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इजरायल-ईरान टकराव से शेयर बाजार पर दबाव, निवेशकों के लिए सतर्कता जरूरी

इजरायल-ईरान टकराव से शेयर बाजार पर दबाव, निवेशकों के लिए सतर्कता जरूरी

मार्केट एक्सपर्ट्स के अनुसार, पिछले सप्ताह घरेलू शेयर बाजार ने पश्चिम एशिया में जारी भू-राजनीतिक तनाव और कच्चे तेल की कीमतों में आई तेज़ उछाल को दरकिनार करते हुए मजबूती के साथ सप्ताह का समापन किया। 

नई दिल्ली: पश्चिम एशिया में चल रहे भीषण संघर्ष ने वैश्विक स्तर पर अस्थिरता का माहौल बना दिया है। इजरायल और ईरान के बीच छिड़ा यह टकराव अब केवल सीमित संघर्ष नहीं रह गया, बल्कि इसका असर अंतरराष्ट्रीय आर्थिक और कच्चे तेल के बाजारों पर भी दिखने लगा है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या इस टकराव की आंच भारत जैसे उभरते बाज़ार की अर्थव्यवस्था और शेयर बाजार पर भी पड़ेगी?

विशेषज्ञों की मानें तो अभी तक घरेलू शेयर बाजार ने भले ही इस टकराव की तीव्रता को नजरअंदाज किया हो, लेकिन अगर यह संघर्ष और गहराता है, तो इसका असर निश्चित तौर पर भारतीय शेयर बाजार की चाल पर दिखेगा।

कच्चे तेल में उबाल: भारतीय अर्थव्यवस्था पर दबाव

भारत कच्चे तेल का एक बड़ा आयातक है। पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ने से ब्रेंट क्रूड की कीमतें 90 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच चुकी हैं। अगर यह कीमत 100 डॉलर के पार जाती है, तो भारत के चालू खाता घाटे (Current Account Deficit) पर सीधा असर पड़ेगा। इससे रुपये पर दबाव बनेगा और आयात महंगा हो जाएगा। कंपनियों के मुनाफे पर असर पड़ेगा और इससे शेयर बाजार की रफ्तार धीमी पड़ सकती है।

विदेशी निवेशक होंगे सतर्क

मई 2025 में जहां एफपीआई (विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों) ने भारतीय बाजार में जमकर निवेश किया, वहीं जून में यह रुख थोड़ा सतर्क होता नजर आ रहा है। इजरायल-ईरान संघर्ष के चलते वैश्विक अस्थिरता बढ़ने पर निवेशक अमेरिकी डॉलर जैसी सेफ हेवन असेट्स की ओर रुख कर सकते हैं। इससे भारतीय बाजार से धन की निकासी हो सकती है।

वॉटरफील्ड एडवाइजर्स के वरिष्ठ निदेशक विपुल भोवार कहते हैं कि "मई में एफपीआई निवेश पिछले आठ महीनों में सबसे अधिक रहा, लेकिन जून में भू-राजनीतिक तनावों के कारण निवेशकों का रुख सतर्क रहने की संभावना है।"

बाजार में तेज उतार-चढ़ाव की आशंका

रेलिगेयर ब्रोकिंग लिमिटेड के वरिष्ठ उपाध्यक्ष (शोध) अजित मिश्रा के अनुसार, "इस सप्ताह वैश्विक संकेतक बाजार की दिशा तय करेंगे। इजरायल-ईरान संघर्ष, अमेरिकी आर्थिक आंकड़े और फेडरल रिजर्व की टिप्पणियां भारतीय शेयर बाजार में अस्थिरता बढ़ा सकती हैं।"

मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के रिसर्च प्रमुख सिद्धार्थ खेमका मानते हैं कि "बाजार में अगले कुछ सप्ताह बेहद अस्थिर रह सकते हैं। वैश्विक घटनाक्रमों पर नजर रखनी होगी।"

घरेलू संकेतकों की भी अहम भूमिका

हालांकि वैश्विक परिदृश्य के साथ-साथ घरेलू संकेतकों का असर भी बाजार की चाल पर रहेगा। मानसून की प्रगति, जून तिमाही के कॉरपोरेट नतीजे, पीएमआई डेटा और रिजर्व बैंक की संभावित मौद्रिक नीति बाजार की दिशा तय कर सकते हैं।

भारतीय निवेशकों को यह समझना होगा कि घरेलू फंडामेंटल मजबूत हैं, लेकिन वैश्विक जोखिमों की अनदेखी नहीं की जा सकती। भू-राजनीतिक तनाव लघु अवधि में शेयर बाजार को अस्थिर बना सकते हैं।

निवेशकों को क्या करना चाहिए?

  • मुनाफा वसूली का मौका: जिन सेक्टरों में हाल ही में तेजी आई है, वहां आंशिक मुनाफा वसूली की जा सकती है।
  • सतर्क निवेश: नए निवेश से पहले बाजार की दिशा साफ होने का इंतजार करना चाहिए।
  • डिफेंसिव सेक्टर पर नजर: फार्मा, एफएमसीजी और आईटी जैसे सेक्टर तनाव के दौरान बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं।
  • लिक्विडिटी बनाए रखें: निवेशकों को पोर्टफोलियो में नकदी का अनुपात बनाए रखना चाहिए ताकि सही समय पर अच्छे शेयरों में निवेश किया जा सके।

कच्चे तेल और मुद्रा बाजार पर नजर

अगर कच्चे तेल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी होती है तो यह मुद्रास्फीति को भी बढ़ावा दे सकती है, जिससे रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति पर असर पड़ सकता है। साथ ही डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी आने पर आयात महंगा होगा, जिसका प्रभाव ऑटो, केमिकल और पेंट्स जैसे आयात-निर्भर सेक्टरों पर दिखेगा।

भू-राजनीतिक संकट का इतिहास

पिछले वर्षों में जब भी विश्व में युद्ध या तनाव हुआ है, शेयर बाजारों ने शुरुआत में डर दिखाया है, लेकिन लंबे समय में वे फिर स्थिर हुए हैं। जैसे- यूक्रेन-रूस युद्ध के दौरान भी शुरुआती गिरावट के बाद बाजारों ने तेजी पकड़ी। इस बार भी विशेषज्ञ उम्मीद कर रहे हैं कि यदि संघर्ष सीमित रहता है और अमेरिका या अन्य राष्ट्र सीधे शामिल नहीं होते, तो बाजार जल्दी स्थिर हो सकते हैं।

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