महाराजा रणजीत सिंह की जयंती 13 नवंबर को मनाई जाती है। महाराजा रणजीत सिंह, जिन्हें "शेर-ए-पंजाब" के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय इतिहास के महानतम शासकों में से एक हैं। उनका जन्म 13 नवंबर 1780 को पंजाब के गुजरांवाला (अब पाकिस्तान में) हुआ था। महज 12 साल की उम्र में ही उन्होंने गद्दी संभाली और जीवन भर सिख साम्राज्य की स्थापना और संरक्षण के लिए संघर्ष किया। रणजीत सिंह का जीवन साहस, संघर्ष, नीति और धर्मनिरपेक्षता की प्रेरणादायक गाथाओं से भरा हुआ था।
बचपन का संघर्ष और सैन्य नेतृत्व की शुरुआत
महाराजा रणजीत सिंह का बचपन बेहद संघर्षपूर्ण था। बचपन में ही चेचक से एक आंख की रोशनी गंवाने के बावजूद उन्होंने कभी अपनी शारीरिक कमी को अपनी ताकत बनने से नहीं रोका। उन्हें एक योद्धा के रूप में प्रशिक्षित किया गया था, और महज 10 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पहली लड़ाई लड़ी थी। 12 साल की छोटी सी उम्र में जब उनके पिता महा सिंह का निधन हुआ, तब उन्हें सुकरचकिया मिसल की कमान मिली और उन्होंने वीरता और साहस के साथ अपनी सेना का नेतृत्व किया।
सिख साम्राज्य की नींव और लाहौर पर विजय
1799 में, रणजीत सिंह ने लाहौर पर आक्रमण किया और अफगान शासक जमानशाह की सेना को हराया। यह उनके जीवन का एक बड़ा मोड़ था। रणजीत सिंह ने लाहौर पर विजय प्राप्त कर इसे अपनी राजधानी बना लिया। इसके बाद, 1801 में, उन्होंने खुद को महाराजा के रूप में स्थापित किया और औपचारिक रूप से सिख साम्राज्य की नींव रखी।
उनकी सैन्य रणनीतियाँ और प्रशासनिक निर्णय सिख साम्राज्य को दिन-ब-दिन मजबूत करते गए। 1802 में, उन्होंने अमृतसर की ओर रुख किया और अफगान शासकों को पश्चिमी पंजाब से खदेड़ दिया। उनकी सैन्य रणनीतियों में न केवल युद्ध कौशल बल्कि कूटनीति और सहनशीलता का अद्भुत मिश्रण था, जिसने उन्हें साम्राज्य के लिए एक आदर्श नेता बना दिया।
धर्मनिरपेक्षता और समाज के प्रति उनकी दृष्टि
रणजीत सिंह का शासन सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान और आस्थाओं की स्वतंत्रता का प्रतीक था। वे सिख धर्म के प्रति अपनी निष्ठा रखते हुए भी, उन्होंने कभी धर्म को राजनीति या प्रशासन का हिस्सा नहीं बनने दिया। वे कहते थे, "भगवान ने मुझे एक आंख दी है, तो मुझे सभी धर्मों, जातियों और समुदायों को एक समान देखना चाहिए।" उनकी दृष्टि में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, अमीर और गरीब सभी समान थे। यही कारण है कि उन्होंने अपने साम्राज्य में सभी समुदायों के लिए समान अधिकार और अवसर सुनिश्चित किए।
रणजीत सिंह के साम्राज्य में सैनिक, प्रशासनिक और आर्थिक सुधार
रणजीत सिंह के शासन में सैनिक और प्रशासनिक सुधारों ने साम्राज्य को न केवल मजबूत किया बल्कि इसे समृद्ध भी किया। उन्होंने अपनी सेना में कई सुधार किए, जिससे सिख सेना भारत की सबसे सशक्त सेनाओं में से एक बन गई। उनका प्रशासन भी मजबूत और व्यवस्थित था, और उन्होंने किसानों, व्यापारियों और साधारण जनता के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं बनाई।
उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ भी कड़ी नीतियां अपनाईं और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अपनी स्वायत्तता बनाए रखने के लिए हमेशा संघर्ष किया। उनके साम्राज्य के विस्तार और सशक्तीकरण ने भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश प्रभुत्व के खिलाफ एक दृढ़ प्रतिरोध का रूप लिया।
रणजीत सिंह की विरासत और अंतिम दिन
महाराजा रणजीत सिंह का निधन 27 जून 1839 को हुआ। हालांकि उनकी मृत्यु के बाद सिख साम्राज्य में सत्ता संघर्ष हुआ और धीरे-धीरे ब्रिटिश साम्राज्य ने पंजाब पर नियंत्रण स्थापित कर लिया, लेकिन उनका नाम और उनकी नीतियां आज भी जीवित हैं। उनका जीवन भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय आदर्श बना हुआ है, जो हर भारतीय को प्रेरणा देता है।
महाराजा रणजीत सिंह की जयंती पर हमें उनके जीवन से कई महत्वपूर्ण शिक्षा मिलती है। उनका संघर्ष, नेतृत्व और धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण हमें यह सिखाता है कि सशक्त नेतृत्व केवल युद्ध कौशल तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह समाज के सभी वर्गों के प्रति समानता, न्याय और अधिकार की भावना से उत्पन्न होता है। वे न केवल एक महान शासक थे, बल्कि एक महान इंसान भी थे, जिन्होंने अपने शासन में मानवता, धर्म और नीति का पालन किया।
आज, जब हम महाराजा रणजीत सिंह की जयंती मनाते हैं, तो हमें यह याद रखना चाहिए कि उनके द्वारा स्थापित मूल्य और उनका साहस हमेशा हमारे मार्गदर्शक होंगे।