केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन का 101 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वे वामपंथी आंदोलन के वरिष्ठ नेता थे। उन्होंने ट्रेड यूनियन से शुरुआत कर मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया।
Kerala: केरल के पूर्व मुख्यमंत्री और माकपा के वरिष्ठ नेता वी.एस. अच्युतानंदन का सोमवार को निधन हो गया। वह 101 वर्ष के थे। उन्होंने तिरुवनंतपुरम के एक निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। पिछले महीने उन्हें दिल का दौरा पड़ा था, जिसके बाद से वह अस्पताल में भर्ती थे। उनका निधन केरल की राजनीति के एक युग के अंत का प्रतीक है।
अंतिम समय में परिवार और पार्टी नेताओं ने दी अंतिम विदाई
मुख्यमंत्री पिनराई विजयन, सीपीएम के वरिष्ठ नेता और अन्य पार्टी पदाधिकारी सोमवार सुबह अस्पताल पहुंचे थे। सभी ने अच्युतानंदन से मिलकर हालचाल जाना। शाम होते-होते उनके निधन की खबर सामने आई। वीएस अच्युतानंदन के निधन से पूरे राज्य में शोक की लहर फैल गई।
राजनीति में सात दशक का सफर
वीएस अच्युतानंदन का राजनीतिक जीवन सात दशकों से भी अधिक लंबा रहा। उनका जन्म 20 अक्टूबर 1923 को हुआ था। उन्होंने 1939 में ट्रेड यूनियन आंदोलन से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। 1940 में वे कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ गए और जीवनभर वामपंथी विचारधारा के लिए समर्पित रहे।
2006 से 2011 तक रहे मुख्यमंत्री
अच्युतानंदन ने 2006 से 2011 तक केरल के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। वे उन कुछ नेताओं में से एक थे जो संगठनात्मक कार्यों के साथ-साथ प्रशासनिक अनुभव भी रखते थे। उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई, भूमि सुधार और सामाजिक न्याय के प्रयासों को सराहा गया।
15 साल तक विपक्ष के नेता रहे
मुख्यमंत्री बनने से पहले वे 15 वर्षों तक केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे। उन्होंने सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए जनहित के मुद्दों को प्रमुखता दी। उनकी स्पष्टवादिता और सादगी उन्हें आम लोगों के बीच लोकप्रिय बनाती थी।
पोलित ब्यूरो के सदस्य के रूप में लंबी सेवा
वीएस अच्युतानंदन 1985 से 2009 तक माकपा की केंद्रीय समिति पोलित ब्यूरो के सदस्य रहे। बाद में उन्हें सेंट्रल कमेटी में स्थानांतरित कर दिया गया। उन्होंने पार्टी संगठन को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई। उनके विचारों की पार्टी में हमेशा गूंज रही।
श्रमिकों और किसानों के हित में कई आंदोलन
राजनीतिक जीवन की शुरुआत के दिनों में अच्युतानंदन ने कोयर फैक्ट्री के मजदूरों, ताड़ी निकालने वालों और खेतिहर मजदूरों के लिए काम किया। उन्होंने त्रावणकोर में करशका थोजिलाली यूनियन की स्थापना की। यही यूनियन आगे चलकर केरल स्टेट करशका थोजिलाली यूनियन बनी।
वामपंथी आंदोलनों के दौरान वीएस कई बार जेल गए और भूमिगत भी रहे। पुन्नपरा-वायलार आंदोलन के दौरान वे प्रमुख नेता के रूप में उभरे। उन्हें पांच साल से ज्यादा जेल में रहना पड़ा और करीब साढ़े चार साल तक वे भूमिगत रहे। यह संघर्षशीलता उन्हें जनता से जोड़ती रही।