राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को धर्म और उसकी सामाजिक प्रासंगिकता को लेकर एक अहम बयान दिया। उन्होंने कहा कि "धर्म परम सत्य है" और समाज को शांतिपूर्ण बनाए रखने में इसकी बड़ी भूमिका है।
नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि धर्म केवल एक विश्वास प्रणाली नहीं, बल्कि परम सत्य है। उन्होंने कहा कि धर्म का अनुसरण करने और उसके प्रति प्रतिबद्ध रहने से न केवल व्यक्तिगत जीवन में साहस और संकल्प आता है, बल्कि समाज में शांति और समरसता भी स्थापित होती है।
यह टिप्पणी उन्होंने दिल्ली में धर्म जागरण न्यास के कार्यालय के उद्घाटन समारोह में की। इस दौरान उन्होंने धर्म की व्यापकता, इसकी सार्वभौमिकता और समाज में इसकी भूमिका को लेकर कई अहम बातें कहीं।
धर्म संकट में साहस देता है - मोहन भागवत
मोहन भागवत ने कहा कि जब व्यक्ति धर्म के मार्ग पर सच्चाई और ईमानदारी से चलता है, तो उसे हर कठिन परिस्थिति से उबरने की ताकत मिलती है। उन्होंने कहा:
'यदि धर्म के प्रति आपकी प्रतिबद्धता मजबूत है, तो आप कभी हिम्मत नहीं हारेंगे। इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं, जब आम लोगों ने भी धर्म के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।'
भागवत ने छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित फिल्म ‘छावा’ का उल्लेख करते हुए बताया कि कैसे इस देश में न केवल राजाओं बल्कि आम जनों ने भी धर्म के लिए बलिदान दिया है।
हम विविध हैं लेकिन भिन्न नहीं
समाज में एकता और समरसता की आवश्यकता पर बल देते हुए भागवत ने कहा कि:
'हम अलग-अलग दिख सकते हैं, हमारी वेशभूषा, भाषा, बोली और परंपराएं अलग हो सकती हैं, लेकिन हम सभी एक ही हैं। धर्म हमें अपनापन सिखाता है और विविधताओं को स्वीकार करने की शक्ति देता है।'
उन्होंने कहा कि भारत जैसे बहुसांस्कृतिक देश में धर्म ही वह शक्ति है जो विविधताओं को जोड़कर रखती है। यह केवल पूजा-पद्धति नहीं बल्कि एक जीवनशैली है जो समाज में सम्मान, करुणा और सहिष्णुता को बढ़ावा देती है।
विश्व को हिंदू धर्म की तरह समावेशी दृष्टिकोण की जरूरत
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि आज की दुनिया को एक ऐसे धर्म की आवश्यकता है जो हिंदू धर्म की तरह सभी मतों और पंथों को समाहित करने वाला हो। हिंदू धर्म ने सदियों से सभी को स्वीकार किया है। यह किसी को नकारता नहीं, बल्कि सबको अपनाता है। वैश्विक स्तर पर आज सबसे बड़ी आवश्यकता ऐसी ही सोच और जीवनदृष्टि की है।
उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया में बढ़ रही कट्टरता, हिंसा और नफरत को केवल समावेशी धर्म-दृष्टिकोण से ही समाप्त किया जा सकता है। मोहन भागवत ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल संस्थाएं या सरकारें नहीं, बल्कि समाज की भी जिम्मेदारी है कि वह सुनिश्चित करे कि लोग धर्म के मार्ग से विचलित न हों। हर व्यक्ति को यह समझना होगा कि धर्म का पालन केवल व्यक्तिगत मोक्ष के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक हित और राष्ट्रीय एकता के लिए भी आवश्यक है।