दक्षिण भारत के राज्यों ने पिछले कुछ दशकों में जनसंख्या नियंत्रण नीति को सफलतापूर्वक लागू किया है, जिसके परिणामस्वरूप इन राज्यों में जन्म दर में कमी आई है। हालांकि, इस सफलता के साथ-साथ अब उन्हें इस बात की चिंता है कि जनसंख्या में कमी के चलते उनका राजनीतिक दबदबा कम हो सकता है। इस स्थिति को लेकर दक्षिणी राज्यों के मुख्यमंत्री जनता से अधिक बच्चे पैदा करने की अपील कर रहे हैं।
तमिलनाडु: जनसंख्या वृद्धि और परिसीमन के संबंध में कई जटिलताएँ हैं। परिसीमन आयोग के 1976 के आदेश के बाद से लोकसभा सीटों की संख्या स्थिर रही है, और 2001 में जनसंख्या के आधार पर फिर से फ्रीज कर दिया गया था। अब जब नई जनगणना होने जा रही है, तो परिसीमन की चर्चा फिर से तेज हो गई है।उत्तर भारत के राज्यों में जनसंख्या वृद्धि के कारण उनके राजनीतिक दबदबे में वृद्धि हो सकती है। यदि परिसीमन किया जाता है और उत्तर भारत के राज्यों की जनसंख्या अधिक है, तो उनकी सीटों की संख्या में वृद्धि होने की संभावना है, जिससे वे राजनीतिक रूप से और मजबूत हो सकते हैं।
दूसरी ओर दक्षिण भारत के राज्यों जैसे तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश को चिंता है कि यदि उनकी जनसंख्या स्थिर रहती है या घटती है, तो उनके हिस्से की लोकसभा सीटें कम हो सकती हैं। यही कारण है कि दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री जनता से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील कर रहे हैं।
दक्षिण भारत के राज्यों में कम बच्चों का डर
आपका विश्लेषण जनसंख्या के आधार पर परिसीमन और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के संबंध में बहुत महत्वपूर्ण है। यदि जनसंख्या में बदलाव को ध्यान में रखते हुए परिसीमन किया जाता है, तो यह निश्चित रूप से दक्षिणी राज्यों के लिए चुनौतियाँ पैदा कर सकता है। आपके द्वारा बताए गए परिदृश्य में, यदि पांच दक्षिणी राज्यों को 23 सीटों का नुकसान होता है, तो इसका प्रभाव काफी बड़ा होगा। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान, और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों की जनसंख्या अधिक है और ये राज्यों को सीटों का अधिक प्रतिनिधित्व मिलेगा, जिससे उनके राजनीतिक प्रभाव में वृद्धि होगी।
* क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व: यदि सीटों की कुल संख्या अपरिवर्तित रहती है, तो यह स्थिति दक्षिणी राज्यों के लिए और भी चुनौतीपूर्ण हो जाएगी। दक्षिणी राज्यों को यदि 25 सीटों का नुकसान होता है, तो उनके राजनीतिक संतुलन में बड़ा परिवर्तन आएगा।
* बड़े राज्यों का लाभ: बड़े राज्यों को आनुपातिक प्रतिनिधित्व मिलने की संभावना के कारण, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, और तमिलनाडु को 23 सीटें अधिक मिल सकती हैं, जबकि केरल की सीटों की संख्या में कोई बदलाव नहीं होगा। इस स्थिति में शीर्ष 5 राज्यों को 150 सीटें अधिक मिलती हैं, जो उनकी जनसंख्या के अनुपात में अधिक उचित हैं।
* राजनीतिक परिणाम: ऐसे परिणामों के कारण दक्षिण भारत के राजनीतिक दलों को अपनी रणनीतियों में बदलाव करने की आवश्यकता पड़ सकती है, ताकि वे अपनी राजनीतिक स्थिति को बनाए रख सकें। इससे राज्य सरकारों की जनसंख्या नीतियों पर भी असर पड़ेगा, जैसे कि अधिक बच्चों के जन्म की प्रोत्साहना देने वाले कार्यक्रम।
आबादी को लेकर सरकार चिंतित
1990 के दशक की शुरुआत में, केरल की प्रजनन दर 2 थी जबकि उत्तर प्रदेश की 4.8 थी। हालाँकि, 2021 तक, केरल की प्रजनन दर घटकर 1.8 और यूपी की 2.4 हो गई है, जिससे दक्षिण और उत्तर भारत के बीच का अंतर काफी कम हो गया है। इस समय महाराष्ट्र सहित चार राज्यों में सभी नवजात शिशुओं का 49% हिस्सा है, जो प्रजनन क्षमता में गिरावट की वास्तविकता को दर्शाता हैं।
2019 में, केवल बिहार और यूपी ही प्रतिस्थापन स्तर से ऊपर प्रजनन क्षमता रखते थे, जबकि मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र प्रतिस्थापन स्तर पर या उससे नीचे थे। इस परिप्रेक्ष्य में, दक्षिणी राज्यों को इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि घटती जनसंख्या उनके लिए नुकसानदेह होगी, क्योंकि अन्य राज्यों में भी इसी तरह की गिरावट देखी जा रही हैं।
दुनिया में कोई भी देश जनसंख्या में गिरावट को उलटने में सफल नहीं हुआ है, चाहे वह चीन हो या कोई अन्य यूरोपीय देश। उदाहरण के लिए, एक समय में एक बच्चे की नीति अपनाने वाला चीन अब दंपतियों को तीन बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है, लेकिन कई लोग इसके लिए तैयार नहीं हैं।
इसके अलावा, उत्तर भारत ऑटोमोबाइल, सॉफ्ट ड्रिंक्स, स्मार्टफोन और कपड़ों जैसे अधिकांश उपभोक्ता उत्पादों के लिए सबसे बड़ा बाजार है। इसके साथ ही, उत्तर भारतीय राज्य दक्षिण को श्रम आपूर्तिकर्ता भी हैं, जो न केवल जनशक्ति की कमी को पूरा करते हैं, बल्कि राज्यों के लिए राजस्व उत्पन्न करने में भी मदद करते हैं।
स्टालिन और नायडू का बयान
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने एक सामूहिक विवाह समारोह में '16 बच्चों का लक्ष्य' रखने का मजाक उड़ाया, जो उनके हास्य के अंदाज को दर्शाता है। हालांकि, उनके आंध्र प्रदेश के समकक्ष, नायडू इस मामले को लेकर गंभीर हैं। नायडू ने अपने बयान में कहा, "एक समय था जब मैंने परिवार नियोजन का पालन करने की अपील की थी, लेकिन अब समय बदल गया है और मैं लोगों से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील कर रहा हूं ताकि जनसंख्या बढ़ सके।" यह बयान दिखाता है कि दक्षिण भारत के मुख्यमंत्री जनसंख्या वृद्धि को लेकर कितना चिंतित हैं।