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इजरायल-ईरान टकराव से तेल की कीमतों में आग, भारत पर महंगाई का खतरा

इजरायल-ईरान टकराव से तेल की कीमतों में आग, भारत पर महंगाई का खतरा

पश्चिम एशिया में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव का सीधा असर वैश्विक तेल बाजार पर दिखाई देने लगा है। पिछले कुछ महीनों से जहां कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का रुख था, वहीं अब हालात पूरी तरह बदल गए हैं।

Iran Israel Tensions: पश्चिम एशिया एक बार फिर भू-राजनीतिक संकट के मुहाने पर खड़ा है। इजरायल द्वारा ईरान पर किए गए ताजा सैन्य हमले के बाद वैश्विक बाजार में हलचल मच गई है, और सबसे ज्यादा असर देखने को मिला है कच्चे तेल की कीमतों पर। शुक्रवार को तेल की कीमतों में लगभग 8% की तेजी दर्ज की गई, जो कि बीते दो महीनों में अब तक की सबसे बड़ी छलांग है। इससे न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता बढ़ी है, बल्कि अमेरिका, चीन और यूरोप जैसे प्रमुख उपभोक्ता देशों के लिए ऊर्जा संकट की आहट भी महसूस की जा रही है।

क्या हुआ शुक्रवार को?

शुक्रवार को इजरायल ने आधिकारिक तौर पर पुष्टि की कि उसने ईरान की राजधानी तेहरान और उसके आसपास स्थित कुछ अहम सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया है। इस कार्रवाई को लेकर इजरायल का दावा है कि यह हमला ईरान की परमाणु गतिविधियों को रोकने के उद्देश्य से किया गया है। दूसरी तरफ, ईरान की मीडिया ने बताया कि तेहरान और अन्य इलाकों में जोरदार विस्फोटों की आवाज़ें सुनी गईं, हालांकि सरकारी स्तर पर इस हमले की पूरी पुष्टि नहीं की गई है।

कच्चे तेल की कीमतें क्यों बढ़ीं?

इस हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में भारी उछाल आया। ब्रेंट क्रूड फ्यूचर्स 7.63% बढ़कर 74.65 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया, जबकि वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) क्रूड भी 7.91% की तेजी के साथ 73.42 डॉलर प्रति बैरल हो गया। यह इजाफा 2 अप्रैल 2025 के बाद सबसे बड़ा उछाल माना जा रहा है।

इस तेजी का सबसे बड़ा कारण है कि बाजार को डर है कि यदि संघर्ष और गहराया, तो ईरान होरमुज जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी दे सकता है यह वही मार्ग है जिससे दुनिया भर के एक तिहाई तेल टैंकर गुजरते हैं। यदि इस रास्ते से सप्लाई बाधित हुई, तो कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल के पार भी जा सकती हैं।

अमेरिका का रुख साफ: हम शामिल नहीं

इस पूरे घटनाक्रम के बीच अमेरिका ने साफ कर दिया है कि वह इजरायल के हमले में किसी भी तरह से शामिल नहीं है। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने एक प्रेस वार्ता में कहा, "यह इजरायल का एकतरफा कदम है। हम इस सैन्य कार्रवाई का हिस्सा नहीं हैं।" उन्होंने ईरान से अपील की कि वह अमेरिकी सैनिकों या उनके दूतावासों को निशाना न बनाए।

इस बयान का साफ संकेत है कि अमेरिका इस बार किसी भी तरह की प्रत्यक्ष सैन्य उलझन से बचना चाहता है, खासकर तब जब वह पहले ही यूक्रेन और ताइवान को लेकर वैश्विक मंच पर कई मोर्चों पर जूझ रहा है।

क्या होगा अगर संघर्ष और गहराया?

तेल विश्लेषकों और रणनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह संघर्ष आगे बढ़ता है और ईरान अपने तेल उत्पादन या ट्रांसपोर्टेशन को रोकने की धमकी को हकीकत में बदलता है, तो वैश्विक तेल बाजार में भयंकर संकट उत्पन्न हो सकता है। MST Marquee के ऊर्जा विश्लेषक सॉल कावोनिक ने कहा, यदि ईरान ने होरमुज जलडमरूमध्य को बंद किया या अपने तेल आधारभूत ढांचे पर खुद ही रोक लगाई, तो प्रति दिन 2 करोड़ बैरल तक की सप्लाई पर असर पड़ सकता है। यह वैश्विक अर्थव्यवस्था को झकझोर देगा।

भारत और अन्य आयातक देशों पर असर

भारत, जो अपनी 85% से अधिक तेल जरूरतें आयात से पूरी करता है, इस संकट से गंभीर रूप से प्रभावित हो सकता है। कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से घरेलू ईंधन कीमतों में आग लग सकती है, जिससे महंगाई दर और ज्यादा बढ़ेगी। पेट्रोल और डीजल के साथ-साथ ट्रांसपोर्ट और खाद्य वस्तुओं की कीमतें भी उछाल मार सकती हैं। इससे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की मौद्रिक नीतियों पर भी दबाव बढ़ेगा।

इजरायल का इरादा स्पष्ट: ईरान के परमाणु ढांचे को खत्म करना

इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने शुक्रवार को अपने एक बयान में कहा कि यह हमला ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं को पूरी तरह खत्म करने के लिए किया गया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि आवश्यक हुआ तो इजरायल आगे भी कार्रवाई करने को तैयार है। उनके अनुसार, ईरान की बैलिस्टिक मिसाइल फैक्ट्रियों, यूरेनियम संवर्धन केंद्रों और अन्य सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाना ज़रूरी था।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और आगे की आशंका

संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और चीन ने इस हमले को लेकर चिंता जताई है और दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की है। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक कोशिशें फिलहाल नाकाम होती दिख रही हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि अगर जल्द ही कोई मध्यस्थता नहीं हुई, तो यह संघर्ष और बड़ा रूप ले सकता है, जिसमें क्षेत्रीय देशों जैसे सऊदी अरब, UAE, और इराक भी अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हो सकते हैं। इससे न केवल तेल की कीमतों पर बल्कि वैश्विक बाजारों पर व्यापक असर पड़ेगा।

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