हरियाणा की गढ़ी-सांपला-किलोई विधानसभा सीट पर इस बार कांग्रेस के दिग्गज नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सामने भाजपा ने मंजू हुड्डा को मैदान में उतारा है, जो पहली बार चुनाव लड़ रही हैं। मंजू का मुख्य चैलेंज यह है कि उन्हें पूर्व नेताओं का सहयोग नहीं मिल रहा है, जो उनके लिए चुनावी मुकाबले में कठिनाई उत्पन्न कर सकता हैं।
रोहतक: गढ़ी-सांपला-किलोई विधानसभा सीट पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा, जो दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नजर आ रहे हैं। उनकी प्राथमिकता इस बार पार्टी के अन्य प्रत्याशियों के लिए प्रचार करने पर केंद्रित है, जबकि वे खुद प्रचार में कम सक्रिय हैं। दूसरी ओर, भाजपा ने इस बार मंजू हुड्डा को उम्मीदवार बनाया है, जो युवा महिला शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। मंजू चुनाव प्रचार में बहुत सक्रिय हैं और उलटफेर करने की उम्मीद के साथ दिन-रात काम कर रही हैं।
इस चुनावी मुकाबले में भूपेंद्र सिंह हुड्डा का अनुभव और मंजू का युवा उत्साह दोनों ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। कांग्रेस के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे अपने मजबूत नेता का समर्थन कर सकें, जबकि भाजपा ने युवा चेहरे को पेश करके नई ऊर्जा लाने की कोशिश की हैं।
भूपेंद्र हुड्डा और मंजू हुड्डा आमने-सामने
भूपेंद्र सिंह हुड्डा (कांग्रेस):- जो पहले दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, को इस बार भी कांग्रेस पार्टी में मुख्यमंत्री पद के लिए एक प्रमुख दावेदार माना जा रहा है। उन्होंने प्रदेश में 70 से अधिक प्रत्याशियों को टिकट दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो यह दर्शाता है कि पार्टी के अंदर उनकी स्थिति कितनी मजबूत है। गढ़ी-सांपला-किलोई विधानसभा क्षेत्र में उनकी जीत केवल उनकी व्यक्तिगत जीत नहीं होगी, बल्कि यह पुरानी रोहतक की सभी सीटों को जीतने का मानसिक बोझ भी उन पर डालती है। कांग्रेस की सरकार बनाने की जिम्मेदारी इस बार भी उन्हीं पर है, और उनकी जीत पार्टी की भविष्य की दिशा को भी प्रभावित कर सकती हैं।
मंजू हुड्डा (भाजपा):- मंजू हुड्डा धामड़ गांव की बहू हैं, पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं और यह गांव हुड्डा खाप का प्रमुख गांव माना जाता है। उनके लिए भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ना एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन उन्हें चुनाव प्रबंधन और पुराने नेताओं का सहयोग नहीं मिल रहा है। इस परिस्थिति में, मंजू पर बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ प्रतिस्पर्धा करना चुनौतीपूर्ण होगा, खासकर जब कांग्रेस के दिग्गज नेता अपने अनुभव और संसाधनों के साथ चुनावी मैदान में हैं। मंजू की स्थिति को देखते हुए, यह देखना दिलचस्प होगा कि वे अपनी चुनौतियों का सामना कैसे करती हैं और चुनावी रणनीति में किस तरह की नवाचार लाती हैं।
1967 में किलोई सीट पर निर्दलीय ने मारी बाजी
किलोई विधानसभा सीट का चुनावी इतिहास काफी दिलचस्प रहा है। 1967 में महंत श्रेयोनाथ ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पिता, चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा को हराया था। हालांकि, अगले चुनाव में चौधरी रणबीर ने महंत श्रेयोनाथ को हराकर अपनी हार का बदला लिया। इस सीट पर भूपेंद्र हुड्डा के परिवार का गहरा संबंध रहा है, क्योंकि उन्होंने, उनके पिता और भाई ने इस क्षेत्र से चुनाव लड़ा है। 1991 में कांग्रेस के कृष्णमूर्ति हुड्डा भी यहां से विधायक बने थे, और बाद में भजनलाल सरकार में मंत्री रहे, लेकिन अब वे भाजपा में हैं।
2005 में श्रीकृष्ण हुड्डा ने भी इस सीट से जीत हासिल की, लेकिन भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने यह सीट छोड़ दी, जिससे उपचुनाव में भूपेंद्र को फिर से जीतने का मौका मिला। तब से वे इस सीट पर लगातार विजय प्राप्त कर रहे हैं।
2019 में हुड्डा ने सतीश को दी मात
साल 2019 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने गढ़ी-सांपला-किलोई विधानसभा सीट पर 58 हजार से अधिक मतों से जीत हासिल की थी, जबकि भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष सतीश नांदल ने करीब 40 हजार मत प्राप्त किए थे। इस बार भूपेंद्र हुड्डा का लक्ष्य अपने पिछले रिकॉर्ड को तोड़ना है और वे चुनावी मैदान में जीत की नई ऊंचाइयों को छूने का प्रयास करेंगे। भूपेंद्र हुड्डा की प्रतिष्ठा और पार्टी की आधारभूत संरचना उन्हें इस बार भी चुनाव में मजबूती से खड़ा कर रही है, जबकि मंजू हुड्डा के लिए यह चुनावी यात्रा नई चुनौतियों और अनुभवों से भरी होगी।