उत्तराखंड का कालापानी जिला: जहां पहुंचना था मुश्किल, अब वहीं पोस्टिंग की दौड़

उत्तराखंड का कालापानी जिला: जहां पहुंचना था मुश्किल, अब वहीं पोस्टिंग की दौड़
Last Updated: 08 नवंबर 2024

पिथौरागढ़, जिसे पहले उत्तर प्रदेश में एक दंड जिले के रूप में जाना जाता था, अब उत्तराखंड राज्य के प्रमुख जिलों में से एक बन गया है। बेहतर सड़क संपर्क, हवाई सेवाएँ, पर्यटन का विकास, चिकित्सा सुविधाओं में सुधार और उच्च शिक्षा के अवसरों ने इस जिले का कायाकल्प कर दिया है। हालाँकि, कुछ गंभीर चुनौतियाँ भी हैं, जैसे गाँवों का खाली होना और सीमावर्ती क्षेत्र में जनसांख्यिकीय परिवर्तन।

उत्तर प्रदेश के दौर में पनिशमेंट डिस्ट्रिक्ट के तहत आने वाला पिथौरागढ़ जिला, अब अपने राज्य बनने के बाद प्रदेश के प्रमुख जिलों में शुमार हो गया है। पहले जहां यूपी में अधिकारी पिथौरागढ़ में पोस्टिंग से बचने की कोशिश करते थे, वहीं अब वही अधिकारी इस जिले में पोस्टिंग पाने के लिए उत्सुक हैं। यह परिवर्तन जिले की नई छवि को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।

आल वेदर से हवाई सेवा तक की सुविधा

 पिछले 25 वर्षों में, जिले में यातायात की बेहतरीन सुविधाओं का विकास हुआ है। जिला मुख्यालय को मैदानी क्षेत्र टनकपुर से जोड़ने वाली सड़क अब आल वेदर सड़क के रूप में विकसित की जा चुकी है। एक समय जो सात घंटे का सफर था, वह अब मात्र साढ़े तीन से चार घंटे में पूरा हो रहा है। देहरादून के बाद, पिथौरागढ़ ऐसा अकेला जिला है, जहां से दिल्ली, देहरादून और हल्द्वानी के लिए हवाई सेवा उपलब्ध है। इसके अलावा, चीन से लगी सीमा तक सड़क का निर्माण भी हो चुका है।

आदि कैलास और ऊं पर्वत ने देशभर में बनाई नई पहचान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो बार पिथौरागढ़ जनपद का दौरा कर चुके हैं। उनकी दूसरी यात्रा, जो आदि कैलास और ऊं पर्वत क्षेत्र में हुई, ने पूरे जिले को राष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान दी है। आज हजारों की संख्या में यात्री यहां दर्शनों के लिए रहे हैं। इससे पर्यटन क्षेत्र को काफी लाभ हो रहा है। स्थानीय लोगों को होटल, टैक्सी, होम स्टे, साहसिक खेल आदि क्षेत्रों में इस बढ़ते पर्यटन से आर्थिक लाभ मिल रहा है।

अगले वर्ष में तैयार होगा मेडिकल कॉलेज

स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में जिले ने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं। बेस चिकित्सालय का संचालन शुरू हो चुका है, और मोस्टामानू में मेडिकल कॉलेज का निर्माण तेजी से जारी है। अगले वर्ष तक मेडिकल कॉलेज के शुरू होने की उम्मीद जताई जा रही है। इस मेडिकल कॉलेज के खुलने से जिले के निवासियों को विशेषज्ञ चिकित्सकों की सुविधाएँ उपलब्ध होंगी। वर्तमान में, विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी के कारण मरीजों को हल्द्वानी और बरेली की ओर भाग-दौड़ करनी पड़ रही है। वहीं, जिला और महिला चिकित्सालय में भी व्यवस्थाएँ काफी बेहतर हुई हैं।

इंजीनियरिंग कॉलेज और कैंपस की उपलब्धियों का श्रेय जिले को

 पिथौरागढ़ जनपद ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सफलताएँ हासिल की हैं। सीमांत इंजीनियरिंग कॉलेज अब जिला मुख्यालय में संचालित हो रहा है। इसके साथ ही, पिथौरागढ़ महाविद्यालय को कैंपस का दर्जा प्राप्त हो गया है। इससे छात्र-छात्राओं को छोटी-छोटी समस्याओं के समाधान के लिए विश्वविद्यालय के चक्कर लगाने से राहत मिल गई है।

गांवों का खाली होना गंभीर चिंता

जिले में कई सुविधाएँ तो उपलब्ध हुई हैं, लेकिन कुछ समस्याएँ अत्यंत गंभीर बनी हुई हैं। गांवों का खाली होना इस समय सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। तीन दर्जन से अधिक गांव अब वीरान हो चुके हैं, और जनशून्य गांवों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। गांवों में रोजगार की कमी और कृषि के अलाभकारी होने के कारण यह समस्या बढ़ती जा रही है। युवा रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं। इस समस्या का समाधान मत्स्य पालन, डेयरी, पुष्प उत्पादन, जड़ी-बूटी उत्पादन, चाय उत्पादन और पर्यटन के माध्यम से किया जा सकता है।

सीमांत क्षेत्र में जनसंख्यिकी बदलाव एक नई चुनौती

सीमांत जिले के निवासियों ने रोजगार की तलाश में महानगरों की ओर रुख करना शुरू कर दिया है, जबकि दूसरी ओर, बाहरी क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग जिले में रोजगार के अवसरों की खोज में रहे हैं। पिछले एक दशक में, पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय में जनसंख्यिकी में उल्लेखनीय बदलाव देखा गया है। मुख्य बाजारों में फड़, खोखा और कई दुकानों पर बाहरी लोग सक्रिय रूप से उपस्थित हैं। यह स्थिति नए सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन का संकेत देती है, जो क्षेत्र के विकास के लिए नई चुनौतियाँ भी प्रस्तुत कर रही है।

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