संसद की लॉबी में मराठी सांसदों ने भाजपा सांसद निशिकांत दुबे को उनके हिंदी भाषियों पर दिए बयान को लेकर घेर लिया। कांग्रेस सांसद वर्षा गायकवाड़ ने आक्रामक तेवर में जवाब मांगा, जिस पर दुबे ने 'जय महाराष्ट्र' कहकर स्थिति को संभालने की कोशिश की। विवाद अब सियासी रंग ले चुका है।
Maharashtra: महाराष्ट्र में चल रहा हिंदी बनाम मराठी विवाद अब दिल्ली की संसद तक पहुंच गया है। बुधवार को संसद भवन की लॉबी में एक अप्रत्याशित घटनाक्रम सामने आया, जहां महाराष्ट्र के कुछ मराठी सांसदों ने भाजपा सांसद निशिकांत दुबे को उनके एक हालिया बयान को लेकर घेर लिया। यह टकराव केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि भाषाई पहचान और क्षेत्रीय अस्मिता का मुद्दा बन गया है।
क्या है पूरा विवाद?
हिंदी भाषी इलाकों से आने वाले सांसद और महाराष्ट्र के क्षेत्रीय नेताओं के बीच लंबे समय से वैचारिक मतभेद रहे हैं। बीते सप्ताह मुंबई में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के कार्यकर्ताओं द्वारा हिंदी भाषी नागरिकों के साथ की गई बदसलूकी की घटना सामने आई थी। उसी मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने एक ऐसा बयान दिया, जिसने मराठी नेताओं की भावनाओं को भड़का दिया।
उन्होंने कहा था: 'अगर तुम्हें हिंदी बोलने वालों से इतनी चिढ़ है, तो उर्दू, तमिल, तेलुगु बोलने वालों से भी पंगा लो। अगर हिम्मत है, तो उत्तर भारत आओ – हम पटक पटक के जवाब देंगे।' उनका यह बयान सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ, और मराठी अस्मिता से जुड़ी भावनाओं को चोट पहुंची।
संसद भवन में क्या हुआ?
बुधवार को दोपहर करीब 12:45 बजे संसद की लॉबी में मराठी सांसदों का एक समूह – जिसमें प्रमुख रूप से कांग्रेस सांसद वर्षा गायकवाड़, प्रतिभा धानोरकर और शोभा बच्छाव शामिल थीं – निशिकांत दुबे को ढूंढ़ रहा था। उसी दौरान दुबे वहां पहुंचे और दोनों पक्षों के बीच तीखा संवाद शुरू हो गया।
वर्षा गायकवाड़ ने सीधे सवाल किया – 'आपने किस हक से महाराष्ट्र के खिलाफ ऐसे शब्द बोले? बताइए किसे पटक पटक कर मारेंगे?' प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, कांग्रेस की महिला सांसदों का लहजा काफी आक्रामक था। दुबे, जो अक्सर मीडिया में मुखर रहते हैं, इस बार असहज दिखे और जवाब में केवल इतना बोले – 'नहीं नहीं... ऐसा कुछ नहीं... जय महाराष्ट्र।' दुबे का यह कथन सुनकर वहां मौजूद अन्य सांसद भी चौकन्ने हो गए। कुछ ही मिनटों में यह खबर पूरे संसद परिसर में फैल गई।
राजनैतिक तकरार बनाम भाषाई गरिमा
इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल उठाया है कि क्षेत्रीय भाषाओं और पहचान को लेकर देश की संसद में किस तरह की राजनीति हो रही है। जहां एक ओर मराठी नेता इसे महाराष्ट्र की अस्मिता पर हमला मानते हैं, वहीं भाजपा इसे भावनात्मक उकसावे और राजनीतिक ड्रामेबाज़ी बता रही है। भाजपा के कुछ नेताओं ने इस पूरे घटनाक्रम को 'पूर्व नियोजित हमला' करार दिया है और कहा है कि दुबे को जानबूझकर घेरा गया ताकि मराठी अस्मिता के नाम पर कांग्रेस सहानुभूति बटोर सके।
बीएमसी चुनाव और भाषाई राजनीति
इस विवाद के केंद्र में बीएमसी (बृहन्मुंबई महानगरपालिका) चुनाव भी हैं। मुंबई में क्षेत्रीय पार्टियों जैसे शिवसेना और मनसे की पकड़ मजबूत रही है, लेकिन भाजपा की बढ़ती सक्रियता ने पुराने दलों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। ऐसे में भाषा और क्षेत्रीय पहचान जैसे मुद्दे जनता की भावनाओं को भड़काने का हथियार बन गए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि "जय महाराष्ट्र बनाम हिंदी अस्मिता" की यह लड़ाई अब चुनावी रणनीतियों का हिस्सा बन चुकी है। भाषा के आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण एक खतरनाक दिशा की ओर इशारा करता है।
संवैधानिक दृष्टिकोण से क्या कहता है ये मामला?
भारतीय संविधान में हर व्यक्ति को अपनी मातृभाषा बोलने, उसे अपनाने और उसका प्रचार-प्रसार करने का अधिकार है। लेकिन जब भाषा की अस्मिता राजनीतिक हथियार बन जाए, तो यह राष्ट्रीय एकता के लिए चिंता का विषय बन जाता है। संसद जैसे संस्थान में ऐसी घटनाएं लोकतांत्रिक गरिमा को चोट पहुंचाती हैं।