कांग्रेस ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में हार के बाद महाराष्ट्र में अपनी रणनीति में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। पार्टी ने स्थानीय नेताओं को आगे लाने का निर्णय लिया है ताकि वे स्थानीय मुद्दों को बेहतर समझ सकें। इसके साथ ही संगठन को मजबूत करने के लिए बड़े स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया जाएगा।
नई दिल्ली: कांग्रेस ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद अब महाराष्ट्र चुनाव के लिए अपनी रणनीति में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। पार्टी के नेतृत्व में यह निर्णय लिया गया है कि वे 'ओवर कॉन्फिडेंस' से बचेंगे और चुनावी मैदान में अधिक सावधानी बरतेंगे। 20 नवंबर को होने वाले मतदान से पहले पार्टी ने हरियाणा के अनुभव से सबक लेते हुए अपनी रणनीति में सुधार किया है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, AICC की मीटिंग में इन बदलावों पर गहन चर्चा की गई है। पार्टी अब स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता देने के साथ-साथ अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने पर जोर दे रही है। इस बार, कांग्रेस किसी भी तरह की गलती नहीं करना चाहती, जिससे उनकी स्थिति कमजोर हो सके।
कांग्रेस हाईकमान ने रणनीति में किए 5 बड़े बदलाव
1. टिकट का वितरण
कांग्रेस पार्टी ने इस बार महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सर्वे और जीतने वाले उम्मीदवारों को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया है। अब पार्टी टॉप लीडर्स की सिफारिश या पैरवी के आधार पर किसी को टिकट नहीं देगी। हरियाणा में जो गुटबाजी हुई थी, उसके अनुभव से सीख लेते हुए कांग्रेस ने तय किया है कि वह सिर्फ उन उम्मीदवारों को टिकट देगी जो चुनाव में जीतने की संभावनाएं रखते हैं। पिछले चुनाव में पार्टी ने क्षत्रिय नेताओं जैसे भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला के कहने पर टिकट दिए थे, जिससे गुटबाजी बढ़ी और जीतने वाले उम्मीदवारों की अनदेखी हुई।
2. कोई भी पॉवर सेंटर नहीं
हरियाणा में कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा को एक महत्वपूर्ण शक्ति केंद्र बना दिया था, जिससे पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ा। उनके कहने पर न केवल प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति की गई, बल्कि लगभग 72 टिकट भी हुड्डा के समर्थकों को दिए गए। इससे पार्टी में गुटबाजी बढ़ गई और जीतने की संभावनाएं कमजोर हुईं।
महाराष्ट्र में कांग्रेस ने इस अनुभव से सीख लेते हुए तय किया है कि वह किसी एक व्यक्ति को शक्ति का केंद्र नहीं बनने देगी। इस बार पार्टी ने अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश की है, ताकि किसी एक व्यक्ति की सिफारिश के कारण टिकट वितरण में असमानता न हो और सभी क्षेत्रों के नेताओं को समान अवसर मिल सके।
3. सीनियर नेताओं की जाएगी नियुक्ति
कांग्रेस पार्टी ने महाराष्ट्र में अपनी चुनावी रणनीति को मजबूत करने के लिए 11 सीनियर नेताओं को ऑब्जर्वर नियुक्त किया है। ये नेता विभिन्न क्षेत्रों में पार्टी की जिम्मेदारियों का प्रबंधन करेंगे और टिकट न मिलने से नाराज बागियों को मनाने की कोशिश करेंगे। इस कदम से पार्टी यह सुनिश्चित करना चाहती है कि चुनावी माहौल सकारात्मक रहे और किसी भी तरह की असंतोष की स्थिति से निपटा जा सके। हरियाणा में पार्टी ने अति आत्मविश्वास दिखाते हुए ऐसा कोई प्रयास नहीं किया था। सूत्रों के अनुसार, जिन नेताओं को टिकट नहीं मिला, उनसे पार्टी ने संपर्क तक नहीं साधा, जिससे उनकी नाराजगी और बढ़ गई।
4. पार्टी की प्रमुख घोषणाएं
हरियाणा में कांग्रेस ने अपने चुनावी अभियान में नेगेटिव वोटिंग पर भरोसा किया था, सोचते हुए कि भाजपा के प्रति नाराज वोटर्स उन्हें वोट देंगे। इस रणनीति के तहत पार्टी ने भाजपा की विफलताओं को बार-बार उजागर किया, जबकि अपने घोषणा पत्र में किए गए वादों पर ध्यान कम दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस का कैंपेन नेगेटिव बना रहा, जिससे उन्हें उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली। इसके विपरीत, महाराष्ट्र में कांग्रेस ने एक सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने का निर्णय लिया हैं।
पार्टी अब 5 गारंटियों पर विचार कर रही है, जिनमें डायरेक्ट मनी ट्रांसफर, महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा, 10 किलो मुफ्त अनाज, सस्ती बिजली और बेरोजगारी भत्ता शामिल हैं। कांग्रेस की यह रणनीति है कि वह अपने घोषणा पत्र के वादों को अंतिम पंक्ति के वोटर्स तक पहुंचाने के लिए सशक्त रूप से प्रचार करेगी, ताकि वे इन योजनाओं के माध्यम से जनता के बीच बेहतर प्रभाव बना सकें।
5. एक ही जाति पर फोकस नहीं
हरियाणा में कांग्रेस ने जाट जाति पर अधिक ध्यान केंद्रित किया, जिसका प्रत्यक्ष लाभ भाजपा को मिला, और चुनाव "जाट बनाम गैर जाट" के रूप में विभाजित हो गया। इससे दलित और ओबीसी वोटर्स ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया। हालांकि, महाराष्ट्र में कांग्रेस एक अलग रणनीति अपनाने का निर्णय ले रही है। यहाँ पार्टी सभी जातियों, विशेष रूप से OBC और दलित जातियों पर ध्यान केंद्रित करेगी, और जातिगत जनगणना के मुद्दे को प्रभावी रूप से प्रचारित किया जाएगा।
हरियाणा में कांग्रेस ने अपने सहयोगियों जैसे AAP और सपा को उचित प्रबंधन नहीं किया और अकेले चुनावी मैदान में उतरी। इसके विपरीत, महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी का गठबंधन है, जिसमें कांग्रेस के साथ शिवसेना (उद्धव) और NCP (शरद पवार) शामिल हैं। ऐसे में सहयोगियों के साथ तालमेल बिठाना और उन्हें साथ लेकर चलना एक बड़ी चुनौती होगी।