बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस ने अपनी मजबूत नेटवर्किंग और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के चलते एक अलग पहचान बनाई है। ऐसे में यह मानना मुश्किल है कि हाल ही में चीन दौरे से लौटने के बाद दिया गया उनका बयान महज एक सामान्य टिप्पणी थी।
India-Bangladesh: बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद भारत और बांग्लादेश के संबंधों में नया तनाव उभर आया है। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्ता से बेदखल किए जाने के बाद बने अंतरिम शासन के मुखिया मोहम्मद यूनुस अब धीरे-धीरे भारत से दूरी बनाते और चीन-पाकिस्तान के करीब जाते दिखाई दे रहे हैं। BIMSTECH सम्मेलन के दौरान भले ही पीएम नरेंद्र मोदी और यूनुस की मुलाकात हुई हो, लेकिन इसके बाद के घटनाक्रमों ने साफ कर दिया है कि यह मुलाकात रिश्तों की गरमी लौटाने में नाकाम रही है।
कट्टरपंथियों पर बढ़ती निर्भरता
मोहम्मद यूनुस की सरकार अब कुछ इस्लामी कट्टरपंथी गुटों के प्रभाव में आ चुकी है। यही गुट शेख हसीना सरकार को उखाड़ने में प्रमुख भूमिका में थे और अब खुद सत्ता का हिस्सा बन गए हैं। इन गुटों की सोच न सिर्फ भारत विरोधी है, बल्कि वे बांग्लादेश के उदार और बहुलवादी चरित्र को मिटाकर एक इस्लामी गणराज्य की दिशा में देश को ले जाना चाहते हैं।
यही वजह है कि हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों को छुपाने की कोशिश की जा रही है। देशभक्त संत स्वामी चिन्मय प्रभु को लगातार प्रताड़ित किया जा रहा है, क्योंकि उन्होंने हिंदुओं को पलायन न करने और बांग्लादेश में ही अधिकारों के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी थी। यह संकेत है कि बांग्लादेश का बहुलतावादी ताना-बाना तेजी से टूट रहा है।
भारत के खिलाफ बयानबाजी और भू-राजनीतिक संकेत
चीन यात्रा से लौटने के बाद यूनुस ने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को 'लैंड लॉक्ड' बताते हुए कहा कि समुद्र पर बांग्लादेश का नियंत्रण है। इस बयान के पीछे केवल भौगोलिक अहंकार नहीं, बल्कि रणनीतिक संदेश भी छुपा है. बांग्लादेश अब भारत को लेकर पुरानी सहयोगी भूमिका छोड़ रहा है और एक अधिक स्वतंत्र, बल्कि टकरावपूर्ण नीति की ओर बढ़ रहा है।
भारत की प्रतिक्रिया: संयम और सतर्कता
भारत ने अब तक बांग्लादेश की नई सरकार के प्रति संयम बरता है। व्यापार, खाद्य सामग्री और टेक्सटाइल इंडस्ट्री के लिए आवश्यक सप्लाई जारी रखी गई है, लेकिन वीजा नीति में बदलाव कर भारत ने अपने असंतोष का स्पष्ट संकेत भी दिया है। विशेषकर मेडिकल वीजा में की गई कटौती यह दर्शाती है कि भारत मानवीय मूल्यों की आड़ में सुरक्षा चिंताओं से समझौता नहीं करेगा।
सुरक्षा और रणनीतिक मोर्चा
बांग्लादेश में पाकिस्तान और चीन की बढ़ती दखलंदाजी भारत के लिए खास चिंता का विषय है, विशेषकर जब 'चिकन नेक' जैसे संवेदनशील भौगोलिक गलियारे की सुरक्षा दांव पर हो। यूनुस सरकार से अब उस प्रकार का सुरक्षा सहयोग मिलने की संभावना नहीं है जो शेख हसीना सरकार के दौरान सहज था। भारत को अब पूर्वोत्तर की सीमाओं की सुरक्षा के लिए वैकल्पिक रणनीति बनानी होगी। साथ ही, क्षेत्रीय कूटनीति में नेपाल, भूटान और म्यांमार जैसे पड़ोसियों के साथ तालमेल बढ़ाने की जरूरत होगी ताकि चीन की घेराबंदी को प्रभावी रूप से चुनौती दी जा सके।
जब तक बांग्लादेश में स्थाई और लोकतांत्रिक सरकार नहीं बनती, भारत को किसी भी राजनीतिक सत्ता से दूरी बनाए रखते हुए अपनी सुरक्षा और कूटनीतिक हितों की रक्षा करनी होगी। यदि बांग्लादेश की भूमि भारत विरोधी गतिविधियों का अड्डा बनती है, तो भारत को कड़ा रुख अपनाने से भी पीछे नहीं हटना चाहिए।