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जापान की रेलवे से भारत क्या सीख सकता है: समय की पाबंदी और जवाबदेही

जापान की रेलवे से भारत क्या सीख सकता है: समय की पाबंदी और जवाबदेही

इस ट्रेन का ट्रैक रिकॉर्ड यह बताता है कि अगर नियोजन, निगरानी और प्रतिबद्धता हो, तो भारतीय रेलवे में भी समय पर यात्रा करना संभव है। यह ट्रेन आज उन सभी यात्रियों के लिए उम्मीद की किरण है जो हर दिन “लेट” के डर से सफर की चिंता करते हैं।

The most punctual Train: जहां एक ओर भारत में ट्रेनें देरी से चलना आम बात बन चुकी है, वहीं दुनिया का एक ऐसा देश भी है जहां एक ट्रेन के केवल 35 सेकेंड लेट होने पर न केवल माफी मांगी जाती है, बल्कि यात्रियों को पूरा किराया भी लौटा दिया जाता है। यह देश है जापान, जहां की रेलवे व्यवस्था दुनिया की सबसे समयनिष्ठ और विश्वसनीय मानी जाती है। जापान की यह नीति न सिर्फ तकनीकी दक्षता को दर्शाती है, बल्कि एक आदर्श ग्राहक सेवा की मिसाल भी पेश करती है।

भारत में देरी सामान्य बात

भारतीय रेल एशिया की सबसे बड़ी और दुनिया की चौथी सबसे बड़ी रेलवे प्रणाली है। यहां हर दिन करोड़ों लोग यात्रा करते हैं। लेकिन भारत में ट्रेन के एक या दो घंटे लेट होने को सामान्य बात समझा जाता है। खासकर सर्दियों में ट्रेनों का 10 से 12 घंटे तक लेट होना भी यात्रियों के लिए आश्चर्य की बात नहीं होती। रेलवे की ओर से ऐसी देरी के लिए आम तौर पर कोई स्पष्टीकरण या माफीनामा नहीं आता। अधिकांश लोग इसे ‘सिस्टम का हिस्सा’ मानकर स्वीकार कर लेते हैं।

जापान का अद्वितीय उदाहरण

अब अगर हम जापान की बात करें, तो वहां की रेलवे प्रणाली तकनीकी परिशुद्धता, समयनिष्ठा और यात्रियों के प्रति गंभीरता की मिसाल है। जापान की शिन्कानसेन यानी बुलेट ट्रेन दुनियाभर में अपने अत्यंत सटीक समय और विश्वसनीयता के लिए प्रसिद्ध है। इस ट्रेन का रिकॉर्ड यह है कि यह शायद ही कभी निर्धारित समय से अधिक देरी करती हो।

एक उदाहरण में केवल 35 सेकेंड की देरी हुई थी, जिस पर न सिर्फ ट्रेन के ड्राइवर ने सार्वजनिक रूप से यात्रियों से माफी मांगी, बल्कि रेलवे प्रशासन ने भी इसे गंभीरता से लिया और यात्रियों को पूरा किराया वापस कर दिया। यह घटना रेलवे की यात्री सेवा प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

समय की पाबंदी: जापान की जीवनशैली का हिस्सा

जापान में समय की पाबंदी केवल रेलवे तक सीमित नहीं है। यहां स्कूल, कॉलेज, दफ्तर, अस्पताल और परिवहन सेवाएं सभी समय के नियमों को सख्ती से मानते हैं। मिनट या सेकेंड की देरी को भी वहां की संस्कृति में अस्वीकार्य माना जाता है। यह पाबंदी हर व्यक्ति की आदत में शामिल है, जो पूरे देश के सामूहिक अनुशासन का हिस्सा बन चुकी है।

रेलवे प्रणाली में तकनीकी श्रेष्ठता

जापान की ट्रेनें इसलिए समय पर चलती हैं क्योंकि वहां की रेलवे प्रणाली तकनीकी रूप से अत्याधुनिक है। ट्रेनों की निगरानी रीयल टाइम में की जाती है। सभी गाड़ियों की गति, स्थिति और अनुमानित समय एक केंद्रीकृत नियंत्रण प्रणाली के माध्यम से रिकॉर्ड की जाती है। ट्रेन चलाने वाले स्टाफ को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वे किसी भी स्थिति में समय का पालन कर सकें।

इसके अलावा, रेलवे ट्रैक की देखरेख, मशीनों का रखरखाव, सिग्नलिंग सिस्टम और स्टेशन की व्यवस्थाएं इतनी सटीक होती हैं कि देरी की कोई संभावना नहीं रहती। अगर फिर भी किसी तकनीकी कारण से ट्रेन कुछ सेकेंड भी लेट हो जाए, तो उसकी जवाबदेही तय की जाती है।

यात्रियों के प्रति उत्तरदायित्व की भावना

जापान में रेलवे यह मानता है कि यात्रियों का समय अमूल्य है। इसलिए ट्रेन अगर निर्धारित समय से एक मिनट भी देरी करती है, तो यात्रियों को न सिर्फ जानकारी दी जाती है, बल्कि संबंधित कर्मचारी सामने आकर माफी भी मांगते हैं। यह व्यवस्था केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि रेलवे की संस्कृति का हिस्सा है। यहां तक कि स्कूल के छात्र और नौकरीपेशा लोग देरी का बहाना नहीं बना सकते, क्योंकि रेलवे एक प्रमाण-पत्र जारी करता है जिसमें देरी का कारण और समय लिखा होता है।

भारत क्या सीख सकता है जापान से

भारत में रेलवे की चुनौतियां अलग हैं। अधिक जनसंख्या, विशाल नेटवर्क और विविध भूगोल के कारण समयनिष्ठा बनाए रखना कठिन कार्य है। लेकिन इसके बावजूद भारत जापान से कई बातें सीख सकता है। सबसे महत्वपूर्ण है यात्रियों के प्रति उत्तरदायित्व की भावना और जवाबदेही तय करना। जब तक रेलवे देरी को सामान्य मानता रहेगा, तब तक सुधार की कोई संभावना नहीं बनेगी।

भारत को चाहिए कि वह समयनिष्ठता को रेलवे नीति में प्राथमिकता दे। इसके लिए तकनीकी सुधार, बेहतर ट्रैक रखरखाव, कर्मचारियों की नियमित ट्रेनिंग और सिग्नलिंग सिस्टम को आधुनिक बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं।

डिजिटल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल

जापान की तरह भारत में भी अब धीरे-धीरे डिजिटल तकनीकों का इस्तेमाल बढ़ रहा है। रेलवे स्टेशनों पर डिस्प्ले बोर्ड, मोबाइल ऐप्स, जीपीएस आधारित ट्रेन लोकेशन सिस्टम जैसे कई प्रयोग शुरू हो चुके हैं। जरूरत है तो बस इनका सटीक और व्यावहारिक उपयोग सुनिश्चित करने की।

समस्या केवल टेक्नोलॉजी की नहीं, सोच की भी है

जापान और भारत की रेलवे व्यवस्था में सबसे बड़ा अंतर सोच का है। जहां जापान में एक सेकेंड की देरी को भी अस्वीकार्य माना जाता है, वहीं भारत में घंटों की देरी भी ‘स्वाभाविक’ मान ली जाती है। जब तक यात्रियों का समय और अनुभव प्राथमिकता नहीं बनेगा, तब तक कोई भी तकनीक या व्यवस्था कारगर सिद्ध नहीं होगी।

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