इस साल की दूसरी तिमाही में भारत की जीडीपी ग्रोथ 8.1 फीसदी से घटकर 5.4 फीसदी हो गई है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह कंजप्शन में कमी और कुछ अन्य कारकों के कारण हुआ है।
GDP Growth Rate: भारत की जीडीपी ग्रोथ दर इस साल की दूसरी तिमाही में घटकर 5.4% रह गई है, जो पिछले दो साल का निचला स्तर है। यह गिरावट पिछले साल की समान तिमाही में 8.1% की ग्रोथ के मुकाबले काफी कम है। इस गिरावट के पीछे मुख्य कारण कंजप्शन में कमी, खाद्य मुद्रास्फीति, और कुछ प्रमुख क्षेत्रों में प्रतिकूल मौसम का असर बताया जा रहा है। सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, यह गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियों को दर्शाती है, जो आने वाले महीनों में और भी महसूस हो सकती है।
कंजप्शन में आई कमी
भारत की जीडीपी ग्रोथ में कमी का मुख्य कारण कंजप्शन यानी उपभोग में गिरावट माना जा रहा है। शहरी मांग में कमी और खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि ने उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति को प्रभावित किया है। अक्टूबर में खुदरा खाद्य मुद्रास्फीति बढ़कर 10.87% तक पहुंच गई, जिससे उपभोक्ताओं की क्षमता पर सीधा असर पड़ा है। इसके अलावा, खनन, बिजली और अन्य प्रमुख क्षेत्रों में भारी बारिश ने भी विकास दर को प्रभावित किया है, जिससे इन क्षेत्रों में व्यवधान आया है।
जीडीपी ग्रोथ की भविष्यवाणी
इस आर्थिक मंदी में कई कारकों ने योगदान दिया है। बढ़ती खाद्य मुद्रास्फीति, उधारी की बढ़ी हुई लागत, और स्थिर वास्तविक वेतन वृद्धि ने शहरी निजी खपत में कमी की है, जो भारत की जीडीपी का लगभग 60% हिस्सा है। इसके परिणामस्वरूप भारत की जीडीपी में गिरावट आई है, और इसका असर देश की आर्थिक गतिविधियों पर पड़ा है। भारतीय रिजर्व बैंक और अन्य आर्थिक विशेषज्ञ पहले से ही यह भविष्यवाणी कर रहे थे कि यह मंदी आर्थिक वृद्धि को धीमा कर सकती है।
कॉरपोरेट क्षेत्र में मंदी
कॉरपोरेट क्षेत्र में भी मंदी का असर दिखाई दे रहा है। प्रमुख भारतीय कंपनियों ने जुलाई-सितंबर की अवधि के दौरान अपने सबसे कमजोर तिमाही प्रदर्शन की रिपोर्ट की। फर्मों के मुनाफे में गिरावट आई है, और यह व्यापार विस्तार और निवेश योजनाओं के लिए चिंता का कारण बन रही है। इस मंदी ने निवेशकों के बीच अनिश्चितता का माहौल पैदा किया है, जो व्यापार विस्तार और नए निवेश की दिशा में संकोच कर रहे हैं।
आरबीआई का विकास दृष्टिकोण
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए 7.2% जीडीपी ग्रोथ का अनुमान बनाए रखा है, जो पिछले साल के 8.2% से कम है। हालांकि, आरबीआई ने अपनी रेपो दर को 6.50% पर स्थिर रखा है, जो मुद्रास्फीति के दबावों के बावजूद एक तटस्थ नीति को दर्शाता है। केंद्रीय बैंक का यह रुख इस बात का संकेत है कि उसे मुद्रास्फीति पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए और अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है। इसके अलावा, सरकारी खर्च में वृद्धि और निर्यात की गतिविधियों में सुधार से मुद्रास्फीति पर काबू पाया जा सकता है।
दूसरी छमाही में सुधार की उम्मीद
विश्लेषक इस बात से आशावादी हैं कि वित्त वर्ष 2025 की दूसरी छमाही में भारत की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकता है। चुनावों के बाद राज्य सरकारों द्वारा खर्च में वृद्धि, और अनुकूल मौसम के कारण कृषि क्षेत्र में सुधार से ग्रामीण मांग में वृद्धि हो सकती है। इसके साथ ही, निर्माण और सेवा क्षेत्रों में भी सुधार की उम्मीद जताई जा रही है। यह सुधार अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत हो सकता है और जीडीपी वृद्धि को ऊपर ले जाने में मदद कर सकता है।
भारत की आर्थिक वृद्धि पर समग्र दृष्टिकोण
भारत की जीडीपी में गिरावट को विभिन्न कारकों द्वारा प्रेरित माना जा रहा है। हालांकि, इसके बावजूद भारत एक प्रमुख विकासशील अर्थव्यवस्था बना हुआ है, जो आने वाले वर्षों में तेजी से सुधार कर सकता है। हालांकि, आर्थिक वृद्धि में मंदी को लेकर जो आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं, उनका समाधान समय रहते किए जाने की आवश्यकता है। यदि उपभोग और निवेश में सुधार होता है, तो भारत की अर्थव्यवस्था फिर से रफ्तार पकड़ सकती है।