अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने लगातार दूसरी बार 0.25% की दर से ब्याज दरों में कटौती की है, जिससे पॉलिसी रेट रेंज घटकर 3.75% से 4% हो गई है। महंगाई और बढ़ती बेरोजगारी को देखते हुए यह कदम उठाया गया है। अब दिसंबर में एक और रेट कट की संभावना जताई जा रही है। इस फैसले का असर भारतीय रिजर्व बैंक की आगामी पॉलिसी पर भी पड़ सकता है।
Fed Rate Cut: अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने बुधवार, 29 अक्टूबर 2025 को लगातार दूसरी बार ब्याज दरों में 0.25% की कटौती की, जिससे लोन सस्ते हो गए हैं। चेयरमैन जेरोम पॉवेल की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह फैसला महंगाई घटने और आर्थिक सुस्ती के संकेतों के बीच लिया गया। अब फेड की पॉलिसी दर 3.75%–4% के दायरे में है। बाजार को उम्मीद है कि दिसंबर में एक और कटौती हो सकती है। इस कदम से अमेरिकी शेयर बाजार में तेजी आई है, जबकि भारत में भी आरबीआई पर दरों में कटौती का दबाव बढ़ गया है।
लगातार दूसरी बार राहत, पांचवीं बार रेट कट
फेडरल रिजर्व ने सितंबर 2024 से अब तक कुल पांच बार रेट कट किया है। इन सभी कटौती को जोड़ें तो कुल 1.50 फीसदी की कमी हो चुकी है। अब फेड की नीति दर 3.75-4 फीसदी के दायरे में आ गई है।
फेड के इस कदम की उम्मीद पहले से ही की जा रही थी। दरअसल, जब अमेरिकी महंगाई के ताजा आंकड़े आए, तो ये उम्मीद से थोड़ा कम निकले। महंगाई 3 फीसदी पर आकर ठहर गई, जबकि बाजार को 3.1 फीसदी की उम्मीद थी। इसी के बाद से बाजार में अटकलें तेज थीं कि फेड 0.25 फीसदी की कटौती जरूर करेगा।
दिसंबर में एक और कटौती के संकेत
फेड की हालिया बैठक से संकेत मिले हैं कि दिसंबर में होने वाली आखिरी पॉलिसी मीटिंग में एक और 0.25 फीसदी की कटौती हो सकती है। इसके अलावा, अगले दो सालों में दो से तीन बार और रेट कट के संकेत दिए गए हैं। हालांकि, फेड ने यह भी साफ किया कि आगे की कटौती का फैसला महंगाई के स्तर पर निर्भर करेगा।
फिलहाल अमेरिकी महंगाई दर फेड के लक्ष्य 2 फीसदी से अब भी ऊपर बनी हुई है। इसलिए अतिरिक्त कटौती तभी संभव होगी जब यह दर 2 से 2.5 फीसदी के बीच आ जाएगी।
अमेरिका में शटडाउन के बीच बड़ा फैसला
फेड का यह निर्णय उस समय आया है जब अमेरिका अक्टूबर महीने से आंशिक सरकारी शटडाउन झेल रहा है। इसका असर अर्थव्यवस्था पर मामूली रूप से जरूर पड़ा है, लेकिन फेड ने इसे नजरअंदाज करते हुए दरों में कमी की। फेडरल ओपन मार्केट कमेटी ने 10-2 के बहुमत से इस प्रस्ताव को मंजूरी दी। गवर्नर स्टीफन मिरान ने असहमति जताई और कहा कि दरों में आधा प्रतिशत की कटौती की जानी चाहिए थी। वहीं सेंट लुइस फेड के अध्यक्ष जेफरी श्मिड ने बिल्कुल विपरीत राय दी और कहा कि इस समय किसी भी तरह की कटौती नहीं होनी चाहिए थी।
फेड ने यह भी कहा कि उपलब्ध संकेतकों के अनुसार आर्थिक गतिविधि मध्यम गति से बढ़ रही है, जबकि महंगाई इस साल की शुरुआत से थोड़ी ऊंची बनी हुई है।
क्यों करनी पड़ी ब्याज दरों में कटौती

अमेरिका में कोर महंगाई पिछले तीन महीनों से 3 फीसदी के आसपास स्थिर बनी हुई है। यह दर फेड के लक्ष्य से करीब 1 फीसदी अधिक है। इसके बावजूद फेड ने कटौती का फैसला इसलिए किया क्योंकि रोजगार के आंकड़ों में गिरावट आई है। बेरोजगारी दर अगस्त में 4.3 फीसदी दर्ज की गई थी, जो पिछले एक साल में सबसे अधिक है।
इसके अलावा, 1 अक्टूबर से चल रहे शटडाउन की वजह से कई सरकारी आर्थिक आंकड़े जारी नहीं हो पाए हैं। ऐसे में फेड को अधूरी जानकारी के आधार पर फैसला लेना पड़ा।
भारत के बाजारों पर फेड के फैसले का असर
फेड की रेट कट के बाद भारत के बाजारों में भी तेजी के संकेत हैं। बुधवार को ही सेंसेक्स 369 अंकों की बढ़त के साथ 84,997 अंकों पर बंद हुआ था। वहीं निफ्टी ने पहली बार 26,000 अंकों के पार क्लोजिंग दी।
गुरुवार के कारोबार में भी बाजार में तेजी देखने को मिल सकती है। फेड के फैसले के चलते निवेशकों का रुख इक्विटी बाजार की ओर बढ़ेगा। इसके साथ ही वायदा बाजार में सोने और चांदी की कीमतों में भी बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। सोना 1,053 रुपए बढ़कर 1,19,646 रुपए प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गया, जबकि चांदी की कीमत करीब 1,800 रुपए बढ़कर 1,46,140 रुपए प्रति किलो हो गई।
क्या भारत में भी सस्ते होंगे लोन
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या भारतीय रिजर्व बैंक भी ब्याज दरों में कटौती करेगा। फेड के फैसले के बाद आरबीआई पर दबाव बढ़ गया है। भारत में महंगाई के आंकड़े नियंत्रण में हैं और अक्टूबर के आंकड़े भी कम रहने की उम्मीद है। आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की अगली बैठक 3 से 5 दिसंबर के बीच होगी।
बाजार में अनुमान है कि आरबीआई 0.25 फीसदी की कटौती कर सकता है। कुछ विशेषज्ञ 0.50 फीसदी की कटौती की संभावना भी जता रहे हैं।
अगर ऐसा होता है तो आरबीआई की नीति दरें 5 फीसदी के आसपास पहुंच जाएंगी। इस स्थिति में भारत भी फेड की नीति के बराबर खड़ा दिखेगा।













