बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। चुनावी माहौल में नए-नए मुद्दे चर्चा में हैं। इनमें सबसे ज्यादा ध्यान खींच रहा है MY फैक्टर, यानी मुस्लिम और यादव वोट बैंक, जो लंबे समय से बिहार की राजनीति में अहम भूमिका निभाता रहा है।
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव नज़दीक आने के साथ ही राज्य की राजनीति में गर्माहट बढ़ती जा रही है। चुनाव की तारीखों का ऐलान कभी भी हो सकता है, ऐसे में राजनीतिक दल पूरी ताकत झोंक रहे हैं और नए-नए मुद्दे सामने आ रहे हैं। बिहार की राजनीति में लंबे समय से MY फैक्टर (मुस्लिम‑यादव) की अहम भूमिका रही है, खासकर RJD के लिए यह वोट बैंक महत्वपूर्ण माना जाता है।
लेकिन इस बार चुनावी माहौल में एक नया मुद्दा उभर कर सामने आया है, जिसे “माई फैक्टर” कहा जा रहा है। माई यानी ‘मां’—यह नया प्रतीक अब मतदाताओं, खासकर महिलाओं के बीच चर्चा का विषय बन रहा है।
MY फैक्टर – RJD की पहचान, पर चुनौतियों में
बिहार की राजनीति में MY फैक्टर दशकों से चर्चा में रहा है। लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने मुस्लिम और यादव वोटरों को गोलबंद कर सत्ता में अपनी मजबूत पकड़ बनाई थी। मुस्लिम वोटर परंपरागत रूप से भाजपा से दूर रहे हैं, जबकि यादव समुदाय लालू परिवार के प्रति निष्ठावान माना जाता है।
हालांकि, वर्तमान में स्थिति कुछ बदलती दिख रही है। भाजपा ने यादव समुदाय में सेंध लगाने की कोशिश की है। केंद्र की योजनाओं के लाभार्थियों को जोड़कर और यादव नेताओं को आगे बढ़ाकर भाजपा ने अपनी पकड़ मजबूत करने का प्रयास किया है। वहीं, मुस्लिम वोटरों को फिर से I.N.D.I.A. गठबंधन के पक्ष में लाने की कोशिश की जा रही है।
लेकिन बिहार का सामाजिक समीकरण अब पहले जैसा नहीं रहा। जातीय पहचान अब भी प्रभावी है, परंतु महंगाई, बेरोजगारी, पलायन और विकास जैसे मुद्दे भी मतदाताओं की प्राथमिकताओं में शामिल हो चुके हैं। इसका असर यह हो सकता है कि केवल MY फैक्टर पर आधारित चुनावी रणनीति उतनी प्रभावी न रहे।
माई फैक्टर – ‘मां के अपमान’ का मुद्दा
हाल ही में चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां को लेकर दिए गए अपशब्दों ने राजनीतिक तापमान और बढ़ा दिया। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की वोटर अधिकार यात्रा के मंच से एक शख्स ने पीएम मोदी की मां के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की। यद्यपि मंच पर मौजूद नेताओं ने इसका समर्थन नहीं किया, लेकिन भाजपा ने इसे चुनावी मुद्दा बना दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने नम आंखों से इसका जिक्र कर जनता से भावनात्मक अपील की।
इसके बाद भाजपा ने बिहार बंद का ऐलान कर इसे और उग्र रूप दिया। वहीं, कांग्रेस ने भी AI जनरेटेड वीडियो जारी कर पलटवार किया, जिसमें पीएम मोदी और उनकी मां के रूप में दिखाए गए पात्र राजनीति पर कटाक्ष करते नजर आए। यह मुद्दा भावनात्मक हो सकता है और खासकर महिलाओं के बीच चर्चा में रह सकता है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह चुनाव की दिशा बदलने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। महंगाई, बेरोजगारी, स्वास्थ्य सेवाएं और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दे कहीं अधिक प्रभावशाली साबित हो सकते हैं।
क्या बिहार में केवल जाति और भावनात्मक मुद्दे वोट तय करेंगे?
बिहार की राजनीति में जातीय समीकरणों का प्रभाव लंबे समय से देखा गया है। MY फैक्टर इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। लेकिन बदलते सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य ने वोटिंग पैटर्न को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। युवा बेरोजगारी, शिक्षा की गुणवत्ता, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, और पलायन जैसे मुद्दे अब चुनावी चर्चा का हिस्सा हैं।
खासकर पहली बार वोट करने वाले युवाओं की संख्या बढ़ रही है, जो जाति से इतर विकास और रोजगार जैसे मुद्दों को प्राथमिकता दे सकते हैं। इसी तरह महिलाओं के बीच ‘माई फैक्टर’ पर चर्चा हो सकती है, लेकिन यह निर्णायक वोट बैंक में तब्दील हो पाएगा या नहीं, यह संदिग्ध है।