महाराष्ट्र के बरेलगांव में स्थित घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग को भगवान शिव का बारहवां और अंतिम ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह स्थान न सिर्फ धार्मिक, बल्कि भावनात्मक रूप से भी लाखों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। कहा जाता है कि यहां पूजा करने से नि:संतान दंपतियों को संतान का सुख प्राप्त होता है।
हर साल देशभर से हजारों श्रद्धालु संतान प्राप्ति की कामना लेकर इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। मंदिर परिसर में श्रद्धा, भक्ति और उम्मीद का ऐसा संगम देखने को मिलता है, जो शायद ही किसी अन्य स्थान पर हो।
स्वयंभू शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं भोलेनाथ
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग को शिव का स्वयंभू रूप माना गया है। इसका अर्थ है कि यह शिवलिंग किसी मानव द्वारा नहीं बनाया गया, बल्कि स्वयं धरती से प्रकट हुआ है। यही कारण है कि इस ज्योतिर्लिंग का धार्मिक महत्त्व और भी अधिक हो जाता है।
यह मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के पास दौलताबाद क्षेत्र में स्थित है और अजंता-एलोरा की गुफाओं से केवल कुछ किलोमीटर की दूरी पर है।
भक्त घुश्मा की भक्ति से जुड़ी है इस मंदिर की स्थापना
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा भक्त घुश्मा और उसकी बहन सुदेहा की है। कथा के अनुसार, देवगिरी पर्वत के पास सुधर्मा नाम का एक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ रहता था। संतान नहीं होने के कारण सुदेहा ने अपने पति से अपनी बहन घुश्मा से विवाह करवा दिया।
घुश्मा शिव की अनन्य भक्त थी और वह रोज 101 पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा करती और उन्हें पास के तालाब में विसर्जित करती थी। समय बीता और घुश्मा को एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। इससे सुदेहा को ईर्ष्या होने लगी और उसने उस बालक को उसी तालाब में फेंक दिया।
मंदिर परिसर में आज भी है वही पवित्र तालाब
जहां घुश्मा पार्थिव शिवलिंगों का विसर्जन किया करती थीं, वह तालाब आज भी मंदिर परिसर में मौजूद है। इस तालाब को देखकर भक्तों की आंखों में श्रद्धा और उम्मीद दोनों चमकती हैं। मान्यता है कि इस सरोवर के दर्शन और जल से स्नान करने पर नि:संतान दंपतियों की गोद भर जाती है।
घृष्णेश्वर मंदिर की वास्तुकला और महत्व
इस मंदिर का निर्माण स्थापत्य कला के लिहाज से भी अनूठा है। पत्थरों से बनी इसकी दीवारों पर शिव परिवार की मूर्तियां और पुराणों से जुड़ी कहानियों की झलक मिलती है। मंदिर का गर्भगृह बहुत ही शांत, दिव्य और ऊर्जा से भरपूर माना जाता है।
श्रद्धालु मंदिर में प्रवेश करते ही एक अलौकिक अनुभूति महसूस करते हैं। मंदिर का शिखर, मंडप और स्तंभ भी बेहद सुंदर ढंग से नक्काशीदार हैं।
श्रावण मास और महाशिवरात्रि पर लगती है श्रद्धालुओं की भीड़
सावन के महीने में और विशेषकर महाशिवरात्रि के दिन इस मंदिर में देशभर से श्रद्धालु उमड़ते हैं। घंटों लाइन में लगकर दर्शन करने के बाद भक्त जलाभिषेक करते हैं और विशेष पूजन करवाते हैं।
मंदिर में कई दंपति अपने नवजात बच्चों को लेकर भी पहुंचते हैं, जो पहले यहां मन्नत मांगने आए थे। यह दृश्य देखने लायक होता है जब माता-पिता भोलेनाथ का धन्यवाद करने अपने शिशु को गोद में लिए मंदिर परिसर में दर्शन करते हैं।
लोक आस्था का केंद्र बना हुआ है यह मंदिर
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग आज भी लोक आस्था का एक बड़ा केंद्र बना हुआ है। यहां न केवल भारत के कोने-कोने से, बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं। मंदिर की देखरेख स्थानीय ट्रस्ट द्वारा की जाती है और श्रद्धालुओं की सुविधाओं का पूरा ख्याल रखा जाता है।
घुश्मा की कथा आज भी सुनाई जाती है श्रद्धालुओं को
मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं को आज भी पुजारी और स्थानीय गाइड भक्त घुश्मा की पूरी कथा सुनाते हैं। यह कथा न केवल आस्था का प्रतीक है बल्कि यह भी सिखाती है कि सच्ची भक्ति, सहनशीलता और क्षमा में कितनी शक्ति होती है।