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राणा सांगा विवाद: सपा सासंद के बयान पर मचा बवाल, जानें कौन थे मेवाड़ के यह वीर योद्धा?

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राणा सांगा भारतीय इतिहास के सबसे वीर और महान योद्धाओं में से एक थे। उनका जन्म 1484 ई. में हुआ था और वे मेवाड़ के राजा राणा रायमल के पुत्र थे। उनका असली नाम संग्राम सिंह था।

नई दिल्ली: राज्यसभा में समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन के बयान ने राणा सांगा को लेकर नया विवाद खड़ा कर दिया है। सपा सांसद ने कहा कि "बाबर राणा सांगा के निमंत्रण पर भारत आया था," जिससे इतिहास को लेकर नई बहस छिड़ गई है। इस बयान के बाद कई राजनीतिक और सामाजिक संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। आइए जानते हैं कि राणा सांगा कौन थे, उनका भारत के इतिहास में क्या योगदान था और बाबर के साथ उनका क्या संबंध था।

राणा सांगा: मेवाड़ के पराक्रमी योद्धा

राणा सांगा, जिनका असली नाम संग्राम सिंह था, का जन्म 1484 ईस्वी में मेवाड़ के शासक राणा रायमल के पुत्र के रूप में हुआ था। उन्होंने 1509 से 1527 तक मेवाड़ पर शासन किया और इस दौरान अपनी वीरता, युद्धकौशल और रणनीतिक क्षमता से पूरे भारत में ख्याति अर्जित की। राणा सांगा का जीवन कई महत्त्वपूर्ण युद्धों से भरा रहा। उन्होंने दिल्ली, गुजरात, मालवा और अफगान शासकों के खिलाफ कई सफल अभियानों का नेतृत्व किया। उनके शासनकाल में राजपूतों की शक्ति अपने चरम पर थी और उन्होंने उत्तर भारत में अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखी।

बाबर और राणा सांगा: खानवा का युद्ध

राणा सांगा का सबसे प्रसिद्ध युद्ध मुगल शासक बाबर के साथ हुआ था। 

1. पहला मुकाबला (1527): राणा सांगा और बाबर की सेनाओं का पहला सामना बयाना में हुआ, जहां बाबर को भारी नुकसान हुआ था। इस जीत ने राजपूतों का आत्मविश्वास बढ़ा दिया था।

2. खानवा का युद्ध (16 मार्च, 1527): इसके बाद राजस्थान के खानवा मैदान में निर्णायक युद्ध हुआ। राणा सांगा की सेना ने बाबर को कड़ी टक्कर दी, लेकिन बाबर की तोपों और बारूदी हथियारों ने युद्ध का रुख बदल दिया।

राणा सांगा के शरीर पर 80 से अधिक घाव थे, एक हाथ और एक आंख खो चुके थे, लेकिन फिर भी वे युद्ध में डटे रहे। इस संघर्ष में बाबर विजयी हुआ और दिल्ली पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली। हालांकि, राणा सांगा की हार के बावजूद उनकी वीरता की गाथा आज भी इतिहास में अमर हैं।

राणा सांगा की मृत्यु और विरासत

खानवा की हार के बाद भी राणा सांगा ने हार नहीं मानी और फिर से सेना संगठित करने लगे। लेकिन 1528 में अचानक उनकी मृत्यु हो गई। ऐसा कहा जाता है कि उनके कुछ सरदारों ने उन्हें जहर देकर मार दिया, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि वह दोबारा युद्ध में जाएं। राणा सांगा की वीरता और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें भारतीय इतिहास में एक महान योद्धा के रूप में स्थापित किया। वे न केवल एक रणनीतिक शासक थे, बल्कि राजपूत गौरव और स्वाभिमान के प्रतीक भी बने।

सपा सांसद के बयान पर क्यों मचा बवाल?

समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन ने 21 मार्च को राज्यसभा में कहा था कि "बाबर राणा सांगा के बुलावे पर भारत आया था।" उनके इस बयान ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी। भाजपा और कई राजपूत संगठनों ने इस बयान की आलोचना करते हुए इसे इतिहास का गलत चित्रण बताया है। उनके अनुसार, बाबर भारत पर आक्रमण करने खुद आया था और राणा सांगा उसके खिलाफ लड़े थे, न कि उसे आमंत्रित किया था।

विरोध के बाद रामजी लाल सुमन ने सफाई देते हुए कहा कि उनका उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था, बल्कि ऐतिहासिक तथ्यों को सामने रखना था।

क्या कहता है इतिहास?

इतिहासकारों के अनुसार, बाबर ने 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली पर कब्जा कर लिया था। राणा सांगा ने बाबर को रोकने के लिए एक राजपूत संघ बनाया और खानवा में बाबर से युद्ध किया। कई ऐतिहासिक ग्रंथों और 'बाबरनामा' में भी यह नहीं लिखा गया है कि राणा सांगा ने बाबर को भारत बुलाया था। बल्कि, बाबर ने खुद लिखा है कि उसने अपनी महत्वाकांक्षाओं के कारण भारत पर हमला किया था।

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