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AIMIM की राजनीतिक मान्यता बरकरार, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

AIMIM की राजनीतिक मान्यता बरकरार, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने AIMIM की मान्यता रद्द करने की याचिका खारिज की। याचिका में धर्म के आधार पर वोट मांगने का आरोप था। कोर्ट ने कहा, अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करना संविधान विरोधी नहीं है।

Politics: सुप्रीम कोर्ट ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) की मान्यता रद्द करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका तिरुपति नरसिम्हा मुरारी की ओर से दायर की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि AIMIM धर्म के आधार पर वोट मांगती है, जो संविधान की धर्मनिरपेक्षता (Secularism) की भावना के खिलाफ है।

याचिकाकर्ता के आरोप और तर्क

याचिकाकर्ता का तर्क था कि AIMIM केवल एक धर्म विशेष यानी मुसलमानों के हितों को आगे बढ़ाने की बात करती है और अपने संविधान (Constitution) में भी उसी समुदाय की रक्षा को प्राथमिकता देती है। अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कोर्ट में दलील दी कि यह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act) और भारतीय संविधान के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है।

कोर्ट का रुख और टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची शामिल थे, ने स्पष्ट किया कि वह इस याचिका पर सुनवाई नहीं करेगी। कोर्ट ने कहा कि संविधान स्वयं अल्पसंख्यकों को संरक्षण प्रदान करता है और किसी पार्टी द्वारा अल्पसंख्यक हितों के लिए कार्य करना संविधान विरोधी नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता अगर चाहे तो व्यापक मुद्दों पर एक नई रिट याचिका (Writ Petition) दाखिल कर सकता है।

हाई कोर्ट का पहले का फैसला भी कायम

दिल्ली हाई कोर्ट ने पहले ही इस याचिका को खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट ने माना था कि AIMIM ने अपने पार्टी दस्तावेजों में यह घोषित किया है कि वह भारतीय संविधान के प्रति निष्ठावान है और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का पालन करती है। हाई कोर्ट के इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया और उसमें हस्तक्षेप करने से मना कर दिया।

राजनीतिक दलों की वैधता और संविधान

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी राजनीतिक दल को केवल इस आधार पर असंवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता कि वह किसी खास समुदाय के मुद्दों को प्राथमिकता देता है। जब तक पार्टी भारतीय संविधान और चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों का पालन करती है, तब तक उसका पंजीकरण वैध बना रहता है।

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