दिल्ली हाई कोर्ट ने 1984 सिख-विरोधी दंगों से जुड़े पांच मामलों की सुनवाई में जांच एजेंसियों और ट्रायल कोर्ट की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। तीन मामलों के अहम रिकॉर्ड गायब पाए गए, जिससे सुनवाई में बाधा आ रही है। कोर्ट ने इन्हें रिकंस्ट्रक्ट करने के आदेश दिए और अगली सुनवाई 1 सितंबर तय की है।
नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने नवंबर 1984 में दिल्ली कैंट के राजनगर इलाके में हुई हिंसा से जुड़े पांच मामलों पर स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई की। अदालत ने पाया कि तीन मामलों के अहम दस्तावेज और गवाहों के बयान गायब हैं, जिससे न्याय प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। कोर्ट ने जांच एजेंसियों और ट्रायल कोर्ट की लापरवाही पर नाराजगी जताई और निर्देश दिया कि सीबीआई, सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री और विभिन्न आयोगों से रिकॉर्ड जुटाकर उन्हें रिकंस्ट्रक्ट किया जाए। इस बीच, एक मामले की अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और अगली सुनवाई 1 सितंबर को होगी।
1984 दंगा मामलों में हाई कोर्ट की सख्ती
दिल्ली हाई कोर्ट ने 1984 सिख-विरोधी दंगों से जुड़े पांच मामलों की सुनवाई के दौरान जांच एजेंसियों और ट्रायल कोर्ट की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। अदालत ने पाया कि इनमें से तीन मामलों के अहम रिकॉर्ड गायब हैं, जिससे सुनवाई प्रभावित हो रही है। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को आदेश दिया है कि इन दस्तावेजों को जल्द से जल्द रिकंस्ट्रक्ट करने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएं।
यह सुनवाई हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए की थी। मामले नवंबर 1984 में दिल्ली कैंट के राजनगर इलाके में हुई हिंसा से जुड़े हैं, जिसमें कई लोगों की जान गई थी। अदालत ने रिकॉर्ड गायब होने को गंभीर लापरवाही करार दिया और कहा कि इससे न्याय में देरी हो रही है।
आरोपियों को पहले ही बरी किया गया
सुनवाई में यह खुलासा हुआ कि तीन मामलों में ट्रायल कोर्ट ने 1986 में सभी आरोपियों को बरी कर दिया था। संबंधित फाइलों में प्रत्यक्षदर्शियों के बयान, जांच के दस्तावेज और धारा 161 सीआरपीसी के तहत दर्ज बयान मौजूद ही नहीं हैं। हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसे अधूरे रिकॉर्ड के साथ आगे सुनवाई संभव नहीं है।
इसके अलावा, दो मामलों में कई महत्वपूर्ण गवाहों को पेश ही नहीं किया गया। कारण यह बताया गया कि दंगों के बाद उनके पते नष्ट हो गए थे या वे इलाका छोड़ चुके थे। अदालत ने इस पर नाराजगी जताई और कहा कि गवाहों को बुलाने के लिए समन भेजने के पर्याप्त प्रयास भी नहीं किए गए।
जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर सवाल
अदालत ने यह भी पाया कि कई मामलों का एक साथ कंपोजिट चालान दाखिल किया गया, जो अधूरी जांच का संकेत देता है। कोर्ट ने कहा कि पीड़ितों और समाज के निष्पक्ष जांच और ट्रायल के अधिकार से किसी भी हालत में समझौता नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने संभावना जताई कि तीन मामलों के गायब रिकॉर्ड सीबीआई या सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में मिल सकते हैं। साथ ही, इन्हें विभिन्न आयोगों और समितियों के अभिलेखागार से भी खोजा जा सकता है। अदालत ने सभी संबंधित एजेंसियों को इन दस्तावेजों की तलाश में समन्वित प्रयास करने का निर्देश दिया।