भारत सरकार ने हाल ही में पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश द्वारा इथेनॉल पर अतिरिक्त शुल्क लगाए जाने को लेकर गहरी चिंता जताई है।
भारत के स्वच्छ ऊर्जा मिशन और वैकल्पिक ईंधन नीतियों को उस समय झटका लगा, जब उत्तर भारत के तीन प्रमुख राज्यों पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश ने इथेनॉल पर अतिरिक्त टैक्स लगाने का फैसला लिया। केंद्र सरकार और इथेनॉल उद्योग से जुड़े संगठन इस फैसले से न केवल चिंतित हैं, बल्कि उन्होंने इसे इथेनॉल मिश्रण लक्ष्य के रास्ते में बड़ी रुकावट बताया है।
भारत सरकार का लक्ष्य वर्ष 2025-26 तक ईंधन में 20 प्रतिशत और 2030 तक 30 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण प्राप्त करने का है। यह मिशन न केवल देश की ऊर्जा आयात पर निर्भरता घटाने में मदद करता है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती और पर्यावरण संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाता है। ऐसे में तीन राज्यों द्वारा इथेनॉल पर अलग से शुल्क लगाए जाने का फैसला इस लक्ष्य को प्रभावित कर सकता है।
केंद्र ने जताई कड़ी आपत्ति
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने इस मुद्दे पर तीनों राज्यों को औपचारिक रूप से पत्र भेजकर अपनी आपत्ति दर्ज की है। मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव प्रवीन एम. खनूजा द्वारा हिमाचल प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के मुख्य सचिवों को क्रमशः 27 मार्च, 8 अप्रैल और 23 मई को पत्र भेजे गए हैं।
इन पत्रों में केंद्र ने स्पष्ट किया कि इथेनॉल परमिट फीस, डिस्टिलरी लाइसेंस शुल्क, नवीनीकरण शुल्क और अन्य नियामक प्रावधान, इथेनॉल की निर्बाध आपूर्ति और परिवहन में बाधा बन सकते हैं। मंत्रालय ने यह भी बताया कि इथेनॉल पर लगाए गए नए शुल्क एक ऐसा कदम है, जो न केवल आर्थिक रूप से नुकसानदायक हो सकता है, बल्कि जीएसटी की नीति के भी खिलाफ है, क्योंकि इथेनॉल पहले से ही जीएसटी के अंतर्गत आता है।
ईंधन की लागत और पर्यावरणीय लक्ष्य होंगे प्रभावित
केंद्र सरकार का मानना है कि इन शुल्कों से इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल की लागत में इजाफा होगा, जिससे आम जनता पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा। साथ ही, यदि इथेनॉल का उपयोग घटता है, तो कार्बन उत्सर्जन में कटौती का राष्ट्रीय लक्ष्य भी खतरे में पड़ सकता है।
सरकार ने चेताया है कि इस प्रकार की नीति राज्य स्तर पर बनाई जाती रही, तो राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे समग्र इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम की दिशा बाधित हो सकती है। यह विशेष रूप से तब महत्वपूर्ण है, जब भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ ठोस प्रतिबद्धता जताई है।
इथेनॉल उद्योग में बढ़ी बेचैनी, मैन्युफैक्चरर्स की मांग
ग्रेन इथेनॉल मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन समेत अन्य उद्योग संगठनों ने राज्यों के इस फैसले की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि पहले ही कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी और सरकारी तेल कंपनियों द्वारा तय मूल्य में स्थिरता के चलते उनका मुनाफा प्रभावित हो रहा है। अब इन अतिरिक्त शुल्कों से लागत और बढ़ेगी, जिससे उत्पादन प्रभावित होगा और नौकरियों पर भी असर पड़ सकता है।
उद्योग संगठनों ने कहा कि यदि राज्यों ने यह निर्णय वापस नहीं लिया, तो कई इकाइयों को उत्पादन रोकना पड़ सकता है या घाटे में चलना पड़ेगा। उन्होंने मांग की है कि इथेनॉल जैसे महत्वपूर्ण वैकल्पिक ईंधन पर राज्य करों को समाप्त किया जाए या इसे केंद्र के साथ समन्वय में तय किया जाए।
राज्यों की स्थिति और राजनीतिक पृष्ठभूमि
तीनों राज्यों में अलग-अलग राजनीतिक दलों की सरकारें हैं। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस, पंजाब में आम आदमी पार्टी और हरियाणा में भाजपा की सरकार है। खास बात यह है कि हरियाणा केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के साथ राजनीतिक तौर पर जुड़ा हुआ है, फिर भी उसने इथेनॉल पर स्वतंत्र रूप से शुल्क लगाने का फैसला लिया है।
केंद्र को उम्मीद थी कि हरियाणा सरकार केंद्रीय ऊर्जा नीति के साथ तालमेल रखेगी, लेकिन ऐसा न होने से विवाद की स्थिति बन गई है। यह स्थिति एक संकेत भी है कि केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय की कमी किस तरह राष्ट्रीय मिशनों पर असर डाल सकती है।
मिश्रण लक्ष्य पर पड़ सकता है असर
तीनों राज्यों ने अब तक इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम में संतोषजनक प्रगति की है और वर्तमान आपूर्ति वर्ष में लगभग 18 प्रतिशत के स्तर तक पहुंच चुके हैं। लेकिन केंद्र का मानना है कि अगर यह शुल्क जारी रहे, तो 20 प्रतिशत मिश्रण का लक्ष्य प्राप्त करना कठिन हो जाएगा।
इसके अलावा, रिपोर्ट के अनुसार देशभर में केवल पंजाब और हरियाणा ही ऐसे राज्य हैं जिन्होंने विशेष रूप से इथेनॉल पर शुल्क लगाया है। हिमाचल प्रदेश ने भी ऐसा किया है, लेकिन उसकी भूमिका कुछ हद तक भिन्न है क्योंकि वहां डिस्टिलरी गतिविधियां सीमित हैं।
कानूनी और नीतिगत सवाल भी उठे
चूंकि इथेनॉल जीएसटी के तहत आता है, ऐसे में उस पर राज्यों द्वारा अलग से शुल्क लगाना कानूनी दृष्टिकोण से विवादास्पद हो सकता है। केंद्र सरकार ने संकेत दिए हैं कि यदि इन शुल्कों को वापस नहीं लिया गया, तो यह मामला उच्च स्तर तक जा सकता है और नीति निर्धारण की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
केंद्र की अपील और सहयोग की पेशकश
पेट्रोलियम मंत्रालय ने यह स्पष्ट किया है कि वह राज्यों के साथ समन्वय में कार्य करने को तैयार है। केंद्र ने दोहराया है कि उसका उद्देश्य केवल शुल्क हटवाना नहीं है, बल्कि स्वच्छ ऊर्जा, आत्मनिर्भरता और ग्रामीण विकास के राष्ट्रीय लक्ष्य को सुनिश्चित करना है।
केंद्र ने अपील की है कि सभी राज्य सरकारें इस नीति को राष्ट्रीय दृष्टिकोण से देखें और छोटे-छोटे राजस्व लाभों के बजाय दीर्घकालिक सामाजिक और पर्यावरणीय लाभों पर ध्यान दें।