भगवान शिव को उनकी योग मुद्रा, तपस्या और शांत चित्त के लिए जाना जाता है, लेकिन उनके स्वरूपों और लीलाओं में कई ऐसे प्रसंग भी मिलते हैं, जो उनकी दिव्य माया को दर्शाते हैं। उन्हीं में से एक कथा महाभारत के अनुशासन पर्व में मिलती है, जहां शिव का पंचमुख रूप प्रकट होता है। ये रूप उन्होंने किसी युद्ध या तांडव के समय नहीं, बल्कि एक अप्सरा को देखकर लिया था।
यह अप्सरा थीं तिलोत्तमा, जिन्हें ब्रह्माजी ने स्वयं शिव की प्रेरणा से बनाया था। तिलोत्तमा का सौंदर्य ऐसा था कि देवता, ऋषि, गंधर्व सभी उनकी ओर आकर्षित हो गए थे। और जब वे भगवान शिव की परिक्रमा करने पहुंचीं, तब शिव ने अपनी लीला से पंचमुख रूप धारण किया।
असुरों के आतंक से कांपी सृष्टि, शिव की प्रेरणा से बना सौंदर्य का स्वरूप
पुराणों में वर्णन मिलता है कि सुंद और उपसुंद नाम के दो असुरों ने अपने बल और बुद्धि से त्रिलोक में आतंक मचा दिया था। देवता, गंधर्व, यक्ष सभी भयभीत होकर ब्रह्माजी के पास पहुंचे। ब्रह्माजी ने शिवजी से परामर्श लिया, और शिव की प्रेरणा से एक ऐसा उपाय निकाला गया जिससे ये दोनों असुर खुद ही एक-दूसरे का अंत करें।
इसके लिए ब्रह्माजी ने विश्व की सबसे सुंदर वस्तुओं का सार लेकर एक अनुपम अप्सरा की रचना की। उसका नाम रखा गया तिलोत्तमा। तिल-तिल सौंदर्य का निर्माण करके बनाई गई यह अप्सरा इतनी सुंदर थी कि उसे देखकर देवता भी अपनी सुध-बुध खो बैठे।
तिलोत्तमा का जन्म और उसका उद्देश्य
तिलोत्तमा के जन्म का उद्देश्य एक विशेष कार्य था। उन्हें सुंद और उपसुंद को अपने रूप और सौंदर्य से मोहित करके एक-दूसरे के विरुद्ध उकसाने का कार्य सौंपा गया था। तिलोत्तमा ने इस कार्य को सहर्ष स्वीकार किया और देवताओं की सभा में प्रवेश किया।
जब तिलोत्तमा सभा की परिक्रमा कर रही थीं, तो उनके सौंदर्य ने देवताओं, गंधर्वों और ऋषियों को भी चकित कर दिया। उनकी चाल, उनका रूप और उनका तेज हर ओर आकर्षण का केंद्र बन चुका था। सभा में उपस्थित सभी दिव्य आत्माएं उस अनुपम रूप की ओर खिंचती चली गईं।
भगवान शिव ने प्रकट किए चार मुख, बना पंचमुख स्वरूप
जब तिलोत्तमा भगवान शिव की ओर बढ़ीं और उन्हें परिक्रमा करने लगीं, तब शिवजी ने हर दिशा से उन्हें देखने के लिए एक-एक मुख प्रकट करना शुरू किया। उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम – हर दिशा में उन्होंने अपना एक नया मुख दिखाया। कुछ कथाओं में यह भी बताया गया है कि अंत में उन्होंने ऊपर की दिशा में भी मुख प्रकट कर पंचमुख रूप धारण किया।
भगवान शिव के इस पंचमुख रूप को देखकर वहां उपस्थित सभी देवता अचंभित रह गए। लेकिन इस लीला की बात जब देवी पार्वती तक पहुंची, तो उन्होंने इसे साधारण रूप में नहीं लिया।
नारदजी ने पार्वती को बताया सारा प्रसंग, भड़कीं देवी
