फोटोग्राफी का कार्य किया, जिससे उन्हें कला और तकनीकी ज्ञान का बेहतरीन अनुभव मिला। 1912 में, उन्होंने फिल्म निर्माण की योजना बनाई और एक छोटा कांच का स्टूडियो तैयार किया, जहां फिल्मों के प्रसंस्करण के लिए डार्क रूम भी बनाया गया।
भारतीय सिनेमा की शुरुआत
1913 में, फाल्के ने भारत की पहली मूक फीचर फिल्म "राजा हरिश्चंद्र" बनाई, जो ओलंपिया थिएटर, बॉम्बे में प्रदर्शित हुई। यह फिल्म व्यावसायिक रूप से सफल रही और भारतीय सिनेमा की नींव रखी। इसके बाद, उन्होंने कई अन्य सफल फिल्में बनाईं, जिनमें शामिल हैं.
* मोहिनी भस्मासुर (1913)
* लंका दहन (1917)
* श्री कृष्ण जन्म (1918)
भारतीय सिनेमा में महिलाओं की भागीदारी
फाल्के के समय में महिलाओं का फिल्मों में काम करना समाज के लिए अभिशाप माना जाता था। इसलिए, "राजा हरिश्चंद्र" में महिला पात्र अन्ना सालुंके ने निभाए थे। लेकिन बाद में, उन्होंने मोहिनी भस्मासुर (1913) में दुर्गाबाई कामत को पार्वती और उनकी बेटी कमलाबाई गोखले को मोहिनी की भूमिका दी। बाद में, उन्होंने अपनी बेटी मंदाकिनी फाल्के को भी फिल्मों में कास्ट किया। उनकी पत्नी सरस्वतीबाई फाल्के भारत की पहली महिला फिल्म संपादक बनीं और राजा हरिश्चंद्र जैसी फिल्मों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
दादा साहब फाल्के पुरस्कार
भारतीय सिनेमा में उनके अतुलनीय योगदान को सम्मानित करने के लिए 1969 में भारत सरकार ने "दादा साहब फाल्के पुरस्कार" की स्थापना की। यह भारतीय फिल्म उद्योग का सर्वोच्च सम्मान है, जो हर साल फिल्म इंडस्ट्री में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले व्यक्ति को दिया जाता हैं।
निधन
आज ही के दिन 16 फरवरी 1944 को, दादा साहब फाल्के का निधन हो गया, लेकिन भारतीय सिनेमा में उनकी विरासत आज भी जीवंत है। उनके द्वारा स्थापित फिल्म इंडस्ट्री ने आज बॉलीवुड को दुनिया के सबसे बड़े फिल्म उद्योगों में से एक बना दिया हैं।