इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने की प्रक्रिया अपने अंतिम दौर में है। वहीं, जिन टैक्सपेयर्स ने अभी तक रिटर्न फाइल नहीं किया है और पुराने टैक्स स्लैब का फायदा लेना चाहते हैं, उनके लिए एक जरूरी अपडेट सामने आया है। इस बार की इनकम टैक्स प्रक्रिया में कुछ अहम बदलाव हुए हैं, जिससे खासकर 80C और HRA जैसी कटौतियों पर असर पड़ा है।
सरकार ने बजट 2024 में नई टैक्स रिजीम को डिफॉल्ट बना दिया है। लेकिन इसके बावजूद पुरानी व्यवस्था को अपनाने का विकल्प अब भी मौजूद है, बशर्ते आप समय पर यानी 15 सितंबर 2025 तक ITR फाइल कर दें।
बजट के बाद नई टैक्स रिजीम बनी ज्यादा आकर्षक
जुलाई 2024 में पेश हुए केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नई टैक्स रिजीम में कई बदलाव किए। स्टैंडर्ड डिडक्शन से लेकर टैक्स स्लैब तक में बदलाव करके इसे पहले से ज्यादा आकर्षक बनाया गया है।
लेकिन ज्यादातर टैक्सपेयर्स ने बजट से पहले ही इन्वेस्टमेंट डेक्लेरेशन जमा कर दिए थे, जिसमें नई व्यवस्था की जानकारी शामिल नहीं थी। ऐसे में कई कर्मचारी अब भी पुरानी व्यवस्था को अपनाना चाह रहे हैं, ताकि उन्हें 80C, 80D, HRA और होम लोन ब्याज जैसी कटौतियों का फायदा मिल सके।
ITR समय पर फाइल करना क्यों है जरूरी
आयकर विभाग के नियमों के अनुसार, अगर कोई टैक्सपेयर पुरानी टैक्स व्यवस्था को अपनाना चाहता है, तो उसे नियत समय सीमा के भीतर यानी 15 सितंबर 2025 से पहले अपना ITR फाइल करना होगा।
अगर आप डेडलाइन के बाद यानी 31 दिसंबर 2025 तक बिलेटेड ITR फाइल करते हैं, तो आपको पुरानी टैक्स व्यवस्था का विकल्प नहीं मिलेगा और आप धारा 80C के तहत मिलने वाली टैक्स कटौतियों से वंचित हो सकते हैं।
बिना फॉर्म के कर सकते हैं विकल्प का चयन
इनकम टैक्स कानून के तहत, सैलरी पाने वाले व्यक्ति या पेंशनर्स को टैक्स रिजीम चुनने के लिए कोई अलग फॉर्म भरने की जरूरत नहीं होती।
अगर आप ITR-1 या ITR-2 भरते हैं, तो रिटर्न फॉर्म के अंदर ही एक कॉलम दिया गया है जिसमें "नई टैक्स व्यवस्था से बाहर निकलने" का विकल्प चुना जा सकता है। इसी के जरिए आप पुराने स्लैब का फायदा ले सकते हैं।
बिजनेस इनकम वालों के लिए अलग नियम
अगर किसी टैक्सपेयर की आय में बिजनेस या प्रोफेशन से होने वाली इनकम शामिल है, और वह ITR-3, ITR-4 या ITR-5 भरता है, तो ऐसे मामलों में 'फॉर्म 10-IEA' भरना जरूरी होता है।
इस फॉर्म के जरिए यह जानकारी दी जाती है कि टैक्सपेयर नई टैक्स व्यवस्था से बाहर निकलना चाहता है या उसमें शामिल होना चाहता है।
यह फॉर्म उसी वर्ष में एक बार भरा जा सकता है, और हर साल स्विच करने की सुविधा केवल सैलरीड या पेंशनर्स को ही मिलती है।
किसे होगा नई टैक्स व्यवस्था से लाभ
नई टैक्स व्यवस्था खासकर उन टैक्सपेयर्स के लिए फायदेमंद हो सकती है, जो कोई विशेष इन्वेस्टमेंट नहीं करते या जिनके पास HRA, होम लोन ब्याज जैसी कटौतियों का दावा करने की गुंजाइश नहीं है।
नई व्यवस्था में स्टैंडर्ड डिडक्शन बढ़ा दिया गया है, टैक्स स्लैब अधिक सरल हैं और रेट कम हैं। इसके अलावा कोई अतिरिक्त कागजी कार्यवाही की जरूरत भी नहीं होती।
पुरानी टैक्स व्यवस्था की विशेषताएं
पुरानी टैक्स व्यवस्था उन टैक्सपेयर्स के लिए ज्यादा मुफीद मानी जाती है जो हर साल सेक्शन 80C, 80D, होम लोन ब्याज, HRA और अन्य डिडक्शन क्लेम करते हैं।
जिनकी इनकम स्ट्रक्चर में कटौतियों की भरमार है, उनके लिए पुरानी व्यवस्था में टैक्स लायबिलिटी कम निकलती है।
खासतौर पर जिनका हाउस रेंट अलाउंस ज्यादा होता है या जिन्होंने होम लोन पर ज्यादा ब्याज दिया है, उन्हें पुरानी व्यवस्था से अधिक फायदा मिल सकता है।
रिटर्न लेट हुआ तो क्या होगा नुकसान
अगर कोई टैक्सपेयर निर्धारित डेडलाइन यानी 15 सितंबर 2025 से पहले ITR फाइल नहीं करता, तो उसे कई नुकसान झेलने पड़ सकते हैं।
- उसे 5000 रुपये तक की लेट फीस भरनी पड़ सकती है
- कटौती और छूट का फायदा नहीं मिलेगा
- घाटा आगे कैरी फॉरवर्ड नहीं किया जा सकता
- पुरानी टैक्स व्यवस्था में स्विच का विकल्प खत्म हो जाएगा
इनकम टैक्स विभाग ने स्पष्ट किया है कि पुरानी टैक्स व्यवस्था को अपनाने का विकल्प केवल सेक्शन 139(1) के तहत समय पर रिटर्न फाइल करने पर ही मिलेगा।
नई और पुरानी व्यवस्था के बीच फर्क
हर साल टैक्सपेयर को छूट दी जाती है कि वह नई या पुरानी टैक्स व्यवस्था में से किसी एक को चुन सके।
नई व्यवस्था में आपको किसी डिडक्शन या छूट की जरूरत नहीं होती, जबकि पुरानी व्यवस्था में आपको बचत योजनाओं, इंश्योरेंस, होम लोन और रेंट पर आधारित छूटें मिलती हैं।
इसलिए, रिटर्न फाइल करने से पहले दोनों टैक्स व्यवस्थाओं के अनुसार टैक्स की गणना कर लेना जरूरी होता है, ताकि आपको स्पष्ट समझ आ सके कि किस विकल्प से कम टैक्स देना होगा।