IIT जोधपुर ने अंतरिक्ष से रॉकेट को सुरक्षित ढंग से वापस लाने की नई तकनीक विकसित करने का दावा किया है। हाइपरसोनिक स्क्रैमजेट इंजन और ऑक्सीजन-लेने वाली प्रणाली से रॉकेट हल्का और तेजी से उड़ान भर सकेगा।
जोधपुर: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) जोधपुर ने अंतरिक्ष विज्ञान में एक महत्वपूर्ण सफलता का दावा किया है। IIT जोधपुर की टीम ने ऐसी तकनीक विकसित की है जिससे अंतरिक्ष से रॉकेट को सीधे लॉन्चिंग पेड पर सुरक्षित वापस लाया जा सकेगा। यह तकनीक हाइपरसोनिक प्रोपल्शन और स्क्रैमजेट इंजन पर आधारित है।
प्रोफेसर डॉ. अरुण कुमार के नेतृत्व में इस शोध परियोजना को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और वैमानिकी अनुसंधान एवं विकास बोर्ड (ARDB) के सहयोग से अंजाम दिया गया है। IIT जोधपुर का दावा है कि यह तकनीक एलन मस्क की SpaceX से भी बेहतर है, जिसने पिछले साल भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और उनके सहयात्री बुल विलमोर को सुरक्षित लौटाया था।
नई तकनीक कैसे काम करेगी
पारंपरिक रॉकेट भारी ऑक्सीजन टैंक के साथ उड़ान भरते हैं, जबकि IIT जोधपुर की तकनीक में स्क्रैमजेट इंजन का उपयोग किया गया है। इस इंजन के जरिए रॉकेट हवा से सीधे ऑक्सीजन ग्रहण करेगा, जिससे रॉकेट हल्का होगा और अधिक तेज़ी से उड़ान भर सकेगा।
डॉ. अरुण कुमार के अनुसार, शॉक वेव्स और हाई-स्पीड फ्लो लैब में किए गए प्रयोगों ने इस तकनीक को स्थायित्व और सुरक्षा प्रदान की है। इसके साथ ही रॉकेट लॉन्चिंग के दौरान धमाकों और झटकों को कम करने के लिए विशेष सुरक्षात्मक संरचनाएं विकसित की गई हैं।
अंतरिक्ष शोध में भारत की क्षमता मजबूत
इस नई तकनीक की मदद से भारत अब अंतरिक्ष में रॉकेट लॉन्च और रिसर्च के क्षेत्र में और अधिक सक्षम बन रहा है। IIT जोधपुर की टीम का दावा है कि यह शोध अंतरिक्ष अभियानों में लागत और जोखिम दोनों को कम करेगा।
सुनिता विलियम्स और बुल विलमोर की सफल वापसी ने यह दिखा दिया कि सुरक्षित रॉकेट रिटर्न तकनीक कितना महत्वपूर्ण है। IIT जोधपुर के शोध से यह उम्मीद बढ़ गई है कि भविष्य में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम और निजी अंतरिक्ष कंपनियां सुरक्षित और तेज़ अंतरिक्ष उड़ानें संचालित कर सकेंगी।
समुद्र के पानी को साफ और ठंडा करने की तकनीक
डॉ. अरुण कुमार की टीम ने सौर ऊर्जा का उपयोग करके समुद्र के पानी को साफ और ठंडा करने की नई तकनीक भी विकसित की है। इसके लिए विशेष स्ट्रक्चर तैयार किया गया है, जिसका उपयोग कम पानी और बिजली वाले क्षेत्रों में किया जा सकेगा। इससे ग्रामीण और सीमांत इलाकों में पानी की आपूर्ति और तापमान नियंत्रण में मदद मिलेगी।