Technology News: डीपफेक और AI बनी समाज के लिए बड़ा खतरा, दिल्ली HC के जज ने कहा- 'हम जो कुछ देख-सुन रहे हैं, उस पर यकीन नहीं कर सकते'

Technology News: डीपफेक और AI बनी समाज के लिए बड़ा खतरा, दिल्ली HC के जज ने कहा- 'हम जो कुछ देख-सुन रहे हैं, उस पर यकीन नहीं कर सकते'
Last Updated: 29 अगस्त 2024

डीपफेक तकनीक को लेकर अब दिल्ली हाईकोर्ट भी चिंतित हो गया है। कोर्ट ने बुधवार को यह स्पष्ट किया कि डीपफेक तकनीक समाज के लिए एक गंभीर खतरा साबित हो सकती है और सरकार को इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना शुरू कर देना चाहिए।

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि डीपफेक तकनीक समाज के लिए एक गंभीर खतरा बन सकती है और सरकार को इस विषय पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि तकनीक के माध्यम से ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का समाधान किया जा सकता है। बता दें हाईकोर्ट देश में डीपफेक तकनीक के संभावित दुरुपयोग और इसके गैर-नियमन के खिलाफ दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि चुनावों से पहले सरकार इस मुद्दे पर चिंतित थी और अब परिस्थितियाँ बदल चुकी हैं।

डीपफेक तकनीक को लेकर सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने क्या कहा?

केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने कहा, "संभव है कि हमारी भाव-भंगिमा बदल गई हो, लेकिन हमारी चिंता अब भी पहले जैसी ही बनी हुई है।" केंद्र के वकील ने यह भी स्पष्ट किया कि अधिकारी मानते हैं कि यह एक ऐसी समस्या है, जिसका समाधान निकालना आवश्यक है। डीपफेक तकनीक के माध्यम से किसी तस्वीर या वीडियो में एक व्यक्ति के स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति की छवि का उपयोग किया जाता है। इसके माध्यम से मूल व्यक्ति के शब्दों और क्रियाओं को बदलकर दर्शकों को गुमराह किया जा सकता है, जिससे गलत सूचनाएं फैलने का खतरा रहता हैं।

कार्यवाहक चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडेला ने कहा, "केंद्र सरकार को इस पर काम करना शुरू करना होगा। आपको इस विषय पर गंभीरता से विचार करना होगा। डीपफेक समाज के लिए एक गंभीर खतरा बनता जा रहा है।" जस्टिस मनमोहन ने कहा, "आपको भी इस पर कुछ अध्ययन करना चाहिए। यह एक ऐसा मामला है कि आप जो देख रहे हैं और सुन रहे हैं, उस पर भरोसा नहीं कर सकते। यह बहुत ही चौंकाने वाला है। जो मैंने अपनी आंखों से देखा और जो मैंने अपने कानों से सुना, उस पर विश्वास करना कठिन हो गया हैं।"

रजत शर्मा द्वारा डीपफेक और AI उपयोग पर दायर की गई याचिका

देश में डीपफेक तकनीक के अनियंत्रित उपयोग के खिलाफ एक याचिका चेयरमैन और एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा द्वारा दायर की गई है। इस याचिका में उन्होंने ऐसे ऐप्लिकेशन और सॉफ्टवेयरों तक सार्वजनिक पहुंच को रोकने का अनुरोध किया है जो ऐसी सामग्री के निर्माण में मदद करते हैं। वहीं, डीपफेक और एआई के अनियंत्रित उपयोग के खिलाफ एक और याचिका वकील चैतन्य रोहिल्ला ने दायर की हैं।

शर्मा ने तर्क किया, "हम एआई-रोधी तकनीक का इस्तेमाल करके इस समस्या को समाप्त कर सकते हैं, अन्यथा हमें बहुत नुकसान उठाना पड़ सकता है। इन मुद्दों से निपटने के लिए चार प्रमुख चीजों की आवश्यकता है - पहचान, रोकथाम, शिकायत निवारण तंत्र और जागरूकता बढ़ाना। कोई भी कानून या सलाह प्रभावी नहीं होगी।"

कोर्ट ने याचिका पर क्या कहा?

पीठ ने स्पष्ट किया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के लिए केवल तकनीकी उपाय ही उसकी चुनौती का समाधान हो सकते हैं। पीठ ने कहा, "इस तकनीक से होने वाले संभावित नुकसान को समझना आवश्यक है, क्योंकि आप एक सरकार हैं। एक संस्था के रूप में हमारी कुछ सीमाएं होंगी।" इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने डीपफेक से संबंधित वेबसाइटों की पहचान करने और उन्हें स्वतः ‘ब्लॉक करने के संदर्भ में अपने जवाब में कहा कि उसे इंटरनेट पर किसी भी ऑनलाइन सामग्री की स्वतः निगरानी करने का अधिकार नहीं हैं।

मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि इंटरनेट पर किसी भी सामग्री या वेबसाइट को स्थापित कानूनी प्रक्रिया के अनुसार ही ब्लॉक किया जा सकता है। अदालत ने याचिकाकर्ताओं को अपने सुझावों को शामिल करते हुए एक अतिरिक्त हलफनामा दायर करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है। इस मामले की अगली सुनवाई 24 अक्टूबर को होगी।

याचिका को लेकर कोर्ट ने‌ केंद्र सरकार से मांगा जवाब

हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के माध्यम से दोनों याचिकाओं पर अपना जवाब प्रस्तुत करने के लिए कहा है। वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा ने जनहित याचिका (PIL) में बताया है कि डीपफेक तकनीक का प्रसार समाज के विभिन्न पहलुओं के लिए एक गंभीर खतरा उत्पन्न करता है। याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि यह सार्वजनिक विमर्श और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की अखंडता को कमजोर करता है। याचिका में यह भी कहा गया है कि केंद्र ने नवंबर 2023 में डीपफेक और ऐसी सामग्री से निपटने के लिए विनियमन तैयार करने की मंशा जताई थी, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया हैं।

 

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