Haryana: हरियाणा में भाजपा ने 57 साल का तोड़ा रिकॉर्ड, जाटों के गढ़ में 9 नई सीटों पर कैसे की जीत हासिल? जानें वजह

Haryana: हरियाणा में भाजपा ने 57 साल का तोड़ा रिकॉर्ड, जाटों के गढ़ में 9 नई सीटों पर कैसे की जीत हासिल? जानें वजह
Last Updated: 6 घंटा पहले

हरियाणा विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने तीसरी बार शानदार जीत दर्ज की है। इस चुनाव में भाजपा ने 27 मौजूदा सीटें बनाए रखने में सफलता हासिल की है, साथ ही 22 नई सीटों पर भी विजय प्राप्त की है। इनमें से नौ नई सीटें जाटों के गढ़ से जीती गई हैं। हरियाणा में भाजपा की इस ऐतिहासिक जीत के पीछे के पांच महत्वपूर्ण कारण जानने के लिए पढ़ें...

Haryana Election: हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बड़े बहुमत के साथ हैट्रिक बनाई है। मंगलवार शाम साढ़े चार बजे तक के रुझानों में भाजपा हरियाणा में कुल 49 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल कर रही है। भाजपा का 'जाट वर्सेस नॉन जाट' फॉर्मूला जाट समुदाय को एकत्रित करने में सफल रहा है।

इस विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 27 मौजूदा सीटें बचाने के साथ-साथ 22 नई सीटें भी जीती हैं। इनमें से नौ नई सीटें जाटों के प्रभावशाली क्षेत्रों से आई हैं। इस प्रकार, हरियाणा के 57 साल के राजनीतिक इतिहास में भाजपा पहली पार्टी बन गई है, जो लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है। आइए आपको बताते हैं हरियाणा में भाजपा की इस ऐतिहासिक जीत के पांच मुख्य कारण...

1. नायाब सिंह को मिली जीत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े और पंजाबी समुदाय से संबंधित मनोहर लाल खट्टर के प्रति लोगों की नाराजगी को भाजपा ने भली-भांति समझ लिया। खट्टर ने 9.5 वर्षों तक हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। भाजपा ने विधानसभा चुनाव से केवल छह महीने पहले, यानी मार्च 2024 में, खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया। यह भाजपा का हरियाणा की लगभग 44 प्रतिशत ओबीसी जनसंख्या को अपनी तरफ आकर्षित करने का सफल प्रयास साबित हुआ।

भाजपा ने एक आंतरिक सर्वेक्षण कराया, जिसमें यह सामने आया कि किसान आंदोलन और महिला पहलवानों के विरोध के कारण खट्टर के खिलाफ एंटी-इनकम्बेंसी की लहर चल रही है। यही कारण है कि खट्टर चुनाव प्रचार में अनुपस्थित रहे। इतना ही नहीं, चुनाव प्रचार के दौरान राज्य के अधिकांश पोस्टरों पर खट्टर का चेहरा दिखाई नहीं दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने हरियाणा में चार रैलियां कीं, जिनमें से केवल एक रैली में खट्टर उपस्थित रहे।

2. गैर-जाट वोटों को एकजुट करने की रणनीति सफल

भाजपा ने हरियाणा में जाटों के खिलाफ गैर-जाट वोटों को एकजुट करने का रणनीति अपनाई। उन्होंने ब्राह्मण, बनिया, पंजाबी और राजपूत वोटरों को अपनी तरफ किया और पिछड़े दलित समुदाय को भी अपने पक्ष में लाने की कोशिश की। इस रणनीति का परिणाम यह रहा कि भाजपा ने अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सभी सात सीटों पर जीत हासिल की, जबकि पिछले चुनाव में उन्होंने केवल चार सीटें जीती थीं।

3. 16 प्रत्याशियों की जीत दर्ज

भाजपा ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में 25 सीटों पर टिकट बदले, जिनमें से 16 प्रत्याशी जीत गए या आगे चल रहे हैं। रुझानों के अनुसार, भाजपा ने सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ा और 49 सीटें जीतने की ओर बढ़ रही है। यह दर्शाता है कि टिकट बदलने की रणनीति सफल रही है, क्योंकि इसमें से 67 प्रतिशत प्रत्याशी जीतने के करीब हैं।

4.जजपा का जनाधार कमजोर होने से भाजपा को फायदा

हरियाणा में जजपा का जनाधार कमजोर होने से भाजपा को लाभ हुआ है। 2019 में जजपा ने 10 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार उनका सफाया हो गया। भाजपा ने चार सीटों पर कब्जा किया, जबकि कांग्रेस ने छह सीटें अपने नाम की। 2019 में जजपा के साथ गठबंधन का फायदा भाजपा को इस चुनाव में मिला, खासकर तब जब जजपा ने मार्च 2024 में गठबंधन तोड़ने का निर्णय लिया।

5. भाजपा की 150 रैलियों की तुलना में कांग्रेस का प्रदर्शन कमजोर

हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 150 से ज्यादा रैलियां आयोजित कीं, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी ने चार और गृहमंत्री अमित शाह ने 10 रैलियां कीं। मोदी की रैलियों ने 20 सीटों को कवर किया, जिनमें से 10 पर भाजपा जीत रही है। इसके अलावा, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी कई सभाएं कीं, और 40 से अधिक केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों ने पार्टी के प्रत्याशियों के लिए समर्थन मांगा।

हरियाणा चुनाव में कांग्रेस ने केवल 70 सभाएं आयोजित की, जिनमें राहुल गांधी की चार रैलियां और दो रोड शो शामिल थे। प्रियंका गांधी ने दो सभाएं और राहुल के साथ एक रोड शो किया, जबकि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने दो रैलियां कीं। कई पूर्व मुख्यमंत्रियों और सांसदों ने भी कांग्रेस के लिए वोट मांगे। इस तरह, भाजपा की 150 रैलियों की तुलना में कांग्रेस का प्रदर्शन कमजोर रहा।

 

 

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