भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को हर साल बहुला चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। इस साल 2025 में यह खास दिन 12 अगस्त को पड़ रहा है। यह पर्व विशेष रूप से गौमाता की पूजा को समर्पित होता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन गाय की पूजा करने से जीवन में सुख-शांति बनी रहती है और संतान को लंबी उम्र और अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है। इस दिन श्रीकृष्ण और बहुला गाय की कथा का विशेष महत्व है।
बहुला चतुर्थी का शुभ मुहूर्त और तिथि
इस साल बहुला चतुर्थी की शुरुआत 12 अगस्त 2025 को सुबह 8 बजकर 40 मिनट से होगी और यह तिथि अगले दिन 13 अगस्त को सुबह 6 बजकर 35 मिनट तक रहेगी। पूजा के लिए सबसे उत्तम समय 12 अगस्त को सुबह 9 बजकर 7 मिनट से दोपहर 2 बजकर 5 मिनट तक रहेगा। वहीं, चंद्रोदय का समय रात 8 बजकर 20 मिनट पर होगा। इस समय व्रतधारी चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपने व्रत का समापन करते हैं।
जन्माष्टमी के ठीक बाद बहुला चतुर्थी का पर्व आता है। श्रीकृष्ण को जहां गायें अत्यंत प्रिय थीं, वहीं बहुला नाम की गाय के साथ उनकी एक खास कथा जुड़ी है। यही कारण है कि इस दिन कान्हा जी के साथ गाय की पूजा की जाती है। यह त्योहार भक्ति, त्याग और धर्म के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
बहुला गाय की कथा से जुड़ा है पर्व का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने बहुला गाय की परीक्षा लेने के लिए स्वयं को शेर के रूप में उसके सामने प्रस्तुत किया। बहुला उस समय अपने बछड़े के लिए दूध ले जा रही थी। जब उसने शेर को देखा तो मृत्यु के भय से भागने की बजाय, उसने शेर से निवेदन किया कि वह पहले अपने बछड़े को दूध पिलाने जाए और फिर वापस लौटकर स्वयं को शेर के हवाले कर देगी।
शेर ने उसकी बात मान ली। बहुला गाय अपने बछड़े को दूध पिलाने के बाद अपने वचन के अनुसार लौट आई। उसकी इस निष्ठा और धर्मपरायणता को देखकर भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न हो गए और अपने रूप में प्रकट होकर उसे वरदान दिया कि कलियुग में जो भी बहुला चतुर्थी के दिन तुम्हारी पूजा करेगा, उसकी संतान पर कोई संकट नहीं आएगा।
हिंदू धर्म में गाय को मां का दर्जा दिया गया है। शास्त्रों के अनुसार, गाय में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास होता है। बहुला चतुर्थी के दिन व्रती महिलाएं विशेष रूप से गाय की पूजा करती हैं। वे उसकी सेवा करती हैं, उसे चारा खिलाती हैं और उसके पैर धोकर पूजा करती हैं। ऐसा करने से संतान की आयु, स्वास्थ्य और भविष्य उज्ज्वल रहता है।
गणेश जी की भी होती है पूजा
बहुला चतुर्थी के दिन गणेश जी की पूजा करने का भी महत्व होता है। क्योंकि इसी दिन हर महीने आने वाली संकष्टी चतुर्थी भी पड़ती है, जिसे हेरंब संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
व्रत और पूजन विधि
बहुला चतुर्थी पर व्रत रखने वाले व्यक्ति को सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए। फिर गौमाता की विधिपूर्वक पूजा करें। उन्हें साफ पानी से स्नान कराएं, फिर फूल, अक्षत, रोली और गुड़ अर्पित करें। साथ ही श्रीकृष्ण की भी पूजा करें। दिनभर व्रत रखें और शाम को चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूरा करें।
बहुला चतुर्थी खासकर ग्रामीण इलाकों में बहुत धूमधाम से मनाई जाती है। गांवों में लोग अपने पशुओं को विशेष आहार देते हैं, उन्हें सजाते हैं और गौशालाओं की सफाई करके पूजा की जाती है। महिलाएं पारंपरिक गीत गाती हैं और बहुला गाय की कथा का श्रवण करती हैं। कई स्थानों पर सामूहिक रूप से भी यह आयोजन किया जाता है।
गौ सेवा को बताया गया है सबसे बड़ा धर्म
बहुला चतुर्थी का मूल संदेश यही है कि गौसेवा केवल धार्मिक कार्य नहीं, बल्कि मानवीय कर्तव्य भी है। गाय भारतीय संस्कृति और कृषि की आत्मा मानी जाती है। इस दिन की परंपराएं आज भी लोगों को अपनी संस्कृति से जोड़ती हैं और जीवन में सेवा, त्याग और वचनबद्धता जैसे मूल्यों की याद दिलाती हैं।
शहरों में भी बढ़ रहा है पर्व का प्रभाव
हालांकि यह पर्व अधिकतर ग्रामीण इलाकों में मनाया जाता है, लेकिन अब शहरी क्षेत्रों में भी इसकी मान्यता बढ़ने लगी है। कई मंदिरों और गोशालाओं में इस दिन विशेष पूजा का आयोजन होता है। लोग अपने बच्चों के साथ गायों को चारा खिलाते हैं और परिवार की सुख-शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।