बांग्लादेश की मौजूदा अंतरिम राजनीति में जो अस्थिरता नजर आ रही है, वह न केवल देश के भीतर उथल-पुथल का संकेत है, बल्कि भारत जैसे पड़ोसी और रणनीतिक साझेदार के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन गई है।
ढाका: बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिरता एक बार फिर भू-राजनीतिक गणनाओं का शिकार बनती नजर आ रही है। कभी नोबेल पुरस्कार विजेता और गरीबी उन्मूलन के प्रतीक माने जाने वाले मोहम्मद यूनुस अब अंतरराष्ट्रीय साजिशों के केंद्र में आ चुके हैं। सवाल सिर्फ उनकी अंतरिम सरकार की वैधता का नहीं, बल्कि उस गहरे एजेंडे का है, जो अमेरिकी रणनीति के अंतर्गत "ऑपरेशन म्यांमार" के नाम से सामने आ रहा है।
माना जा रहा है कि बांग्लादेश में फिलहाल जो अंतरिम ढांचा काम कर रहा है, वह केवल सत्ता की जगह भरने के लिए नहीं, बल्कि म्यांमार सीमा के पास अमेरिका के रणनीतिक हितों को साधने का माध्यम बन चुका है। अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार के रूप में यूनुस की भूमिका पर सवाल उठते रहे हैं, लेकिन हालिया घटनाएं इस चिंता को और भी गहरा करती हैं कि क्या यूनुस एक लोकतांत्रिक नेता हैं या पश्चिमी हितों का मोहरा?
चुनाव की जगह टालमटोल की राजनीति
जब अगस्त 2024 में अंतरिम सरकार बनी, तो वादा किया गया था कि 90 दिनों में पारदर्शी चुनाव कराए जाएंगे। पर अब खुद यूनुस कह रहे हैं कि चुनाव 2026 की शुरुआत तक संभव नहीं। इससे बांग्लादेश की जनता और खासकर मुख्य विपक्षी दल बीएनपी में गुस्सा है। उन्होंने चुनाव की देरी को जनादेश की हत्या करार दिया है।
क्या अमेरिका बना रहा है ‘रणनीतिक सुरंग’?
कई विश्लेषकों का मानना है कि यह सत्ता की अदला-बदली नहीं, बल्कि एक रणनीतिक 'बेस कैम्प' की स्थापना है। अमेरिकी सेना के पैसिफिक कमांड के उच्च अधिकारियों की बांग्लादेश यात्रा और रखाइन सीमा पर बांग्लादेशी सैन्य तैयारियों की खबरें इस बात की पुष्टि करती हैं कि अमेरिका म्यांमार की ओर अपने सैन्य प्रभाव को बढ़ाने के लिए बांग्लादेश की जमीन और सरकार, दोनों को इस्तेमाल करना चाहता है।
यूनुस समर्थकों ने सोशल मीडिया पर उन्हें बांग्लादेश का 'संरक्षक' और 'एकमात्र विकल्प' बताने का अभियान छेड़ दिया है। यह कोशिश लोकतंत्र की सेवा नहीं, बल्कि सत्ता की लंबी पारी खेलने का तरीका लगता है। इस नैरेटिव को हवा देने वाले वही अमेरिकी थिंक टैंक और एजेंसियां हैं जो पहले शेख हसीना को 'तानाशाह' कहने से नहीं चूकते थे।
बांग्लादेश का भविष्य या रणनीतिक मोहरा?
चौंकाने वाली बात यह है कि अमेरिका, जो हसीना सरकार के हर कदम पर मानवाधिकार और लोकतंत्र की दुहाई देता था, अब इस अंतरिम शासन की असंवैधानिकता और चुनावी देरी पर एक शब्द नहीं बोल रहा। क्या यह चुप्पी इस बात की गवाही है कि वर्तमान ढांचा उन्हीं की रचना है? ऐसे में सवाल उठता है, क्या बांग्लादेश में लोकतंत्र का भविष्य सचमुच मोहम्मद यूनुस के हाथों में सुरक्षित है, या वह सिर्फ एक किरदार हैं, जिन्हें म्यांमार में अमेरिकी सैन्य विस्तार के लिए सामने लाया गया है?
अब समय भारत जैसे पड़ोसी देशों के लिए भी सतर्कता बरतने का है। क्योंकि यह मुद्दा सिर्फ बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति का नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की सुरक्षा और स्थिरता से जुड़ा हुआ है।