Ratan Tata: सादगी और दरियादिली! टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा की पहचान, जानें उनके व्यक्तित्व और करियर के बारे में

Ratan Tata: सादगी और दरियादिली! टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा की पहचान, जानें उनके व्यक्तित्व और करियर के बारे में
Last Updated: 4 घंटा पहले

रतन टाटा भारत के सबसे सफल व्यवसायियों में से एक रहे हैं, और उनकी पहचान केवल उनके व्यापारिक कौशल से नहीं, बल्कि उनकी परोपकारी गतिविधियों से भी बनी है। उन्होंने अपने जीवन में परोपकार की गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी की है।

Ratan Tata Death: टाटा समूह के मानद चेयरमैन और प्रमुख उद्योगपति रतन टाटा ने बुधवार रात को दुनिया को अलविदा कह दिया। 86 वर्ष की आयु में उनका निधन मुंबई के एक अस्पताल में हुआ। पद्म विभूषण से नवाजे गए रतन टाटा का निधन दक्षिण मुंबई स्थित ब्रीच कैंडी अस्पताल में रात साढ़े 11 बजे हुआ।

रतन टाटा विश्व के सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों में से एक माने जाते थे, फिर भी वे कभी भी अरबपतियों की किसी सूची में शामिल नहीं हुए। उनके अधीन 30 से अधिक कंपनिं थीं, जो छह महाद्वीपों के 100 से अधिक देशों में फैली हुई थीं। इसके बावजूद, उन्होंने सादगीपूर्ण जीवन जीने का चयन किया।

रतन टाटा का जीवन परिचय

रतन नवल टाटा, टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा के परपोते हैं। उनका जन्म 28 दिसंबर, 1937 को मुंबई में नवल टाटा और सूनी टाटा के घर हुआ था। जब रतन टाटा केवल 10 वर्ष के थे, तब उनके माता-पिता ने अलग होने का निर्णय लिया, जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनकी दादी, नवाजबाई टाटा ने किया।

रतन टाटा ने चार बार शादी के करीब पहुंचने के बावजूद कभी विवाह नहीं किया। उन्होंने एक बार स्वीकार किया था कि लॉस एंजेलिस में काम करते समय उन्हें प्यार हुआ था, लेकिन 1962 के भारत-चीन युद्ध के कारण उस लड़की के माता-पिता ने उसे भारत आने की अनुमति नहीं दी।

रतन टाटा का सफर

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर, 1937 को मुंबई में हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में प्राप्त की और फिर उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गए, जहाँ उन्होंने कॉर्नेल विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क से वास्तुकला में बीएस की डिग्री प्राप्त की।

कैरियर की शुरुआत

1.1962 में रतन टाटा ने अपने पारिवारिक व्यवसाय में कदम रखा। उन्होंने अपनी करियर की शुरुआत एक कंपनी में काम करके की, जहां उन्होंने विभिन्न विभागों में अनुभव प्राप्त किया। इससे उन्हें टाटा समूह के विभिन्न व्यवसायों को समझने और उनकी कार्यप्रणाली में दक्षता हासिल करने का अवसर मिला।

2.1971 में, उन्हें 'नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी' का प्रभारी निदेशक नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने कं पनी की गतिविधियों का विस्तार किया और नई तकनीकों को अपनाने पर ध्यान केंद्रित किया। इस भूमिका में उन्होंने टाटा समूह की नवाचार की संस्कृति को आगे बढ़ाया, जो बाद में समूह के अन्य क्षेत्रों में भी दिखाई दी।

टाटा समूह का नेतृत्व

1980 के दशक के अंत में, रतन टाटा को टाटा इंडस्ट्रीज के चेयरमैन के रूप में नियुक्त किया गया। 1991 में, उन्होंने अपने चाचा जेआरडी टाटा से टाटा समूह के चेयरमैन का पदभार संभाला। इस समय तक, टाटा समूह ने खुद को एक वैश्विक महाशक्ति में बदल दिया था, जो कपड़ा, इस्पात, कार, सॉफ्टवेयर, बिजली संयंत्र और एयरलाइन जैसे विभिन्न उद्योगों में फैला हुआ था।

महत्वपूर्ण अधिग्रहण

रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा समूह ने कई महत्वपूर्ण अधिग्रहण किए, जो कंपनी के वैश्विक विस्तार और विविधीकरण में महत्वपूर्ण साबित हुए। यहां कुछ प्रमुख अधिग्रहणों की सूची दी गई है:

टेटली टी (2000): टाटा समूह ने लंदन स्थित चाय कंपनी टेटली टी को 43.13 करोड़ अमेरिकी डॉलर में खरीदा। यह अधिग्रहण टाटा के चाय व्यवसाय को वैश्विक स्तर पर स्थापित करने में मददगार साबित हुआ।

देवू मोटर्स (2004): दक्षिण कोरिया की देवू मोटर्स के ट्रक-निर्माण परिचालन को टाटा समूह ने 10.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर में खरीदा। इस अधिग्रहण ने टाटा मोटर्स को भारी वाहन खंड में विस्तार करने का अवसर प्रदान किया।

कोरस समूह (2007): टाटा समूह ने एंग्लो-डच स्टील निर्माता कोरस समूह को 11 अरब अमेरिकी डॉलर में खरीदा। यह अधिग्रहण टाटा स्टील के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बना, जिससे कंपनी की उत्पादन क्षमता और बाजार हिस्सेदारी में वृद्धि हुई।

जगुआर और लैंड रोवर (2008): टाटा ने फोर्ड मोटर कंपनी से ब्रिटिश कार ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर को 2.3 अरब अमेरिकी डॉलर में खरीदा। इस अधिग्रहण ने टाटा मोटर्स को लग्जरी कार बाजार में प्रवेश करने का अवसर दिया और इसे वैश्विक पहचान दिलाई।

दुनिया की सबसे सस्ती कार

2009 में, रतन टाटा ने दुनिया की सबसे सस्ती कार, टाटा नैनो, को मध्यम वर्ग तक पहुंचाने का अपना वादा पूरा किया, जिससे भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग में एक नया अध्याय जुड़ा।

भारत के सबसे प्रमुख उद्योगपतियों में से एक थे रतन टाटा

रतन टाटा, भारत के सबसे प्रमुख उद्योगपतियों में से एक, अपनी उदारता और परोपकारिता के लिए भी जाने जाते हैं। उनका यह गुण केवल उनके व्यवसायिक जीवन में, बल्कि उनके व्यक्तिगत जीवन में भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

परोपकार में रतन टाटा की भूमिका

1. स्वास्थ्य सेवाएं- 1970 के दशक में, उन्होंने आगा खान अस्पताल और मेडिकल कॉलेज परियोजना की शुरुआत की, जिससे भारत के प्रमुख स्वास्थ्य सेवा संस्थानों में से एक की स्थापना हुई। यह अस्पताल आज भी देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है

2. कोरोना महामारी में योगदान- रतन टाटा ने कोरोना महामारी के दौरान पीएम केयर्स फंड में 500 करोड़ रुपये दान किए, जिससे महामारी से लड़ने में सहायता मिली। उनकी यह दरियादिली इस बात का प्रमाण है कि वे सामाजिक जिम्मेदारी को कितनी गंभीरता से लेते हैं

3. शिक्षा और अनुसंधान- टाटा ट्रस्ट ने विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों को सहयोग किया है, जो अनुसंधान और विकास में मदद करते हैं। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी कई पहल की हैं, जिससे युवाओं को बेहतर अवसर मिल सकें।

Leave a comment
 

ट्रेंडिंग News