सुप्रीम कोर्ट ने खजुराहो मंदिर में भगवान विष्णु की टूटी प्रतिमा बदलने की याचिका खारिज कर दी। अदालत ने इसे पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन बताया और कहा कि यह पूरी तरह से एएसआई का मामला है, न्यायालय इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा।
MP: मध्य प्रदेश के खजुराहो मंदिरों को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया है। यहां की अद्भुत शिल्पकला और मूर्तियां भारत की प्राचीन कला का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इन्हीं मंदिरों में जवारी मंदिर स्थित है, जहां भगवान विष्णु की सात फुट ऊंची प्रतिमा रखी गई है। यह प्रतिमा लंबे समय से क्षतिग्रस्त अवस्था में है और इसका सिर टूटा हुआ है।
इसी प्रतिमा के पुनर्निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा की मांग को लेकर राकेश दलाल नामक व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। उन्होंने दावा किया कि मुगल आक्रमणों के दौरान यह प्रतिमा खंडित हुई थी और आज़ादी के बाद भी इसकी मरम्मत नहीं की गई। उनका कहना था कि टूटी प्रतिमा भक्तों की आस्था को आहत करती है और पूजा का अधिकार अधूरा रह जाता है।
याचिकाकर्ता की दलीलें
राकेश दलाल ने अदालत से गुहार लगाई कि खजुराहो के इस मंदिर को विश्व धरोहर स्थल माना जाता है, इसलिए यहां आने वाले लाखों श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए टूटी हुई प्रतिमा अपमानजनक प्रतीक है। उनका कहना था कि सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को कई बार ज्ञापन दिए गए, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि मूर्ति को पुनर्स्थापित न करना भक्तों के पूजा-अर्चना करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि जब मंदिर पूजा स्थल है, तो उसकी प्रतिमाएं भी पूरी तरह सुरक्षित और पूजनीय होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
चीफ जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। अदालत ने साफ कर दिया कि यह याचिका अदालत के लिए नहीं बल्कि प्रचार पाने के उद्देश्य से दायर की गई है।
मुख्य न्यायाधीश गवई ने सुनवाई के दौरान कहा, "यह पूरी तरह से पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन है। अगर आप भगवान विष्णु के सच्चे भक्त हैं, तो प्रार्थना कीजिए और उनसे कहिए कि वे खुद कुछ करें।"
उन्होंने आगे कहा कि यह मामला पूरी तरह से ASI के अधिकार क्षेत्र में आता है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि धरोहर स्थल पर किसी भी तरह का परिवर्तन करने का अधिकार पुरातत्व विभाग का है। अदालत इस तरह के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
'शिवलिंग की पूजा कर सकते हैं'
चीफ जस्टिस बी आर गवई की एक और टिप्पणी चर्चा में रही। उन्होंने कहा कि खजुराहो मंदिर परिसर में ही एक विशाल शिवलिंग मौजूद है, जो वहां के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है। उन्होंने कहा, "अगर आप शैव धर्म के विरोधी नहीं हैं तो वहां जाकर पूजा कीजिए।"
इस टिप्पणी को कई लोगों ने सख्त माना, वहीं कुछ ने इसे व्यावहारिक दृष्टिकोण बताया। अदालत का मकसद यह स्पष्ट करना था कि आस्था का सम्मान है, लेकिन उसके नाम पर धरोहरों से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती।
एएसआई का अधिकार क्षेत्र क्यों महत्वपूर्ण
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों की देखभाल करता है। खजुराहो जैसे विश्व धरोहर स्थल पर किसी भी प्रतिमा को बदलना या पुनर्निर्मित करना आसान नहीं है। यह प्रक्रिया अंतरराष्ट्रीय मानकों और ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर ही तय होती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि पुरानी मूर्तियों को बदलना उनके मूल ऐतिहासिक महत्व को नुकसान पहुंचा सकता है। इसीलिए एएसआई इन्हें उनकी मौजूदा स्थिति में ही संरक्षित रखने पर जोर देता है।
खजुराहो मंदिरों का ऐतिहासिक महत्व
खजुराहो मंदिरों का निर्माण चंद्रवंशी राजाओं ने 9वीं से 12वीं शताब्दी के बीच कराया था। यहां 85 मंदिर हुआ करते थे, जिनमें से आज केवल 25 मंदिर शेष हैं। ये मंदिर अपनी कलाकृतियों और मूर्तियों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। इनमें धर्म, संस्कृति और जीवन के विभिन्न पहलुओं को बारीकी से दर्शाया गया है। खजुराहो को देखने हर साल लाखों देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं।
भक्तों की भावनाएं बनाम धरोहर संरक्षण
याचिकाकर्ता और कई भक्त मानते हैं कि टूटी प्रतिमा आस्था के लिए ठीक नहीं है। उनका कहना है कि मंदिर पूजा स्थल है और यहां प्रतिमाओं का सही स्वरूप होना आवश्यक है।
वहीं, इतिहासकार और पुरातत्वविद यह तर्क देते हैं कि धरोहर स्थलों को उनकी मूल अवस्था में ही संरक्षित रखा जाना चाहिए। अगर बार-बार मूर्तियों को बदला गया तो उनकी प्रामाणिकता खत्म हो जाएगी। यही वजह है कि अदालत ने भी मामले को एएसआई पर छोड़ दिया।