तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं। माना जा रहा है कि 14वें दलाई लामा अपने 90वें जन्मदिन के मौके पर उत्तराधिकारी के नाम की घोषणा कर सकते हैं।
Dalai Lama Successor: धर्मशाला में इस साल जब 14वें दलाई लामा 90 वर्ष के हो जाएंगे, तो उनकी विरासत को लेकर दुनिया भर की निगाहें एक बार फिर तिब्बती बौद्ध धर्म की अद्भुत परंपराओं पर टिक गई हैं। दलाई लामा न केवल तिब्बती लोगों के लिए, बल्कि वैश्विक स्तर पर करुणा और शांति के प्रतीक माने जाते हैं। उनके उत्तराधिकारी की खोज किसी लोकतांत्रिक चुनाव से नहीं, बल्कि रहस्यमयी और सदियों पुरानी मान्यताओं से संचालित होती है। इस परंपरा में पुनर्जन्म की मान्यता के आधार पर नए दलाई लामा की तलाश की जाती है — और यही प्रक्रिया इसे और दिलचस्प बनाती है।
पुनर्जन्म पर आधारित परंपरा
तिब्बती बौद्ध परंपरा के मुताबिक, दलाई लामा को अवलोकितेश्वर (करुणा के बोधिसत्व) का अवतार माना जाता है। माना जाता है कि दलाई लामा अपनी मृत्यु के बाद पुनर्जन्म लेकर फिर से इस संसार में आते हैं ताकि मानवता और तिब्बती समाज का मार्गदर्शन कर सकें। इसीलिए, हर दलाई लामा के निधन के बाद उनके अगले जन्म को ढूँढने की यह परंपरा चली आ रही है।
उत्तराधिकारी की खोज का अनोखा सफर
नए दलाई लामा को खोजने की प्रक्रिया बेहद रहस्यमयी और कई चरणों में बंटी होती है। जब वर्तमान दलाई लामा का निधन होता है, उसके बाद आमतौर पर नौ महीने तक इंतजार किया जाता है ताकि उनके पुनर्जन्म की संभावना स्पष्ट हो सके। इसके बाद तिब्बती बौद्ध मठों के वरिष्ठ लामाओं की एक टीम गठित की जाती है, जो देश-विदेश में ऐसे किसी बच्चे की तलाश करती है जिसमें पुराने दलाई लामा के पुनर्जन्म के लक्षण हों।
1. वस्तुओं की पहचान
एक खास पद्धति के तहत बच्चे को दिवंगत दलाई लामा की कुछ खास चीजें दिखाई जाती हैं। माना जाता है कि अगर वह बच्चा उन वस्तुओं को पहचान ले और यह कहे कि “यह मेरी है”, तो उसे संभावित उत्तराधिकारी मान लिया जाता है। 14वें दलाई लामा ने भी मात्र दो वर्ष की उम्र में ऐसी ही पहचान प्रक्रिया पास की थी।
2. सोने के कलश की परंपरा
एक और दिलचस्प रिवाज यह है कि संभावित उम्मीदवारों के नामों को छोटे-छोटे कागजों पर लिखकर सोने के बने विशेष कलश में डाला जाता है। फिर आध्यात्मिक अनुष्ठान के बाद उसमें से एक नाम निकाला जाता है, जिसे दैवीय संकेत माना जाता है। हालांकि, मौजूदा समय में यह कलश चीन के कब्जे में है, जिससे इस परंपरा पर संकट भी मंडरा रहा है।
3. प्रकृति के संकेत
इतिहास में ऐसे उदाहरण भी दर्ज हैं, जब इंद्रधनुष या अन्य प्राकृतिक घटनाओं को दलाई लामा की खोज में संकेत माना गया। 1758 में आठवें दलाई लामा की मां के ऊपर इंद्रधनुष मंडराया था, जिसे उनके पुनर्जन्म का दिव्य संकेत माना गया।
चीन का दबाव और भविष्य की चुनौतियां
14वें दलाई लामा 1959 में तिब्बत छोड़कर भारत आ गए थे। उस समय से वे धर्मशाला में निर्वासन में रह रहे हैं। चीन लगातार तिब्बती मामलों में हस्तक्षेप करता आया है और दलाई लामा की उत्तराधिकारी प्रक्रिया पर भी उसकी नज़र है। चीन चाहता है कि नया दलाई लामा उसके मुताबिक चुना जाए, ताकि तिब्बत पर उसका राजनीतिक नियंत्रण मजबूत हो। लेकिन तिब्बती समुदाय और दुनिया भर में फैले उनके अनुयायी यह मानते हैं कि उत्तराधिकारी का फैसला केवल धार्मिक और पारंपरिक तरीके से ही होना चाहिए, किसी राजनीतिक दबाव में नहीं।
दलाई लामा की स्पष्ट बात
14वें दलाई लामा ने अपनी किताब “वॉयस फॉर वॉयसलेस” में साफ किया था कि भविष्य का दलाई लामा किसी भी देश में जन्म ले सकता है — और वह तिब्बत के बाहर भी हो सकता है। उनका कहना था कि पुनर्जन्म का उद्देश्य लोगों की सेवा और उनके हितों की रक्षा करना है, इसलिए यह किसी एक भौगोलिक सीमा में बंधा नहीं है।
6 जुलाई को दलाई लामा के 90वें जन्मदिवस पर इस विषय में कोई बड़ी घोषणा हो सकती है, ऐसा कयास लगाया जा रहा है। हालांकि आधिकारिक पुष्टि अभी नहीं है, फिर भी यह सवाल पूरी दुनिया में चर्चा का केंद्र बना हुआ है कि क्या 14वें दलाई लामा अपनी अगली पीढ़ी के बारे में संकेत देंगे या नहीं।