आजाद भारत की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस इस वक़्त बेहद अजीबोगरीब हालात से गुजर रही है. एक तरफ राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे हैं तो वहीं राजस्थान में सीएम की कुर्सी को लेकर ऐसी सियासी गरमा रही है कि कोई भी दावे के साथ ये नहीं कह सकता कि साल भर बाद होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस अपनी सरकार बचा पायेगी भी या नहीं.
इसका जीता जागता उदहारण प्रधानमंत्री के राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तारीफ करते ही कांग्रेस खेमे में भगदड़ से मच गई है, और ये मामला किसी से छुपा नहीं है कि वादाखिलाफी करने के बाद से ही गांधी परिवार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से बेहद नाराज़ है लेकिन पार्टी के नये अध्यक्ष बने मल्लिकार्जुन खरगे की बड़ी मुसीबत ये है कि गहलोत को हटाकर वे सीएम की कुर्सी पर सचिन पायलट की इमरजेंसी लैंडिंग आखिर करवाएं भी तो कैसे! साल 2018 से ही गहलोत और पायलट के बीच कुर्सी को लेकर चल रही इस लड़ाई में पीएम मोदी ने ऐसा तड़का लगा दिया है कि पार्टी नेतृत्व भी असमंजस में पड़ गया है कि आखिर अब क्या किया जाए.
पिछले साढ़े आठ साल के कार्यकाल में उनके दिए गए भाषणों पर अगर गौर करें तो पता चल जाएगा कि किसी सार्वजनिक मंच से अपने विरोधियों की तारीफ़ कब, कैसे और किन शब्दों में करनी है इस कला में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेहद माहिर हैं. उनकी एक तारीफ़ अगर मुख्य विपक्षी दल में अफरा-तफरी मचा दे तो ये मानना ही पड़ेगा कि उनका सियासी मकसद पूरा हो गया. दरअसल, मोदी ने मंगलवार को बांसवाड़ा के एक कार्यक्रम में सीएम अशोक गहलोत की तारीफ करके कांग्रेस में सुलगी इस सियासी चिंगारी में घी डालकर उसे और ज्यादा भड़का दिया है. बेशक सचिन पायलट राजनीति में गहलोत के मुकाबले कम अनुभवी हैं लेकिन इतने नादान भी नहीं हैं कि पीएम की इस तारीफ के सियासी मायने निकालने में वे गच्चा खा जायें.
पायलट इसीलिए ने अपनी व्यंग्यात्मक भाषा-शैली के जरिये बिना हिचकिचाए गहलोत पर निशाना साध दिया. उन्होंने मीडिया के सामने आकर अपनी बात को सफाई से रखते हुए जो कहा है उसका सीधा-सा मतलब है कि वे गहलोत की नीयत पर सवाल उठाते हुए पार्टी आलाकमान को भी आगाह कर रहे हैं, कि आने वाले दिनों में राजस्थान की सियासी तस्वीर किस तरह बदल सकती है. सचिन पायलट ने कहा कि ये बड़ी दिलचस्प बात है कि पीएम मोदी ने सार्वजनिक मंच से हमारे सीएम की तारीफ की है. इससे पहले पीएम ने ऐसे ही गुलाम नबी आजाद की भी तारीफ की थी, उन बातो का क्या अपरिणाम निकला ये हम सभी को पता है. ये एक दिलचस्प बात है लेकिन हमें ऐसी चीजों को गंभीरता से लेना चाहिए.
ग़ौरतलब है कि पीएम मोदी ने बीते अप्रैल में राज्यसभा से रिटायर हो रहे सांसदों को विदाई देने के दौरान उस वक़्त सदन में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आज़ाद की जमकर तारीफ की थी. तब सियासी गलियारों में ये कयास लगाये गए थे कि आज़ाद बीजेपी का दामन थाम सकते हैं क्योंकि कांग्रेस ने उन्हें दोबारा सदन में भेजने का मौका नहीं दिया था. पर, ऐसा नहीं हुआ और उन्होंने पार्टी आलाकमान को जमकर लताड़ते हुए अपना इस्तीफ़ा देकर नई पार्टी बनाने का ऐलान कर डाला.
यही वजह है कि पायलट ने पीएम की इस ताज़ा तारीफ़ की उसी पुरानी बातो को पकड़ते हुए पार्टी नेतृत्व को आगाह कर दिया है. हालांकि उन्होंने पिछले दिनों हुई विधायक दल की बैठक से नदारद रहकर बग़ावत करने वाले विधायकों के ख़िलाफ़ एक्शन लेने की गुहार भी खरगे से लगाई है. लेकिन आलाकमान शायद इसलिए बेबस दिखता लग रहा है कि ऐसी कोई कार्रवाई होते ही सीएम गहलोत उन विधायकों के बचाव में कूद पड़ेंगे और उस सूरत में कहीं पार्टी के दो फाड़ हो जाने की नौबत ही न आ जाए और अगर ऐसा हुआ तो सरकार गिरना तय है.
हालांकि इस हक़ीक़त को तो अब गहलोत भी जान चुके हैं कि अगले चुनाव में पार्टी उन्हें सीएम के बतौर प्रोजेक्ट नहीं करने वाली है. लेकिन आगे की तो छोड़िये, फिलहाल तो वे इसी जिद पर अड़े हुए हैं कि उन्हें चुनाव से पहले हटाने का मतलब है कांग्रेस में बग़ावत. इसीलिये पार्टी नेतृत्व एक तरह से डरा हुआ है. अगर वे गुलाम नबी आजाद के नक्शे-कदम पर न चलते हुए कांग्रेस में बने भी रहते हैं तब भी उनकी एक ही शर्त होगी कि अगले चुनाव में अगर मैं सीएम का चेहरा नहीं तो फिर सचिन पायलट भी नहीं. लेकिन बड़ा खतरा ये है कि सियासी अहंकार की ये लड़ाई कांग्रेस की लुटिया कहीं पूरी तरह से ही न डुबो दे.