बिहार SIR मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वोटर लिस्ट से 65 लाख नाम हटाने पर चिंता जताई। कोर्ट ने कहा, अगर यह सच है तो हम तुरंत हस्तक्षेप करेंगे। चुनाव आयोग को जवाब देने को कहा गया।
Bihar SIR Case: बिहार में वोटर लिस्ट से 65 लाख नाम हटाए जाने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर रुख अपनाया है। कोर्ट ने कहा कि अगर जीवित लोगों के नाम सूची से बाहर किए गए हैं, तो वह हस्तक्षेप करेगा। याचिकाकर्ताओं ने चुनाव आयोग पर प्रक्रिया में गड़बड़ी का आरोप लगाया है। मामले की सुनवाई जारी है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिखाया सख्त रुख
बिहार में मतदाता सूची (Voter List) से लाखों नाम हटाए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान स्पष्ट कहा कि अगर यह साबित होता है कि बड़े पैमाने पर जीवित लोगों के नाम हटाए गए हैं, तो वह तुरंत हस्तक्षेप करेगा। कोर्ट ने मामले को गंभीर मानते हुए याचिकाकर्ताओं और चुनाव आयोग की दलीलों को सुना।
कोर्ट ने मांगा प्रमाण: '15 लोग लाओ, जो कहें वे जीवित हैं'
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे 15 ऐसे लोगों को कोर्ट में लाएं, जिनके नाम ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से हटाए गए हैं और वे अभी जीवित हैं। यह निर्देश इस आरोप के संदर्भ में आया कि चुनाव आयोग ने बिना उचित प्रक्रिया के नामों को सूची से हटाया है।
याचिकाकर्ताओं की आपत्ति: 65 लाख नामों पर सवाल
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण और गोपाल शंकरनारायणन ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी कि चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित मसौदा सूची (Draft Voter List) में 65 लाख लोगों के नाम नहीं हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि चुनाव आयोग ने यह तय कैसे किया कि ये लोग मृत हैं या राज्य से स्थायी रूप से बाहर चले गए हैं?
चुनाव आयोग का पक्ष: प्रक्रिया के अनुसार काम किया गया
चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने अदालत को बताया कि यह सूची अभी ड्राफ्ट है और आम जनता को आपत्ति दर्ज कराने के लिए 30 दिन का समय दिया गया है। उन्होंने कहा कि सभी राजनीतिक दलों को मसौदा सूची की प्रति दी गई है और व्यापक स्तर पर इसकी जानकारी दी जा चुकी है।
'राजनीतिक दलों को NGO जैसा काम करना चाहिए'
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि राजनीतिक दलों को इस प्रक्रिया में सक्रियता दिखाते हुए गैर-सरकारी संगठनों (NGO) की तरह काम करना चाहिए और जिनके नाम हटाए गए हैं, उन्हें सूची में शामिल करवाने में मदद करनी चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर मसौदा सूची में अस्पष्टता है तो उसे ठीक किया जाना चाहिए।
बहस के लिए समय तय: दोनों पक्षों को मिलेगा मौका
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर बहस की समय-सारणी का संज्ञान लेते हुए कहा कि वह बहस के लिए तीन घंटे का समय देगा। सिब्बल ने अनुरोध किया कि याचिकाकर्ताओं को एक पूरा दिन और चुनाव आयोग को एक दिन का समय दिया जाए। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि बातों की पुनरावृत्ति न हो, यह सुनिश्चित किया जाए।
सवाल: ड्राफ्ट सूची में नाम न होने पर व्यक्ति कैसे जाने?
प्रशांत भूषण ने कहा कि जिनका नाम ड्राफ्ट सूची में नहीं है, उन्हें खुद यह कैसे पता चलेगा कि वे सूची से बाहर हैं? उन्होंने कहा कि इन लोगों को नाम जुड़वाने के लिए नए सिरे से आवेदन करना पड़ेगा, लेकिन पहले उन्हें यह तो पता चले कि नाम हटाया गया है।
जनवरी 2025 की सूची को माना जाएगा आधार
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर वर्तमान मसौदा सूची विवादास्पद है, तो जनवरी 2025 की मतदाता सूची को आधार माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि वह एक न्यायिक प्राधिकरण के रूप में इस मामले की समीक्षा कर रहा है और निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित की जाएगी। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है और कोर्ट मानता है कि उसकी कार्रवाई कानून के अनुसार होगी। लेकिन यदि किसी प्रकार की अनियमितता पाई जाती है, तो न्यायालय हस्तक्षेप करने से पीछे नहीं हटेगा।