उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर को तो देशभर में प्रसिद्धि प्राप्त है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसी मंदिर परिसर में एक और रहस्यमयी और बेहद विशेष मंदिर है, जिसके कपाट साल में सिर्फ एक दिन के लिए खुलते हैं। हम बात कर रहे हैं नागचंद्रेश्वर मंदिर की, जहां भगवान शिव माता पार्वती के साथ नागराज की शैय्या पर विराजमान हैं। यह दृश्य कहीं और देखने को नहीं मिलता।
नाग पंचमी पर खुलते हैं मंदिर के पट
साल 2025 में नाग पंचमी 29 जुलाई को पड़ रही है। इसी दिन नागचंद्रेश्वर मंदिर के द्वार 24 घंटे के लिए भक्तों के लिए खोले जाएंगे। नाग पंचमी की शुरुआत से ही मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। जो भी श्रद्धालु इस दिन दर्शन करते हैं, उन्हें कालसर्प दोष से राहत मिलने का विश्वास होता है। यह मंदिर आम दिनों में आम लोगों के लिए पूरी तरह से बंद रहता है।
मंदिर की प्रतिमा है विशेष और प्राचीन
नागचंद्रेश्वर मंदिर की सबसे बड़ी खासियत इसकी मूर्ति है। यहां भगवान शिव और माता पार्वती, नागराज की फन वाली शैय्या पर विराजमान हैं। यह प्रतिमा 11वीं शताब्दी की मानी जाती है और मान्यता है कि यह नेपाल से लाई गई थी। जिस प्रकार भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर विराजमान माने जाते हैं, वैसे ही यह शिव की एक अनूठी और विरल छवि है, जो केवल इस मंदिर में ही देखने को मिलती है।
मंदिर की ऊंचाई पर स्थित है यह गर्भगृह
यह मंदिर महाकाल मंदिर के मुख्य शिखर पर स्थित है। जहां तक पहुंचना आम लोगों के लिए आसान नहीं होता। यही कारण है कि इसे सिर्फ एक दिन के लिए खोला जाता है और दर्शन की व्यवस्था पूरी तरह से प्रशासनिक निगरानी में की जाती है। मंदिर का गेट सुबह 3 बजे से ही खोल दिया जाता है और रात 12 बजे तक दर्शन होते हैं।
नाग पंचमी के दिन होती है विशेष पूजा
29 जुलाई को नाग पंचमी के दिन मंदिर में विशेष विधि-विधान से पूजा होती है। त्रिकाल पूजा, अभिषेक और विशेष आरती की जाती है। इस दिन हजारों भक्त उज्जैन पहुंचते हैं ताकि वे भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन कर सकें और अपनी परेशानियों से छुटकारा पा सकें।
पौराणिक कथा से जुड़ा है मंदिर का रहस्य
इस मंदिर से एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। मान्यता है कि एक बार नागों के राजा तक्षक ने भगवान शिव की तपस्या की थी। उनकी कठोर साधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वरदान दिया। तक्षक नाग की इच्छा थी कि वह महाकाल वन यानी उज्जैन में शिव के समीप वास करें लेकिन किसी का विघ्न न हो। शिव ने उनकी यह इच्छा स्वीकार की और उन्हें यही स्थान प्रदान किया। उसी के बाद से इस मंदिर को एकांत और विशेष माना गया।
शिव पार्वती के साथ नाग देव की एक झलक
मंदिर की प्रतिमा में नाग देवता अपने फन को फैलाए हुए हैं और उसी फन पर भगवान शिव बैठे हुए हैं। उनके साथ माता पार्वती भी हैं। यह प्रतिमा संगमरमर से बनी है और इसे देखने मात्र से एक अलग ही आध्यात्मिक अनुभव होता है।
कालसर्प दोष से मुक्ति की मान्यता
देशभर से कई श्रद्धालु इस मंदिर में केवल इसी वजह से आते हैं क्योंकि मान्यता है कि नागचंद्रेश्वर मंदिर में दर्शन करने मात्र से कालसर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है। जो लोग अपने जीवन में बार-बार बाधाओं का सामना कर रहे होते हैं या जिनकी कुंडली में कालसर्प योग बना होता है, उनके लिए यहां दर्शन करना बहुत फलदायी माना गया है।
दर्शन के लिए करना पड़ता है लंबा इंतजार
क्योंकि यह मंदिर साल में केवल एक बार ही खुलता है, इसलिए इस दिन उज्जैन में भारी भीड़ देखने को मिलती है। कई भक्त एक दिन पहले ही उज्जैन पहुंच जाते हैं ताकि वे लाइन में सबसे पहले लग सकें। प्रशासन की ओर से दर्शन के लिए विशेष गेट और सुरक्षा व्यवस्था की जाती है ताकि किसी तरह की अव्यवस्था न हो।
श्रद्धा और आस्था का संगम
नागचंद्रेश्वर मंदिर का वातावरण नाग पंचमी पर एकदम दिव्य बन जाता है। शंख, घड़ियाल और मंत्रोच्चारण से पूरा परिसर गूंज उठता है। जो भक्त यहां पहुंचते हैं, वे खुद को भाग्यशाली मानते हैं क्योंकि उन्हें एक दुर्लभ अवसर मिलता है, जो साल में सिर्फ एक दिन ही आता है।