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आरबीआई नीति में बदलाव से एफपीआई ने बाजार में फिर किया निवेश

आरबीआई नीति में बदलाव से एफपीआई ने बाजार में फिर किया निवेश

जून महीने में अब तक की बात करें तो एफपीआई की ओर से कुल मिलाकर शुद्ध बिकवाली देखने को मिली है, लेकिन आरबीआई की नीतियों और बाजार के बुनियादी कारकों के चलते निवेशकों की नजरें अब भी भारतीय बाजार पर बनी हुई हैं।

नई दिल्ली: भारतीय शेयर बाजार में बीते सप्ताह विदेशी निवेशकों ने जिस तरह से भरोसा जताया, उसने घरेलू निवेशकों के लिए राहत की सांस दी है। एक तरफ जहां जून की शुरुआत बिकवाली के माहौल में हुई, वहीं दूसरी ओर बीते सप्ताह विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों यानी एफपीआई ने भारी भरकम निवेश कर बाजार को मजबूती दी। नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (एनएसडीएल) के ताजा आंकड़ों के अनुसार, 9 से 13 जून के बीच एफपीआई ने कुल 3346.94 करोड़ रुपये की शुद्ध खरीदारी की है।

इस निवेश प्रवाह का प्रमुख कारण रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति में किया गया परिवर्तन माना जा रहा है। दरअसल, आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में की गई कटौती के चलते निवेशकों के मनोबल में सुधार देखा गया और इसका सीधा असर बाजार में एफपीआई की सक्रियता के रूप में सामने आया।

ब्याज दरों में कटौती ने बढ़ाया निवेशकों का आत्मविश्वास

भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में ब्याज दरों में कटौती की घोषणा की थी, जिसके बाद बाजार में नई ऊर्जा का संचार हुआ। ब्याज दरों में कमी का सीधा असर कंपनियों की फंडिंग लागत पर पड़ता है। इससे कंपनियों के लाभ में बढ़ोतरी की संभावना बनती है और निवेशकों का विश्वास मजबूत होता है।

एफपीआई ने हफ्ते की शुरुआत में, यानी 9 से 11 जून तक, भारी खरीदारी की। इसका लाभ भारतीय शेयर बाजार को मिला और प्रमुख इंडेक्स में तेजी का रुख देखा गया। इन तीन दिनों में विदेशी निवेशकों ने हजारों करोड़ रुपये भारतीय इक्विटी मार्केट में लगाए, जिससे बाजार की गति में सकारात्मक बदलाव आया।

शुक्रवार को फिर लौटी अनिश्चितता, भू-राजनीतिक तनाव ने किया असर

हालांकि हफ्ते के अंत में बाजार का माहौल फिर से अस्थिरता की ओर मुड़ गया। शुक्रवार यानी 13 जून को इजरायल और ईरान के बीच गहराते भू-राजनीतिक तनावों के कारण वैश्विक निवेशकों में अनिश्चितता देखी गई। इसी दिन एफपीआई ने भारतीय बाजार से 3275.76 करोड़ रुपये की निकासी की, जिससे सप्ताह भर की शुद्ध खरीदारी का आंकड़ा सीमित हो गया।

इस घटनाक्रम ने यह साफ कर दिया कि भले ही भारत की आंतरिक आर्थिक स्थिति मजबूत हो, लेकिन वैश्विक संकटों का असर विदेशी निवेशकों के निर्णय पर तुरंत पड़ता है। इस कारण बाजार में अचानक बिकवाली का दौर शुरू हो जाता है, जो छोटे निवेशकों के लिए चिंता का विषय बन सकता है।

जून का समग्र रुख अभी भी बिकवाली की ओर

हालांकि बीते हफ्ते की शुद्ध खरीदारी सकारात्मक रही, लेकिन यदि पूरे जून महीने के आंकड़ों पर नजर डालें तो एफपीआई का रुख अब तक बिकवाली का ही रहा है। जून की शुरुआत से लेकर अब तक एफपीआई ने कई बार बाजार से धन निकाला है।

मार्च में भी एफपीआई ने 3973 करोड़ रुपये की बिकवाली की थी, जबकि जनवरी और फरवरी 2025 में यह आंकड़ा क्रमशः 78027 करोड़ और 34574 करोड़ रुपये तक पहुंचा था। इससे स्पष्ट है कि विदेशी निवेशकों का विश्वास उतार-चढ़ाव भरा रहा है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस हफ्ते की खरीदारी को दीर्घकालिक निवेश रुझान की शुरुआत नहीं कहा जा सकता, बल्कि यह एक सीमित अवधि का भरोसा है जो खास परिस्थितियों में उत्पन्न हुआ है।

ग्लोबल कारकों से प्रभावित रहेगा निवेश का रुख

बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि फिलहाल एफपीआई का निवेश रुख पूरी तरह से वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक घटनाक्रमों पर निर्भर करेगा। अमेरिका और चीन के बीच व्यापार विवाद, पश्चिम एशिया में तनाव और अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जैसे मुद्दे आने वाले हफ्तों में एफपीआई की रणनीति को प्रभावित कर सकते हैं।

इसके अलावा, अमेरिका द्वारा ब्याज दरों में संभावित बदलाव और डॉलर की मजबूती जैसे फैक्टर भी भारतीय बाजार में एफपीआई की स्थिति को तय करेंगे। बाजार विश्लेषकों का कहना है कि यदि वैश्विक तनाव कम होता है और आरबीआई की नीतियों का सकारात्मक असर दिखता है, तो एफपीआई निवेश दोबारा गति पकड़ सकता है।

घरेलू निवेशकों के लिए संकेत क्या हैं

एफपीआई की गतिविधियां घरेलू निवेशकों के लिए हमेशा से संकेतक का काम करती हैं। जब विदेशी निवेशक किसी बाजार में भरोसा जताते हैं, तो वह उस देश की आर्थिक नीतियों और कारोबारी माहौल की स्वीकृति का संकेत होता है। बीते सप्ताह की खरीदारी भले ही सीमित रही हो, लेकिन इसने यह संकेत जरूर दे दिया है कि विदेशी निवेशक भारतीय अर्थव्यवस्था की संभावनाओं को गंभीरता से देख रहे हैं।

ऐसे में घरेलू निवेशकों को जल्दबाजी में प्रतिक्रिया देने के बजाय बाजार की दिशा और वैश्विक संकेतों का विश्लेषण कर निवेश रणनीति बनानी चाहिए।

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