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Detective Sherdil Review: दिलजीत दोसांझ की फिल्म निकली फ्लॉप, मर्डर मिस्ट्री की जगह दिखी रील्स की चमक

Detective Sherdil Review: दिलजीत दोसांझ की फिल्म निकली फ्लॉप, मर्डर मिस्ट्री की जगह दिखी रील्स की चमक

दिलजीत दोसांझ और डायना पेंटी की मोस्ट अवेटेड क्राइम थ्रिलर डिटेक्टिव शेरदिल आखिरकार आज OTT पर रिलीज हो गई है। इस फिल्म में दिलजीत दोसांझ एक सोशल मीडिया से प्रभावित जासूस की भूमिका निभाते नजर आते हैं, जो एक हाई-प्रोफाइल मर्डर केस की तह तक पहुंचने की कोशिश करता है।

  • नाम: डिटेक्टिव शेरदिल
  • रेटिंग : 2/5 
  • कलाकार : दिलजीत दोसांझ, डायना पेंटी, रत्ना पाठक शाह, बमन ईरानी, सुमित व्यास, बनिता संधू, चंकी पांडे
  • निर्देशक : रवि छाबड़िया
  • रिलीज डेट : Jun 20, 2025
  • प्लेटफॉर्म : Zee5
  • भाषा : हिंदी
  • बजट : N/A

एंटरटेनमेंट: दिलजीत दोसांझ और डायना पेंटी स्टारर मचअवेटेड फिल्म डिटेक्टिव शेरदिल 20 जून को ओटीटी प्लेटफॉर्म जी5 पर रिलीज हो चुकी है। फिल्म को लेकर फैंस में काफी उत्साह था, खासकर क्योंकि यह एक मर्डर मिस्ट्री थी और दिलजीत इस बार एक डिटेक्टिव के अवतार में नजर आ रहे थे। लेकिन अफसोस, फिल्म दर्शकों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई। 

फिल्म ने न तो मर्डर मिस्ट्री का रोमांच दिया और न ही कोई ऐसा सस्पेंस पेश किया जिससे दर्शक सीट से बंधे रह सकें। कुल मिलाकर, डिटेक्टिव शेरदिल सोशल मीडिया इमेज और स्टाइलिश प्रजेंटेशन में उलझकर रह गई।

बुडापेस्ट की पृष्ठभूमि और शेरदिल की एंट्री

फिल्म की शुरुआत बुडापेस्ट से होती है, जहां शेरदिल (दिलजीत दोसांझ) एक मशहूर डिटेक्टिव के रूप में स्थापित हैं। वह हर केस को अपने अंदाज में हल करता है और फिर इंस्टाग्राम रील्स बनाने में जुट जाता है। पुलिस तक हर केस में उसकी मदद की मोहताज है। सब कुछ सही चल रहा होता है, तभी शहर के एक प्रतिष्ठित बिजनेसमैन पंकज भट्टी (बमन ईरानी) का कत्ल हो जाता है। केस की कमान ACP नताशा (डायना पेंटी) को मिलती है, जो इस केस को सुलझाने के लिए शेरदिल की मदद लेती है।

कहानी में नहीं है गहराई, सस्पेंस रहित है मिस्ट्री

फिल्म का प्लॉट सुनने में दिलचस्प लगता है लेकिन पटकथा और स्क्रीनप्ले में इतनी खामियां हैं कि यह दिलचस्पी कुछ ही मिनटों में खत्म हो जाती है। दर्शकों को शुरू से ही अंदाजा हो जाता है कि कातिल कौन हो सकता है, जिससे सस्पेंस और मिस्ट्री की पूरी परिकल्पना बेमानी हो जाती है। फिल्म के लेखक-निर्देशक अली अब्बास जफर और रवि श्रीवास्तव ने फिल्म को तेज रफ्तार और स्टाइलिश बनाने की कोशिश तो की है, लेकिन इस चक्कर में मर्डर मिस्ट्री जैसी जॉनर की बुनियादी जरूरतें ही गायब हो गईं। 

फिल्म में ना तो किरदारों के इमोशनल एंगल पर काम किया गया है, ना ही कोई ऐसा ट्विस्ट डाला गया है जो दर्शकों को चौंकाता हो। फिल्म के संवाद बेहद सामान्य और प्रभावहीन हैं। एक डायलॉग आता है – अच्छा डिटेक्टिव वो नहीं जो सही चाभी ढूंढे, अच्छा डिटेक्टिव वो है जो सही ताला ढूंढ निकाले। यह सुनने में स्मार्ट लग सकता है लेकिन फिल्म की पूरी कहानी इसी उलझन में खो जाती है। निर्देशक ने अपने अनुभव की तुलना में स्टाइल और बैकग्राउंड म्यूजिक पर जरूरत से ज्यादा ध्यान दिया, जिसका असर कहानी पर साफ नजर आता है।

कमजोर परफॉर्मेंस और अधूरे किरदार

दिलजीत दोसांझ इस बार भी अपने पुराने चिर-परिचित अंदाज में नजर आए। उनके अभिनय में कोई नयापन नहीं दिखा, जिससे उनके डिटेक्टिव किरदार में गहराई नहीं आ पाई। डायना पेंटी का किरदार नताशा भी बेहद अधूरा और भ्रमित करने वाला था। उनके पुलिस अधिकारी होने के बावजूद, न तो उनकी पोजिशन स्पष्ट है, न ही उनके शेरदिल के साथ संबंध का कोई स्पष्ट चित्रण है।

बमन ईरानी और रत्ना पाठक शाह जैसी अनुभवी कलाकारों को भी सीमित स्क्रीन टाइम और कमजोर स्क्रिप्ट का शिकार होना पड़ा। वहीं, सुमित व्यास और बनिता संधू जैसे युवा कलाकार भी फिल्म को संभाल नहीं पाए। चंकी पांडे का किरदार इतना अस्पष्ट है कि उनकी भूमिका को समझने के लिए दोबारा फिल्म देखनी पड़े।

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