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कपिल देव: 1983 विश्वविजेता कप्तान की प्रेरक जीवनगाथा

कपिल देव: 1983 विश्वविजेता कप्तान की प्रेरक जीवनगाथा

भारतीय खेल इतिहास में कुछ नाम ऐसे होते हैं जो समय के साथ और अधिक चमकने लगते हैं। कपिल देव रामलाल निखंज, जिन्हें हम सभी ‘कपिल देव’ के नाम से जानते हैं, ऐसे ही एक नाम हैं। एक खिलाड़ी, एक कप्तान, एक प्रेरणा और एक युग का नाम – कपिल देव सिर्फ क्रिकेट के मैदान में गेंद और बल्ले का संतुलन नहीं थे, वे थे उम्मीद और साहस की जीती-जागती मिसाल। उनका जीवन सिर्फ रिकॉर्ड्स की गिनती नहीं, बल्कि आत्मविश्वास, संघर्ष और नेतृत्व का पाठ है।

शुरुआती जीवन: साधारण से असाधारण की ओर

कपिल देव का जन्म 6 जनवरी 1959 को पंजाब के चंडीगढ़ में हुआ था। उनके पिता रामलाल निखंज स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और माता राजकुमारी निखंज एक साधारण गृहिणी। कपिल देव ने अपने किशोरावस्था में ही खेलों के प्रति रुझान दिखा दिया था। क्रिकेट उनके लिए एक खेल से ज़्यादा जुनून था। वे हरियाणा की ओर से रणजी ट्रॉफी में खेलने लगे और यहीं से एक ऐसे करियर की नींव पड़ी, जिसने भारत को वैश्विक क्रिकेट मंच पर गौरव दिलाया।

क्रिकेट में आगमन: शुरुआत से ही आक्रामक रुख

कपिल देव ने 1975 में हरियाणा की टीम से घरेलू क्रिकेट में पदार्पण किया। उनकी तेज गेंदबाजी और ऊर्जावान बल्लेबाजी ने जल्द ही उन्हें राष्ट्रीय चयनकर्ताओं की नजरों में ला खड़ा किया। 16 अक्टूबर 1978 को उन्होंने पाकिस्तान के विरुद्ध फैसलाबाद में अपना पहला टेस्ट खेला। हालांकि शुरुआती श्रृंखला कुछ खास नहीं रही, पर कपिल देव हार मानने वालों में से नहीं थे। उन्होंने जल्द ही खुद को एक 'ऑलराउंडर' के रूप में स्थापित किया, जो विकेट भी ले सकता है और जरूरत पड़ने पर मैच जिताऊ पारी भी खेल सकता है।

वह ऐतिहासिक पल: 1983 विश्वकप और भारत की ताजपोशी

1983 का क्रिकेट विश्वकप कपिल देव के करियर और भारतीय क्रिकेट के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। तब भारत को क्रिकेट में बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता था, लेकिन कपिल की कप्तानी में सबकुछ बदल गया। 18 जून 1983 को जिम्बाब्वे के खिलाफ उन्होंने मात्र 138 गेंदों में 175 रन की पारी खेली। यह पारी क्रिकेट इतिहास की सबसे साहसिक पारियों में से एक मानी जाती है। उस विश्वकप में भारत ने विंडीज जैसी दिग्गज टीम को हराकर कप अपने नाम किया और भारत क्रिकेट का नया महाशक्ति बनकर उभरा।

रिकॉर्ड्स की खान: आँकड़ों से कहीं आगे

कपिल देव ने 131 टेस्ट मैचों में 434 विकेट और 5248 रन बनाए। उन्होंने 225 वनडे मैचों में 253 विकेट और 3783 रन जोड़े। वे पहले खिलाड़ी बने जिन्होंने टेस्ट में 400 से ज्यादा विकेट और 5000 से ज्यादा रन बनाए। उनकी बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों में संतुलन ने उन्हें 'पूर्ण खिलाड़ी' की श्रेणी में ला खड़ा किया। वे 1994 में क्रिकेट से संन्यास लेने तक भारतीय क्रिकेट की रीढ़ बने रहे।

प्रशिक्षक की भूमिका: नेतृत्व मैदान के बाहर भी

1999 में कपिल देव को भारतीय क्रिकेट टीम का कोच नियुक्त किया गया। हालांकि यह कार्यकाल बहुत लंबा नहीं चला। मनोज प्रभाकर द्वारा लगाए गए सट्टेबाज़ी के आरोपों से परेशान होकर कपिल देव ने पद से इस्तीफा दे दिया। बाद में वह निर्दोष साबित हुए। यद्यपि यह काल उनके लिए चुनौतीपूर्ण रहा, पर उन्होंने इससे उबर कर फिर से खुद को एक सामाजिक नेता के रूप में स्थापित किया।

सामाजिक कार्य: खेल से आगे बढ़कर समाज सेवा तक

कपिल देव ने 2005 में ‘खुशी’ नामक एक संस्था की स्थापना की, जो वंचित बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए काम करती है। दिल्ली में 'खुशी' के तीन स्कूल चल रहे हैं, जो जरूरतमंद बच्चों को शिक्षा का अवसर प्रदान करते हैं। वे सिर्फ क्रिकेट के हीरो नहीं हैं, बल्कि समाज के लिए भी एक आदर्श हैं।

सैन्य सेवा: एक और पहचान

24 सितंबर 2008 को कपिल देव को भारतीय प्रादेशिक सेना में ‘लेफ्टिनेंट कर्नल’ का मानद पद दिया गया। यह सम्मान उनके अनुशासन, देशभक्ति और प्रेरणादायक जीवन के लिए था। उन्होंने साबित किया कि अनुशासन सिर्फ सेना की परिभाषा नहीं, बल्कि हर सफल व्यक्ति की बुनियाद होती है।

व्यक्तिगत जीवन: सादगी और संतुलन का संगम

कपिल देव ने 1980 में रोमी भाटिया से विवाह किया। उनकी एकमात्र संतान, अमिया देव, का जन्म 1996 में हुआ। निजी जीवन में वे हमेशा सादगी पसंद रहे हैं। उन्होंने अपने व्यक्तित्व को ग्लैमर से कभी नहीं ढका, बल्कि मेहनत और ईमानदारी को अपना मंत्र बनाया।

कला, संस्कृति और गोल्फ में रूचि

क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद कपिल देव ने गोल्फ खेलना शुरू किया और कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में भाग लिया। वे लॉरियस फाउंडेशन के एशिया से एकमात्र संस्थापक सदस्य रहे हैं। यह संस्था खेल के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन लाने में कार्यरत है।

कपिल देव सिर्फ एक क्रिकेटर नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का हिस्सा हैं। उन्होंने जो जज़्बा दिखाया, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत है। वे साबित करते हैं कि एक व्यक्ति अगर ईमानदारी, परिश्रम और आत्मविश्वास से काम ले तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं। क्रिकेट को उन्होंने न केवल खेला, बल्कि उसे जीया – और भारत को एक नया आत्मविश्वास दिया।

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