नारद मुनि जो कि हर जगह विचरण करते रहते हैं, उन्होंने यह दृश्य स्वयं देखा और माता पार्वती को जाकर सारा प्रसंग सुना दिया। जैसे ही पार्वती को पता चला कि भगवान शिव ने एक अप्सरा को देखने के लिए पंचमुख रूप लिया, वे क्रोध से भर उठीं।
पार्वती ने आवेश में आकर भगवान शिव की आंखों पर अपनी हथेली रख दी। जैसे ही शिव की आंखें ढकीं, संपूर्ण ब्रह्मांड अंधकार में डूब गया। सूर्य, चंद्र, अग्नि, सभी ज्योतियों का तेज समाप्त हो गया। प्रलय जैसे हालात बन गए और देवता त्राहिमाम करने लगे।
जब शिव की तीसरी आंख से फैला प्रकाश
पूरे ब्रह्मांड में अंधकार देखकर सभी देवी-देवता पार्वती से आग्रह करने लगे कि वे शिवजी की आंखों से हाथ हटा लें। लेकिन क्रोधित पार्वती नहीं मानीं। तब भगवान शिव ने अपनी परम लीला का प्रकट रूप दिखाया। उनकी तीसरी आंख खुल गई, जिससे संपूर्ण सृष्टि में फिर से प्रकाश फैल गया।
इस घटना के बाद भगवान शिव को त्र्यंबक और त्रिनेत्रधारी कहा जाने लगा। उनके तीसरे नेत्र की महिमा यहीं से जुड़ी मानी जाती है।
हाटकेश्वर तीर्थ पर मिली तिलोत्तमा को मुक्ति
तिलोत्तमा की करुण पुकार सुनकर माता पार्वती का हृदय पिघल गया। उन्होंने तिलोत्तमा को माघ मास की शुक्ल तृतीया के दिन हाटकेश्वर तीर्थ पर स्नान करने के लिए कहा। पार्वती स्वयं उन्हें वहां ले गईं और स्नान करवाया।
जैसे ही तिलोत्तमा ने वहां स्नान किया, उनका पुराना सौंदर्य वापस आ गया। वे फिर से उसी अनुपम रूप में प्रकट हुईं जैसी वे पहले थीं। तिलोत्तमा ने प्रसन्न होकर देवी पार्वती को धन्यवाद दिया और ब्रह्मलोक लौटने की अनुमति मांगी।
शिव की लीला का दुष्परिणाम तिलोत्तमा पर पड़ा
पार्वती के क्रोध का असर केवल ब्रह्मांड तक ही सीमित नहीं रहा। उन्होंने सामने खड़ी तिलोत्तमा को शाप दे दिया कि वह कुरूप हो जाए। जैसे ही पार्वती ने शाप दिया, तिलोत्तमा का सौंदर्य समाप्त हो गया और वह भयावह रूप में परिवर्तित हो गईं।
तिलोत्तमा अपने इस नए रूप को देखकर व्याकुल हो गईं और माता पार्वती से क्षमा की प्रार्थना करने लगीं। उन्होंने रोते हुए कहा कि वह केवल देवताओं का कार्य करने के लिए प्रकट हुई थीं और उनका कोई दोष नहीं था।
तिलोत्तमा ने मांगा वरदान, बना विशेष तीर्थ
प्रस्थान से पहले देवी पार्वती ने तिलोत्तमा से कोई वरदान मांगने को कहा। तिलोत्तमा ने आग्रह किया कि जिस तीर्थ में उन्हें शाप से मुक्ति मिली, वह सभी स्त्रियों के लिए सौंदर्य और वैवाहिक सुख प्रदान करने वाला पवित्र स्थल बन जाए।
देवी पार्वती ने तिलोत्तमा की इच्छा स्वीकार की और वचन दिया कि जो भी स्त्री उस तीर्थ पर स्नान करेगी, उसे सौंदर्य और पति का सुख मिलेगा। तभी से हाटकेश्वर तीर्थ विशेष रूप से महिलाओं के लिए पूजनीय माना जाने लगा।