European Climate Agency: यूरोपीय क्लाइमेट एजेंसी ने जारी की दुनिया को अलर्ट करने वाली रिपोर्ट, कहा- '2024 बनेगा सबसे गर्म ईयर'

European Climate Agency: यूरोपीय क्लाइमेट एजेंसी ने जारी की दुनिया को अलर्ट करने वाली रिपोर्ट, कहा- '2024 बनेगा सबसे गर्म ईयर'
Last Updated: 07 नवंबर 2024

यूरोपीय क्लाइमेट एजेंसी की नई रिपोर्ट के अनुसार, 2024 अब तक का सबसे गर्म साल बनने की कगार पर है। इस रिपोर्ट ने वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों को चिंतित कर दिया है, और इसे जलवायु परिवर्तन के खतरों का गंभीर संकेत माना जा रहा है। यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र की जलवायु कॉन्फ्रेंस COP29 से ठीक पहले आई है, जो अगले हफ्ते अजरबैजान में होने वाली हैं।

मौसम: यूरोपीय क्लाइमेट एजेंसी की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में वैश्विक तापमान का रिकॉर्ड टूटने की संभावना है, और यह अब तक का सबसे गर्म साल बनने वाला है। 2023 में भी अत्यधिक गर्मी ने पूरी दुनिया में अपना असर दिखाया था, लेकिन 2024 का तापमान इससे भी अधिक होने का अनुमान लगाया गया है। वैज्ञानिकों ने इस स्थिति को "खतरे की घंटी" करार दिया है, क्योंकि पहली बार दुनिया का तापमान औसतन 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 डिग्री फ़ारेनहाइट) से ऊपर चला गया हैं।

यह तापमान सीमा 2015 के पेरिस समझौते में निर्धारित की गई थी, जिसमें जलवायु परिवर्तन को सीमित रखने का लक्ष्य रखा गया था। वैश्विक तापमान का इस स्तर तक पहुंचना दुनिया के लिए गंभीर खतरे का संकेत है, क्योंकि यह केवल ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार को बढ़ाता है बल्कि समुद्री स्तर में वृद्धि, अधिक तीव्र और लंबे समय तक चलने वाले हीटवेव्स, और सूखा जैसी समस्याओं को भी बढ़ावा देता हैं।

क्या है 2015 का पैरिस समझौता?

2015 में पेरिस में हुए जलवायु समझौते का मुख्य उद्देश्य वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित रखना था। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी कि अगर तापमान में यह बढ़ोतरी 2 डिग्री से अधिक हो जाती है, तो पृथ्वी की जलवायु में बड़े और संभावित रूप से विनाशकारी बदलाव हो सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप समुद्र का स्तर बढ़ सकता है, अधिक बाढ़ और सूखा की घटनाएं हो सकती हैं, जमीन धंस सकती है, और जंगलों में आग जैसी आपदाएं बढ़ सकती हैं।

पेरिस समझौते के तहत, सभी सदस्य देशों को तापमान की वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का लक्ष्य रखने के लिए प्रोत्साहित किया गया था। यह अतिरिक्त प्रयास इसलिए जरूरी माना गया क्योंकि 1.5 डिग्री की सीमा के भीतर तापमान को बनाए रखने से जलवायु परिवर्तन के कई गंभीर प्रभावों को टाला जा सकता हैं।

तापमान बढ़ने का क्या है कारण?

यूरोपीय क्लाइमेट एजेंसी ने तापमान बढ़ने की कई वजहों का जिक्र किया है, जिनमें सबसे प्रमुख अल नीनो की घटना है। अल नीनो प्रशांत महासागर में होने वाला एक प्राकृतिक घटनाक्रम है, जो महासागर के तापमान को गर्म करता है। इसके प्रभाव से दुनियाभर के मौसम में बदलाव आते हैं, जिससे बारिश, सर्दी, और गर्मी के पैटर्न बदल जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप तापमान में बढ़ोतरी होती है, जिससे सूखा, बाढ़, और अन्य चरम मौसम की घटनाएं अधिक होने लगती हैं।

दूसरी बड़ी वजह ज्वालामुखी विस्फोट है। जब ज्वालामुखी फटते हैं, तो वे बड़ी मात्रा में राख और धुआं वायुमंडल में छोड़ते हैं। यह राख और धुआं सूर्य की किरणों को अवशोषित कर जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देता है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि इन घटनाओं के प्रभाव को खतरे की घंटी की तरह देखा जाना चाहिए, ताकि जलवायु संकट से निपटने के लिए तत्काल और ठोस कदम उठाए जा सकें।

जल्द होगी संयुक्त राष्ट्र की जलवायु कॉन्फ्रेंस COP29

यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब अमेरिका में जलवायु परिवर्तन पर संदेह रखने वाले रिपब्लिकन नेता डोनाल्ड ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बने हैं। ट्रंप की वापसी ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय प्रयासों में संभावित रुकावट का संकेत दिया है, क्योंकि उनके पिछले कार्यकाल में जलवायु संकट को गंभीरता से लेने के लिए उनकी आलोचना होती रही थी। इस स्थिति ने आगामी संयुक्त राष्ट्र जलवायु कॉन्फ्रेंस COP29 से पहले चिंता बढ़ा दी है, जो अजरबैजान में होने वाली हैं।

COP29 सम्मेलन में यह नवीनतम रिपोर्ट देशों की सरकारों को एक बार फिर चेतावनी देती है कि तापमान में लगातार हो रही वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए तत्काल और ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। यह चेतावनी एक महत्वपूर्ण याद दिलाती है कि जलवायु संकट को हल्के में लेना गंभीर पर्यावरणीय और सामाजिक परिणामों को जन्म दे सकता है। अब यह देखना होगा कि COP29 में वैश्विक नेता जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए क्या नीतियाँ और लक्ष्य निर्धारित करते हैं।

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